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________________ अस्तित्व, चित् अर्थात् चेतना और आनंद अर्थात् क्लेश और तनावमुक्त धर्म की आड़ में पंथ-परम्परा के नाम पर, मंदिर-मस्जिद के नाम पर दशा।" श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "जीवन के इस वास्तविक लक्ष्य को आग्रहों और दुराग्रहों में उलझ गया है। परिणामस्वरूप धर्म मानवता को प्राप्त करने में ध्यान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। चैतन्य ध्यान और जोडने की बजाय आपस में तोड़ रहा है। इस स्थिति से निजात पाने के संबोधि ध्यान जैसी प्रक्रियाओं से सुषुप्त अंतस्-चेतना और आनंद- उन्होंने ध्यान-दर्शन में कहा है, "ध्यान से वह प्रज्ञा और समझ दशा जागृत होती है।" विकसित होती है, जिससे कदाग्रह की कारा टूटती है, व्यक्ति को सार श्री चन्द्रप्रभ ध्यान को प्रेम और आत्मीयता, प्रतिभा और के ग्रहण व असार के विरेचन की जीवन दृष्टि प्राप्त होती है।" सृजनात्मकता, शांति और मुक्ति जैसे सद्गुणों का जनक मानते हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान को हिंसा, आतंक, चोरी, भ्रष्टाचार जैसी वर्तमान में प्रेम का स्वरूप छिछला हो गया है। वह स्वार्थ व देहासक्ति समस्याओं से मुक्ति दिलाने में भी उपयोगी माना है। वर्तमान में से जुड़ गया है। परिणाम रिश्तों में मधुरता कम, कड़वाहटें ज़्यादा घुल कारागारों में भी अपराधियों को ध्यान का प्रशिक्षण दिलवाया जा रहा है, गई हैं। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का भारतीय आदर्श धूमिल हो गया है। जिससे उनकी मानसिकता में अद्भुत बदलाव आए हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "ध्यान से जन्मा प्रेम अपने परिपूर्ण अर्थों में प्रेम भी इंदौर और जोधपुर में कैदियों को ध्यान के गुर सिखाकर उनका होता है। उसके प्रेम में करुणा होगी, आत्मा की सुवास होगी, अंतरमन मानसिक परिवर्तन किया है। उन्होंने हिंसा, आतंक जैसी समस्याओं के की मिठास होगी। प्रेम जितना ध्यानस्थ हो और ध्यान जितना प्रेमपूर्ण हो पीछे 'बेहतर जीवन के बेहतर समाधान' पुस्तक में आनुवंशिकता, जीवन में उतनी ही परिपूर्णता और सरसता आती है।" गलत वातावरण, आर्थिक शोषण और जन्म-जन्मांतर से दमित वृत्तियों श्री चन्द्रप्रभ ध्यान को धन विरोधी नहीं मानते हैं। उनकी दष्टि में को मुख्य कारण माना है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "मानसिक दमन व धन जीवन की आवश्यकता है। वे कहते हैं, "केवल ध्यान से ही काम आत्मदमन के कारण ही इतना आतंकवाद और उग्रवाद फैला हुआ है। नहीं चलेगा।शांति और समृद्धि के लिए ध्यान भी चाहिए और धन भी। अगर व्यक्ति अपने मानसिक जगत के प्रति निर्मल और औरों के प्रति धन व्यावहारिक सुख देता है तो ध्यान आत्मिक सुख। व्यावहारिक मानवीय दृष्टि अपना ले तो वह सहजतया जीवन से आतंक, क्रोध, सुख परिस्थितिवश छिन भी सकते हैं, पर जो भीतर से समृद्ध हो चुका कषाय और विकार को निर्मूल कर सकता है।" श्री चन्द्रप्रभ ने इसके है वह सदाबहार आनंद से भरा रहेगा।" श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान से फैक्ट्री साथ सबको प्रतिदिन ध्यान करने, श्रेष्ठ साहित्य का विस्तार करने और का घाटा दूर होना, दुकान अच्छी चलना या देवी-देवताओं का प्रकट सरकार से वर्तमान आतंकवाद को मिटाने के लिए राजनीतिक समाधान होना जैसी बातों को अंधविश्वास कहा है। उनका दृष्टिकोण है, ढूँढ़ने की प्रेरणा दी है। इस प्रकार श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान की सभी "ध्यान से तो. चित्त शांत होगा, बुद्धि लक्ष्योन्मुख होगी और जीवन में दृष्टिकोणों से व्याख्या कर उसकी सर्वांगीण उपयोगिता एवं दिव्यता आएगी। जिससे परिवार-व्यापार-समाज में स्वतः ही लाभ हो आवश्यकता प्रतिपादित की है। उन्होंने ध्यान के अलावा भक्ति और जाएगा।" ज्ञान जैसे मार्गों को भी स्वीकार किया है, पर ध्यान को सबकी आत्मा श्री चन्द्रप्रभ ध्यान को समाजोत्थान का भी आधार मानते हैं। ध्यान माना है। व्यक्ति को समाज से तोड़ता नहीं है वरन् समाज-विकास में सहयोगी यद्यपि वर्तमान में विभिन्न धर्मों, प्रशिक्षकों द्वारा ध्यान-योग की बनने की प्रेरणा देता है। ध्यान से करुणा, सरलता, मैत्री, प्रमोद जैसे विभिन्न विधियाँ जारी हुई हैं, पर उनमें केवल ऊपरी भेद है, मूल में सद्गुण विकसित होते हैं जो व्यक्ति को समाज कल्याण करने के लिए सभी का लक्ष्य एक है। इस संदर्भ में श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "मैंने उत्सुक करते हैं। इस संदर्भ में श्री चन्द्रप्रभ का कहना है, "बुद्ध और ध्यान-योग की अनेक विधियाँ जानी, समझी व आजमाई हैं। विधियों महावीर वर्षों जंगल में रहे, लेकिन जैसे ही ध्यान को उपलब्ध हए में फ़र्क है, पर वह केवल प्राथमिक चरणों में है। लेकिन ध्यान विधियों वापस समाज में आ गए और जीवनभर समाज-कल्याण में जुटे रहे।" से पार है। जब तक करना है तब तक विधि है। करना' जब होने' में उन्होंने सामूहिक ध्यान को भी अधिक उपयोगी माना है। समूह में किये तब्दील हो जाता है, ध्यान सही अर्थों में तभी ध्यान' बनता है।" गये ध्यान में भी एक तरह की सामाजिकता छिपी रहती है। इसलिए निष्कर्ष ध्यान समाज-सापेक्ष भी है। इस तरह कहा जा सकता है कि ध्यान व्यक्ति से लेकर सम्पूर्ण ध्यान धर्म को भी जीवंतता प्रदान करता है। ध्यान और बोध रहित विश्व तक उपयोगी है। ध्यान के प्रति आम व्यक्ति का बढ़ रहा रुझान धर्म केवल क्रियाकांड भर रह जाता है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "धर्म के धमक ध्यान की उपयोगिता सिद्ध करता है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "आज नाम पर उपवास तो हो जाएँगे, पर वे उपवास हमारे क्रोध का शमन नहीं मनुष्य जितना अशांत, उद्विग्न और तनावग्रस्त है, अगर उसने ध्यान को कर पाएँगे, शास्त्रों का स्वाध्याय तो हो जाएगा, पर उससे हमारे अज्ञान जीवन का सहचर न बनाया तो इक्कीसवीं सदी मानव जाति के विनाश का कोहरा नहीं हटेगा, धर्म के नाम पर विनय-व्यवहार तो बहुत हो का इतिहास होगी। अतः ज़रूरी है कि व्यक्ति प्रतिदिन ध्यान करे, जाएगा, पर अहंकार झुक नहीं पाएगा। ध्यान विनय को पैदा करने, ज्ञान । __ अंतर्मन की शुद्धि करे और स्वयं को पवित्र रखते हुए अंतप्रसन्नता को पाने या भूखे मरने के लिए नहीं,अहंकार को झुकाने और अज्ञान को झुकान आर अज्ञान का और चित्तसमता बरकरार रखे।" ध्यान व्यक्ति को तृप्त करता है, पहचानने के लिए है, तभी तो व्यक्ति की आंतरिक शुद्धि हो पाएगी।" स्वास्थ्य, शांति और उत्साह देता है जो कि हर व्यक्ति की महत्त्वपूर्ण श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान को आग्रह-दुराग्रह की मानसिकता से मुक्त आवश्यकता है। श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यानमार्ग को और अधिक विस्तार देने होने में भी उपयोगी माना है। वर्तमान की धार्मिक स्थिति को उजागर । की आवश्यकता जताई है और इस हेतु हर व्यक्ति दस लोगों को ध्यान करते हुए वे कहते हैं, "आज धर्म तो कही पीछे छूट गया है, पर व्यक्ति मार्ग के प्रति प्रेरित करने का संकल्प ले और ध्यान का मनोवैज्ञानिक 90» संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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