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________________ सक्रिय ध्यान मुख्य है। दादा लेखराज ने प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय "श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य में वर्तमान की समस्याओं के प्रसंग में ध्यान विश्वविद्यालय संस्था की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य एक समाधान के रूप में स्थापित हुआ है।" वर्षों की ध्यान साधना व 'राजयोग' की शिक्षा देना है। वे आज्ञाचक्र पर अर्थात् ललाट के मध्य जीवन-जगत के रहस्यों को समझने के लिए श्री चन्द्रप्रभ ने जिस ध्यान केन्द्रबिन्दु पर ध्यान करने की प्रेरणा देते हैं। महर्षि महेश योगी ने मार्ग का प्रवर्तन किया वह संबोधि ध्यान साधना मार्ग' के नाम से जाना भावातीत ध्यान पद्धति का प्रवर्तन किया, जिसमें मंत्रध्यान की विशेष जाता है। विधि द्वारा विचारों और भावों से पार पहुँचने की कोशिश की जाती है। 'संबोधि' की साधना भारत व अन्य देशों से हज़ारों वर्षों से होती विपश्यना ध्यान पद्धति को भारत में लाने का श्रेय बर्मा से भारत आए चली आई है। श्री चन्द्रप्रभ ने 'संबोधि ध्यान' के नाम से साधना का सत्यनारायण गोयनका को है। आज जो स्वरूप स्थापित किया है, वह ध्यान-योग के विभिन्न पहलुओं जैन आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान पद्धति का आविष्कार किया को जीवन से जीकर और अनुभवों की कसौटी पर कसकर ही प्रस्तुत जिसमें श्वास प्रेक्षा व शरीर के चैतन्य केन्द्रों की प्रेक्षा मुख्यतया करवाई किया है। यह पद्धति अत्यन्त संतुलित एवं व्यवस्थित है। शरीर, मन जाती है। श्री श्री रविशंकर आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक हैं, जिसमें और आत्मा के संतुलन,शांति और शुद्धि के लिए संबोधि साधना स्वयं ध्यानयोग के प्रयोग पतंजलि योग व षट्चक्र साधना पर आधारित हैं। ही एक संपूर्ण योग है। यह विशुद्ध रूप से जीवन की आंतरिक बाबा रामदेव ने पतंजलि योग को स्वास्थ्य के साथ जोड़ा। इसमें चिकित्सा है। इसका जाति, धर्म, परम्परा से कोई सरोकार नहीं है। आसन-प्राणायाम की प्रधानता है। जैन आचार्य नानालाल ने 'समीक्षण संबोधि साधना का मार्ग व्यक्ति के बाहरी परिचय और रूप-रूपायों को ध्यान विधि' प्रतिपादित की जो मुख्यतया विपश्यना से प्रभावित है। श्री मूल्य नहीं देता। यह सीधे व्यक्ति को अंतरमन से जोड़ता है और उसे चन्द्रप्रभ ने 'संबोधि ध्यान साधना' मार्ग का प्रवर्तन किया, जिसमें मंत्र दिव्य परिणाम प्राप्त कराता है। साधना, पंचकोष, षट्चक्र, ब्रह्मांडीय ऊर्जा एवं साक्षी ध्यान साधना के संबोधि-ध्यान की एक क्रमिक साधना है, जिसके तहत मुख्य रूप प्रयोग मुख्यतया करवाए जाते हैं जिनका विस्तार से विश्लेषण आगे से पाँच प्रयोग हैं। पहली विधि हमें ध्यान में प्रवेश दिलाती है, जिससे किया जाएगा। हम मन की स्थिति को समझते हैं और मन की शांति को साधने की प्राचीन व वर्तमान से जुड़ी ध्यान परम्पराओं के विश्लेषण से स्पष्ट दिशा प्राप्त करते हैं। दूसरी विधि मंत्र-साधना से जुड़ी है, जो हमें स्थूल होता है कि प्राचीन युग की बजाय वर्तमान युग में ध्यान-योग के प्रति से सूक्ष्म की ओर ले जाती है। तीसरी विधि तन-मन के गुणधर्मों, आकर्षण बढ़ा है। प्राचीन युग में जो ध्यान-योग गुफाओं, जंगलों व संवेदनाओं और संस्कारों का साक्षी बनाते हुए हमें उसके प्रभावों से तपस्वियों तक सीमित था आज वही आम इंसान तक पहुँच गया है। कमलवत् ऊपर उठाती है। चौथी विधि शरीर में निहित विशिष्ट चेतना इसका श्रेय वर्तमान के ध्यान-योग के गुरुओं और शिक्षकों को जाता है। केन्द्रों को सक्रिय करते हुए हमारे लिए अतिरिक्त ऊर्जा के भंडार जिन्होंने वर्तमान युग के अनुरूप एवं आम आदमी के लिए उपयोगी खोलती है और अंतिम पाँचवीं विधि हमें अपनी चेतना के साथ ध्यान-योग की नई-नई पद्धतियों एवं प्रयोगों को आविष्कृत किया। इन एकलय करते हुए ब्रह्मांड में व्याप्त पराचेतना से एकाकार कराती है। प्रयोगों ने व्यक्ति को न केवल शारीरिक-मानसिक रोगों से मुक्ति श्री चन्द्रप्रभ के अनुसार, “निज चेतना में परमात्म-चेतना का अनुभव दिलाई है वरन् उसकी अन्तर्निहित शक्तियों के जागरण में भी महत्त्वपूर्ण और जीते-जी मुक्ति का रसास्वाद संबोधि साधना का पहला और भूमिका निभाई है। भारत के अनेक ध्यान गुरुओं ने विदेशों में भी इस आखिरी लक्ष्य है।" मार्ग को फैलाने में सफलता प्राप्त की है। परिणामस्वरूप पाश्चात्य संबोधि-साधना का स्वरूप संस्कृति के लोग भी धीरे-धीरे पूर्व की संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं। अगर ध्यान-योग के मार्ग को वैज्ञानिक ढंग से इसी तरह फैलाया 'संबोधि' साधना से जुड़ा हुआ शब्द है। संबोधि शब्द की व्याख्या गया तो वह दिन दूर नहीं जब सभी मानसिक एवं आन्तरिक समस्याओं करने से पता चलता है कि इसमें दो शब्द हैं : सम्+बोधि । सम् का अर्थ के समाधान के लिए ध्यान मुख्य आधार के रूप में उभरेगा। इक्कीसवीं है सम्यक् अथवा सम्पूर्ण। बोधि में मूल शब्द है - बोध। मानक सदी ध्यान सदी बन जाएगी और भारत 'विश्व-गुरु' की प्राचीन उक्ति शब्दकोश के अनुसार बोध शब्द 'बुध' धातु में धञ्' प्रत्यय लगने से को पुन: धारण करने में सफल हो जाएगा। बना है जिसका अर्थ है ज्ञान । अर्थात् सम्यक् ज्ञान अथवा सम्पूर्ण ज्ञान को संबोधि कहा जाता है। बौद्धों में पूर्णज्ञान' को संबोधि कहा गया है। श्री चन्द्रप्रभ की ध्यान-दर्शन में भूमिका गौतम बुद्ध, जैनों में जिनदेव और ज्ञानी पुरुष के लिए संबुद्ध शब्द का आधुनिक जीवन की जटिलताओं के चलते ध्यान एक सशक्त प्रयोग होता रहा है। महावीर व बुद्ध ने भी अनेक जगह बोधि व संबोधि साधना के रूप में उभरा है जो न सिर्फ व्यक्ति को उसकी पारिवारिक, शब्द का उपयोग किया है। श्री चन्द्रप्रभ के अनुसार, "बोधपूर्वक सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं का सामना करने की शक्ति देता है, जीवन जीना ही संबोधि है। सम्यक् बोध संबोधि का सहज प्राथमिक बल्कि उसे सार्वभौम अस्तित्व से जोड़कर आत्मविकास में भी सहयोग अर्थ है और सम्पूर्ण बोधि संबोधि का अंतिम अर्थ है अर्थात् संबोधि करता है। भारत में समय-समय पर अनेक ध्यान-मार्ग प्रकाश में आए सम्यक् बोध से सम्पूर्ण बोध तक की यात्रा है।" जैन दर्शन के त्रिरत्नों व आ रहे हैं। प्राचीन मार्गों पर आधारित होते हए भी इनमें नयापन है,ये में जो सम्यक् ज्ञान है उसी का संक्षिप्त एवं सरल शब्द है - संबोधि। श्री वर्तमान की उपयोगिता पर आधारित हैं और व्यक्ति को पूर्णता देने के चन्दप्रभ के अनुसार, "जब यही संबोधि ध्यान से गुजरते हुए अपनी लिए प्रयत्नशील हैं। इसी कड़ी में श्री चन्द्रप्रभ का ध्यान-दर्शन आज के पराकाष्ठा तक पहुँचती है तो 'बोधिसत्त्व' कहलाती है।" श्री चन्द्रप्रभ लिए बेहद उपयोगी सिद्ध हुआ है। डॉ. दयानंद भार्गव का कहना है, के दर्शन में 'संबोधि' को 'अंतर्दृष्टि' नाम भी दिया गया है। अर्थात् संबोधि टाइम्स Jain Education International For Personal & Private Use Only 200rg
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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