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________________ १२ म X ७ गुरुवार को पुष्य नक्षत्र में प्रातः 6 बजे अपने ननिहाल में मातामह, महान खेलकूद में अपना ज्यादा ध्यान देने के कारण वे शिक्षा के प्रति पूर्णतया साहित्य-सेवी, इतिहासवेत्ता श्री अगरचंद जी नाहटा के यहाँ हुआ, गंभीर न हो पाये और ऐसी स्थिति बनी कि एक बार तो अनुत्तीर्ण होतेजिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन शिक्षा, साहित्य एवं ज्ञान की सेवा में होते बचे। उस समय एक ऐसी घटना घटी जिसने उन्हें जीवन में कुछ समर्पित कर दिया। उनके घर का कोना-कोना ग्रंथों से भरा रहता था कर गुजरने का जज्बा पैदा किया। स्वयं श्री चन्द्रप्रभ के शब्दों में - और देश-विदेश के मनीषी उनके यहाँ शोध-कार्य के लिए आते थे। बात तब की है, जब मैं नौवीं कक्षा की परीक्षा दे रहा था। संयोग ऐसे ज्ञान से सुवासित वातावरण में श्री चन्द्रप्रभ का जन्म होना श्री प्रभु की बात कि परीक्षा में मेरी सप्लीमेंटरी आ गई। क्लास टीचर सभी की सारस्वत कृपा का ही फल था। पुष्य नक्षत्र में जन्म होने के कारण छात्रों को उनके प्रमाण-पत्र दे रहे थे। जब मेरा नंबर आया, तो न जाने इनका नामकरण 'पुखराज' किया गया, पर घर में सभी इन्हें प्यार से क्यों उन्होंने खासतौर से मेरी मार्कसीट पर नज़र डाली। वे चौंके और 'राजू' कहकर पुकारा करते थे। इनके तीन बड़े भाई श्री प्रकाशचन्द उन्होंने एक नज़र से मझे देखा। मैं संदिग्ध हो उठा. कछ भयभीत भी। जी, श्री अशोककुमार जी एवं श्री सिद्धिराज जी हैं एवं एक छोटे भाई उन्होंने मुझे मार्कशीट न दी। यह कहते हुए मार्कशीट अपने पास रख श्री ललितकुमार जी हैं जो कि आज दीक्षित अवस्था में महोपाध्याय श्री ली कि ज़रा रुको, मुझसे मिलकर जाना। जब सभी सहपाठी अपनीललितप्रभसागर जी महाराज के नाम से सुप्रतिष्ठित हैं। श्री चन्द्रप्रभ की ___ अपनी मार्कशीट लेकर क्लास से चले गए, तो पीछे केवल हम दो ही जन्म-कुंडली इस प्रकार है - बचे, एक मैं और दूसरे टीचर। उन्होंने मुझे दो-चार पंक्तियाँ कही होंगी, लेकिन उनकी पंक्तियों ने मेरा नज़रिया बदल दिया, मेरी दिशा २ शु बदल डाली। उन्होंने कहा, "क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे सप्लीमेंटरी आई है? चूंकि तुम्हारा बड़ा भाई मेरा अज़ीज मित्र है इसलिए मैं तुम्हें कहना चाहता हूँ कि तुम्हारा भाई हमारे साथ इसलिए चाय-नाश्ता नहीं करता कि अगर वह अपनी मौज-मस्ती में पैसा खर्च कर देगा, तो तुम शेष चार भाइयों की स्कूल की फीस कैसे जमा करवा पाएगा? तुम्हारा जो भाई अपना मन और पेट मसोसकर भी तुम्हारी फीस जमा करवाता है, क्या तुम उसे इसके बदले में यह परिणाम देते हो?" बाल्यकाल एवं विद्यालय प्रवेश उस क्लास टीचर द्वारा कही गई ये पंक्तियाँ मेरे जीवन-परिवर्तन श्री चन्द्रप्रभ शुरू से ही मेधावी और संस्कारशील बालक थे। प्रायः की प्रथम आधारशिला बनीं। उन्होंने न केवल मुझे अपने भाई के ऋण बाल्यावस्था खेलने-कूदने और लाड़-प्यार में ही पूरी हो जाती है, पर का अहसास करवाया, अपितु शिक्षा के प्रति बहुत गंभीर बना दिया और श्री चन्द्रप्रभ के साथ ऐसा नहीं था। उन्हें प्रभु-पूजा, संतों के दर्शन, तबसे प्रथम श्रेणी से कम अंकों से उत्तीर्ण होना मेरे लिए चल्लभर पानी धार्मिक पुस्तकों का पठन, तीर्थयात्रा जैसे संस्कार विरासत से ही मिले में डूबने जैसा होता। मैं शिक्षा के प्रति सकारात्मक हुआ। माँ सरस्वती ने हुए थे। श्री चन्द्रप्रभ का बचपन अन्य बालकों की तरह नहीं था। अपने मुझे अपनी शिक्षा का पात्र बनाया। उन्होंने हायर सैकण्डरी परीक्षा नाना श्री अगरचंद नाहटा जैसे विद्वान पुरुष का वरदहस्त उन्हें सहज उत्तीर्ण कर बी.कॉम. प्रथम वर्ष का अध्ययन प्रारम्भ किया, किंतु रूप से मिला हुआ था। समय-समय पर नाहटाजी से मिलने आते भविष्य उनसे कुछ और करवाना चाहता था। विद्वानों, समाजसेवियों को देखना, उनका आपसी व्यवहार, वार्तालाप, दीक्षा-ग्रहण शास्त्रीय चर्चाओं से युक्त वातावरण उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए बीज वपन का कार्य कर रहा था। उनकी प्रतिभा धार्मिक गीतों की रचना श्री चन्द्रप्रभ के माता-पिता एवं ननिहाल पक्ष धार्मिक एवं के रूप में सामने आती रहती थी। श्री चन्द्रप्रभ बचपन से ही मेधावी ज्ञानमूलक संस्कारों से जुड़ा हुआ था। श्री चन्द्रप्रभ के माता-पिता के होने के साथ-साथ साहसी व्यक्तित्व के धनी रहे हैं। गलत का दृढ़ता से अंतर्मन में जैन धर्म के महान तीर्थ पालीताणा की 'नवाणु यात्रा' करने मुकाबला करने की आदत उनकी बचपन से रही है। यही कारण है कि का संकल्प जगा। वहाँ वे एक साध्वी के सम्पर्क में आए, जिनका नाम बचपन में एक बार वे विद्यालय से घर आने के लिए निकले तो उन्होंने था पुष्पा श्री जी महाराज। श्री चन्द्रप्रभ के माता-पिता को उनकी गुर्जरों के मौहल्ले के पास देखा कि आठ-दस लड़के उनके ही वैराग्यभरी बातों ने प्रभावित किया। उन्होंने अपने शेष जीवन को धन्य विद्यालय के एक सीधे-सरल लड़के की पिटाई कर रहे हैं। उन्होंने उन करने के लिए दीक्षा धारण करने का मानस बनाया। उनके संत बनने लड़कों को समझाने की कोशिश की और उसे छोड़ने के लिए कहा, पर की भावना से श्री चन्द्रप्रभ के छोटे भाई ललितजी भी प्रभावित हुए। जब वे उद्दण्डी लड़के न माने तो उन्होंने अपनी साइकिल दीवार के तीनों ने एक साथ दीक्षा धारण की। अपने छोटे भाई के अस्वस्थ हो सहारे छोड़ी और उन शैतान लड़कों को ठीक करने के लिए वे उन पर जाने पर श्री चन्द्रप्रभ ने उनकी सेवा-व्यवस्था सँभाली। वे अपनी टूट पड़े। दस का मुकाबला अकेले ने किया और उन दुष्ट लड़कों को साध्वी माँ श्री जितयशा जी एवं उनकी गुरुणी महान साध्वी श्री भगाकर अपने ही विद्यालय के सहपाठी को घर छोड़कर आए। विचक्षण श्री जी महाराज के कहने पर धमतरी (छत्तीसगढ़) में आयोजित तत्त्व ज्ञान शिक्षण शिविर में शरीक हुए। वे वहाँ जैनधर्म के श्री चन्द्रप्रभ का अध्ययन शुरू में घर पर ही हुआ। इन्हें सीधे तत्त्व ज्ञान एवं शिविर-निदेशक कुमारपाल भाई की त्यागमयी जीवनपाँचवीं कक्षा में प्रवेश दिलाया गया। बीकानेर के जैन स्कूल में उन्होंने शैली से प्रभावित हुए। उन्होंने अपने माता-पिता की सेवा और अध्ययन करते हुए आगे की कक्षाएँ अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की, पर। आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ने का मानस बनाया। उनका साध्वी श्री संबोधि टाइम्स-7 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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