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________________ आवरच वश चले तो वह सारी दुनिया को अधीन कर ले। अगर हर आदमी पीढ़ी की सुरक्षा ख़तरे में रहेगी। हम अपनी अंतर्दृष्टि को अंतर्राष्ट्रीय अपने मन की पूरी करना चाहे तो एक दुनिया नहीं, अरबों दुनिया की धरातल से जोड़ें तभी हम स्वयं के स्तर को ऊँचा उठाने में सफल हो ज़रूरत पड़ेगी। जो कि संभव नहीं है इसलिए व्यक्ति ज्ञान व ध्यान से पाएँगे।" श्री चन्द्रप्रभ ध्यानयोग के मार्ग को सम्पूर्ण विश्व की मन को सही दिशा प्रदान करे।" आवश्यकता बताते हैं। वे कहते हैं, "सम्पूर्ण स्वस्थ विश्व का आनंद वर्तमान युग का तीसरा सत्य यह है कि चारों तरफ भौतिकता के पाने के लिए हर व्यक्ति ध्यानयोग-प्राणायाम को जीवन का अनिवार्य अंधे प्रवाह के चलते सारा वातावरण दूषित हो गया है, औद्योगिक चरण बनाए।" ध्यान का संबंध संपूर्ण जीवन से है। ध्यान तन-मनप्रगति के नाम पर धरती की सात्विकता समाप्त होती जा रही है, चेतना तीनों को स्वस्थ और संतुलित बनाता है। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन परिणाम, हर कोई दूसरों को मिटाने पर तुला हुआ है। मन पर स्वार्थ, है,"ध्यान सारो धरती के लिए है । बगैर ध्यान के न आनंद हैं, न चेतना हिंसा, आतंक, व्यभिचार और स्वच्छंदता जैसे दुर्गुण हावी हो गए हैं। का विकास है, न मन की कोई एकाग्रता है। ध्यान धरती का धर्म है। श्री चन्द्रप्रभ का मानना है, "मन मनुष्य का प्रेरक है। मन विकत हो तो अब तक धरती पर जितने भी अमृत पुरुष हुए उन सबकी आत्मा ध्यान हमारे कार्यकलाप सम्यक् नहीं हो सकते। इसलिए एक तरफ ध्यान के रही।" द्वारा मन को पहचानना अनिवार्य है वहीं दूसरी तरफ मन को सही श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान की उपयोगिता को हर पहलू से सिद्ध किया वातावरण एवं सम्यक् मार्ग देकर परिवर्तित करना ज़रूरी है तभी यह है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "ध्यान शरीर में अवस्थित दूषित ऊर्जा का मन हमारे लिए वरदान बन पाएगा।" विरेचन कर स्वास्थ्य देता है, ध्यान व्यक्ति के अंतर्मन और अंतआत्मा वर्तमान यग का चौथा सत्य यह है कि जिस विज्ञान ने धरती को को पवित्र करता है, ध्यान के भीतर भाग्य को पलटने की भी ताकत है. विकास की नई संभावनाएँ दी, सुख-सुविधाओं से समद्ध किया, ध्यान से वास्तु-दोष का भी निवारण होता है। ध्यान मानसिक शांति देने व्यक्ति को बौद्धिक दष्टि प्रदान की. पर उसी विज्ञान ने मानसिक के साथ बौद्धिक प्रतिभा और मेधा को भी उजागर करेगा. ध्यान से रूपांतरण पर ध्यान न देने की वजह से अब व्यक्ति-व्यक्ति, समाज- व्यक्ति की कार्यक्षमता व उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है। जो मात्र आधा समाज, देश-देश के बीच आगे बढ़ने की होड़ मची हुई है, जिसके घंटा ध्यान कर लेता है, वह दिनभर प्रसन्न और सौम्य रहता है।" श्री चलते विश्व में अनगिनत अस्त्रों-शस्त्रों का निर्माण हो चुका है। धरती चन्द्रप्रभ ने ध्यान को मानसिक शांति की प्राप्ति में भी उपयोगी बताया पर इतने अणु-परमाणु बम बन गए हैं कि संपूर्ण धरती को कई बार नष्ट है। प्राय: आम आदमी आत्म-साक्षात्कार से पहले मानसिक शांति किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में व्यवस्थाओं का राजनीतिकरण होने पाना चाहता है। श्री चन्द्रप्रभ ने 'अंतर्यात्रा' पुस्तक में अशांति के चार से बचाने व विश्व चेतना को रचनात्मक, सकारात्मक और सृजनात्मक कारण मुख्य रूप से गिनाए हैं, "औरों पर शासन करने की भावना, बनाने की आवश्यकता है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "अगर मनुष्य ने मन कायिक सुख व औरों को दिखाने की भावना को ज़्यादा महत्त्व देना, का समाधान न निकाला तो दनिया में आज ऐसे संहारक अस्त्र-शस्त्र आंतरिक संवेग और आसक्ति।" श्री चन्द्रप्रभ ने शांति पाने के लिए ईजाद हो चके हैं कि वे दनिया को एक बार नहीं सौ-सौ बार नष्ट करने ध्यान के प्रयोग करने के साथ स्वभाव को सरल बनाने, वाणी को मधर की क्षमता रखते हैं। मनुष्य धरती के लिए वरदान साबित हो इसके लिए बनाने, विपरीत बात पर प्रतिक्रिया न करने और हर हाल में मस्त रहने हमें मन से ऊपर उठना होगा और बुद्धि, विवेक, बोध और ज्ञानपूर्वक के सूत्र दिए हैं। जीवन जीना होगा।" श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान को मानसिक और भावनात्मक विकास में भी श्री चन्द्रप्रभ ने व्यक्ति को साधारण मन और साधारण विचारों से सहयोगी माना है। वैज्ञानिक युग के चलते व्यक्ति की बौद्धिक चेतना ऊपर उठने की प्रेरणा दी है और उच्च मानसिक क्षमताओं को जागत और इन्द्रिय-चेतना का खूब विकास हुआ है, पर श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, करने के लिए विज्ञान, कला, सुख-साधनों के साथ जीवन में "मानसिक और भावनात्मक चेतना का शुद्ध विकास ध्यान से ही हो ध्यानयोग को अपनाने का आह्वान किया है। वर्तमान स्थिति के परिप्रेक्ष्य सकता है। जहाँ मानसिक चेतना के विकास से व्यक्ति महान विचारों में श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "आज पुरे पृथ्वी-ग्रह का संचालन अंतरिक्ष का धनी बनेगा वहीं भावनात्मक चेतना के विकास से व्यक्ति हृदयवान स्थित उपग्रहों से होने लग गया है। आमने-सामने की लडाइयाँ सीधे होकर जीवन जिएगा।"शरीर-विज्ञान के अनुसार मस्तिष्क के दो भाग प्रक्षेपास्त्रों से जुड़ गई हैं। विज्ञान का बेहिसाब विस्तार हो गया है। हैं- 1. दायाँ भाग, 2. बायाँ भाग। दायाँ भाग जहाँ धर्म, अध्यात्म, इसलिए अब केवल साधारण शक्ति से काम नहीं चलेगा। मनुष्य को नैतिकता से जुड़ा होता है वहीं बायाँ भाग गणित, दर्शन, तर्कशास्त्र से। अपनी उच्च शक्तियों की ओर बढ़ना होगा। साधारण मन से असाधारण । किसी का दायाँ भाग ज़्यादा सक्रिय होता है तो किसी का बायाँ भाग, पर अतिमनस तत्त्व की ओर जाना होगा। हमें अपनी उच्च चेतना को समग्र उच्च व्यक्तित्व का मालिक बनने के लिए मस्तिष्क के दोनों भागों का अस्तित्व से जोड़ना होगा तभी हम विश्वव्यापी समाधान प्राप्त कर सक्रिय होना ज़रूरी है। ध्यान इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता सकेंगे।" है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "ध्यान के द्वारा हम मस्तिष्क के दोनों भागों श्री चन्द्रप्रभ शरीर में निहित अद्भुत शक्तियों एवं क्षमताओं के को सक्रिय कर सकते हैं।" जागरण के लिए जीवन के साथ नए प्रयोग करने पर बल देते हैं। वे श्री चन्द्रप्रभ ध्यान को लक्ष्य-प्राप्ति में भी सहयोगी मानते हैं। विज्ञान से भी ऊपर के क्षितिज तलाशने की प्रेरणा देते हैं। उनकी दृष्टि व्यक्ति चाहे किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हुआ हो, पर उसका एक ही लक्ष्य है में, "जब तक हमारा चिंतन परिवार के साथ सम्पूर्ण जगत की भलाई - सुख, शांति और आनंद। भारतीय मनीषा में एक शब्द मिलता है - पर केन्द्रित नहीं होगा, हम समग्र ब्रह्माण्ड से नहीं जुड़ेंगे, तब तक भावी सच्चिदानंद, जो कि जीवन-लक्ष्य से जुड़ा हुआ है। सत् अर्थात् Jain Education International For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स > 89
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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