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________________ श्री चन्द्रप्रभ : नए युग के नए दार्शनिक जीवन जीने की कला सिखाई है। उन्होंने युवाओं को सफलता पाने भारतीय दार्शनिकों की वर्तमान परम्परा में श्री चन्द्रप्रभ एक ऐसे ऐसे आर समृद्ध बनने । और समृद्ध बनने के बेहतरीन गुर दिए हैं। वे कहते हैं, "आज के दार्शनिक हुए हैं जिन्होंने धर्म-अध्यात्म को एक नई दिशा एवं नई दृष्टि समाज में केवल अमीरों की इज़्ज़त होती है इसलिए हर व्यक्ति समृद्ध प्रदान की है। उन्होंने न केवल अध्यात्म की जीवन-सापेक्ष व्याख्या की बने । अपरिग्रह का सिद्धांत अमीरों के लिए है, गरीबों के लिए नहीं।" वरन वर्तमान की समस्याओं का सरल व प्रभावी समाधान दिया है। इस तरह उन्होंने स्वयं को परम्परागत ढर्रे से मुक्त किया है। उन्होंने ईंट. उनके द्वारा दी गई महान सोच और आत्मदृष्टि नई पीढ़ी के लिए मील चून, पत्थर सानामत मादरा का हा बनात रहन का बजाय घर-पारवार के पत्थर का काम कर रही है। एक तरह से श्री चन्द्रप्रभ का मौलिक क को मंदिर बनाने और घर से धर्म की शुरुआत करने की क्रांतिकारी चिंतन और प्रभावी जीवन-दर्शन वर्तमान की गीता बन चुका है। प्रेरणा देकर धर्म को व्यावहारिक एवं वैज्ञानिक बनाने का अनुपम कार्य श्री चन्द्रप्रभ वर्तमान युग के महान जीवन-दृष्टा संत हैं। उनका किया है। जीवन प्रेम, प्रज्ञा, सरलता और साधना से ओतप्रोत है। वे न केवल श्री चन्द्रप्रभ ने जीमणवारी के नाम पर हो रहे असीमित खर्चों का मिठास भरा जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं वरन् अपने जीवन में भी विरोधकर और गरीब भाइयों को ऊपर उठाने की प्रेरणा देकर स्वस्थ मिठास और माधुर्य घोले रखते हैं। वे आम इंसान के बहुत क़रीब हैं। समाज की संरचना करने की कोशिश की है। जहाँ उन्होंने एक ओर धर्म उनके द्वार सबके लिए खुले हुए हैं। सभी को 'प्रभु' कहकर बुलाना को मानवीय मूल्यों के साथ जोड़ा वहीं दूसरी ओर आंतरिक समृद्धि के उनकी बहुत बड़ी विशेषता है। चाहे कोई भी क्यों न हो उनसे मिलकर लिए संबोधि-साधना का सरल एवं मनोवैज्ञानिक मार्ग प्रस्तुत कर प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। उनके पास बैठकर व्यक्ति को जो मानव जाति के समग्र विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। अनुपम आनंद, ज्ञान और सुकून मिलता है वह उसे आजीवन भुला नहीं नि:संदेह विश्व में चल रही दार्शनिकों की प्रवाहमान धारा में श्री पाता है। चन्द्रप्रभ ने जो विचार-दर्शन मानव-समाज को दिया वह न केवल श्री चन्द्रप्रभ की वाणी में न केवल गज़ब का सम्मोहन है वरन् अन्य दार्शनिकों से भिन्न और नया है वरन् मौलिक भी है। उनके द्वारा उनके साहित्य में भी एक विशेष आकर्षण है। प्रायः अच्छा लेखक धरती पर की गई स्वर्ग-निर्माण की पहल आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छा वक्ता नहीं होता और अच्छा वक्ता अच्छा लेखक नहीं होता. पर प्रकाश-शिखा का काम करेगी। श्री चन्द्रप्रभ की साधना. साहित्यमाँ सरस्वती की कृपा से वे जितना अच्छा बोलते हैं उतना ही अच्छा लखन एव मानवता स जुड़ा सवाए निरतर प्रगात का आर है। व लिखते भी हैं। श्री चन्द्रप्रभ यानी नई उम्मीद, नया उत्साह, नई ऊर्जा। __ अतुलनीय और अनुपम हैं। उन्हें समझना या उन पर लिखना संभव है, इंसान की सुस्त हो चकी चेतना को जगाने के लिए वे इंकलाब का पर उनकी सम्पूर्णता को प्रकट करना मुश्किल है। पैग़ाम हैं। उनकी पुस्तकें यानी जीवन की हर समस्या का समाधान। आनंद और आत्मविश्वास से भरा उनका साहित्य नई पीढ़ी के लिए रामबाण औषधि का काम कर रहा है। जो उनको एक बार पढ़ लेता है श्री चन्द्रप्रभ की मातृ-भूमि वह उनकी जीवन-दृष्टि का कायल हो जाता है। वे जिस भी गाँव या श्री चन्द्रप्रभ का जन्म शूरवीरों और दानवीरों की भूमि राजस्थान में शहर में जाते हैं और बोलते हैं, उन्हें सभी पंथ, परम्पराओं के लोग हुआ है। महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर, भामाशाह और जगडूशाह जैसे सुनने के लिए हज़ारों की तादाद में उमड़ पड़ते हैं। प्रवचनों में जब वे दानवीर, समयसुंदर जैसे कवि, मीरा जैसी भक्त कवयित्री इसी भूमि अपने द्वारा बनाए गए रसभीने भजन गाते-गुनगुनाते हैं तो जनता झूमने पर जन्मे हैं । संत पीपा, संत रैदास, संत दादू, यमुनाचार्य, निम्बार्काचार्य, को विवश हो जाती है। परशुराम, संत खेताराम, संत राजाराम, संत चरणदास, ख्वाजा मुईनुद्दीन श्री चन्द्रप्रभ ने देशभर में जो मानवीय कल्याण के कार्य किए हैं हसन चिश्ती, दुलेशाह जैसे महान पुरुषों को जन्म देने का सौभाग्य और सर्वधर्म सद्भाव का माहौल खड़ा किया है वह अदभत है। वे हर राजस्थान को प्राप्त हुआ है। राजस्थान के सांस्कृतिक आँचल में सभी धर्म और हर महापुरुष पर बोलते हैं। उनका कहना है, "दीये भले ही धर्मों ने अपनी विशिष्ट संस्कृति को संजोया है। अजमेर के ख्वाजा अलग-अलग हो, पर ज्योति सबकी एक है। राम, कृष्ण, महावीर, मुईनुद्दीन चिश्ती, रामदेवरा के बाबा रामदेव पीर, उदयपुर के मोहम्मद, बुद्ध, जीसस, कबीर, नानक आदि धरती के बगीचे पर खिले केसरियानाथ, पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर, नाकोड़ा के नाकोड़ा भैरुजी एवं हुए अलग-अलग फूल हैं जो इसकी सुंदरता को घटाते नहीं वरन कई नाथद्वारा के श्रीनाथजी में छत्तीस कौम के विश्वभर से लोग आते हैं। गुना बढ़ाते हैं।" आज श्री चन्द्रप्रभ पंथ-परम्पराओं की संकीर्ण सीमा चित्तौड़गढ़ का विजयस्तंभ, देलवाड़ा, रणकपुर और जैसलमेर के लाँघकर सबके बन चुके हैं। सचमुच इस मानवतावादी राष्ट्र-संत को मंदिरों ने राजस्थान को स्थापत्य और मूर्तिकला का विश्वकोश जैसा विश्वभर में करोड़ों पाठकों एवं श्रोताओं द्वारा प्रतिदिन पढ़ा एवं सुना जा सम्मान दिलाया है। ऐसी महान विशेषताओं से युक्त इस भूमि पर रहा है जो कि हम सबके लिए प्रेरणा-स्रोत है। महान दार्शनिक एवं चिन्तक, राष्ट्र-संत श्री चन्द्रप्रभ ने जन्म लेकर श्री चन्द्रप्रभ का विचार-दर्शन एक तरह से वर्तमान युग की गीता । अपनी ज्ञान-मनीषा से इस भूमि की गरिमा में और चार चाँद लगाए हैं। है। उनके विचार सशक्त, तर्कयुक्त, परिमार्जित एवं सकारात्मकता की जन्मस्थान,परिवार वनामकरण आभा लिए हुए हैं। उनके विचारों में कृष्ण का माधुर्य, महावीर की श्री चन्द्रप्रभ का जन्म राजस्थान प्रदेश के बीकानेर शहर में दफ्तरी साधना, बुद्ध की मध्यम दृष्टि, कबीर की क्रांति, मीरा की भक्ति और गोत्रीय श्री मिलापचंद जी दफ्तरी की धर्मपत्नी श्रीमती जेठी देवी की आइंस्टीन की वैज्ञानिक सच्चाई है। श्री चन्द्रप्रभ ने हँसी-खुशीपूर्वक कुक्षि से वैशाख शुक्ला सप्तमी, विक्रम संवत् 2021, 10 मई 1962, 6> संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only जीवन-परिचय www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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