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से मुक्त होना व्यक्ति के लिए अति आवश्यक है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन है, "जो प्रकृति की इस व्यवस्था को समझ लेते हैं, वे मानसिक में चिंता पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत हुआ है। चिंता का स्वरूप, अशांति, तनाव और अवसादों से मुक्त रहकर हर हाल में मस्त रहते कारण, परिणाम, समाधान, आदि सभी पहलुओं पर प्रस्तुत किये गए हैं।" उनके दर्शन में मन की प्रसन्नता को बनाए रखने के लिए निम्न उनके विचार वर्तमानोपयोगी हैं। उन्होंने चिंता के मुख्य रूप से निम्न सूत्रों का मार्गदर्शन प्राप्त होता है - कारण बताए हैं -
1. उपेक्षा को प्रसन्नता की कसौटी समझें। 1. धन के प्रति अतिलोलुपता रखना।
2. औरों से अधिक स्वयं के दृष्टिकोण को मूल्य दें। 2.अतीत की बुरी घटनाओं का स्मरण करना।
3. व्यर्थ की प्रतिक्रियाओं से बचें। 3. कृत्रिम जीवन जीना।
4. मानसिकता को अच्छा और बेहतर बनाएँ। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में चिंता-मुक्ति के लिए निम्न सूत्र दिए गए हैं - 5. परामर्श तभी दें जब आपसे कोई परामर्श की अपेक्षा रखे। 1.सहज जीवन जीएँ।
6. न तो किसी की गलती निकालें,न किसी में गलती निकालें, 2. विपरीत परिस्थितियों को स्वयं की कसौटी मानें।
7. दखलअंदाजी से बचें। 3. प्रकृति व परमात्मा की व्यवस्थाओं में विश्वास रखें।
8. प्रशंसा व आलोचना में सहनशील बने रहें। 4. कुछ व्यवस्थाओं को समय पर छोड़ दें।
9. लोगों द्वारा की गई टिप्पणी से विचलित न होवें। 5. पुरानी घटनाओं को भूल जाएँ और गमों से समझौता करना 10. अच्छी सोच व अच्छा स्वभाव रखें। सीखें।
11. व्यर्थ के झंझटों से बचें और औरों का भला होता हो तो अवश्य 2. क्रोध-नियंत्रण - दुःख और दुर्गति का मुख्य कारण है करें। कषाय। कषाय चार हैं - क्रोध, मान, माया और लोभ। चारों ही अशांति 4.मानसिक शांति - संसार अनुगूंज का नाम है, यहाँ व्यक्ति जैसा के जनक हैं। मानवीय स्वभाव का मुख्य नकारात्मक पहलू है क्रोध। करता है उसे वैसा ही परिणाम प्राप्त होता है। अच्छे परिणाम पाने के क्रोध का परिणाम दुःखदायी है। यह जीवन के विकास को रोक देता लिए अच्छे कर्म करना आवश्यक है। अच्छे कर्म तभी होंगे जब व्यक्ति है। शांत जीवन के लिए क्रोध पर संयम आवश्यक है। श्री चन्द्रप्रभ का की सोच अच्छी होगी। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में शांत जीवन का मालिक दर्शन क्रोध-मुक्ति का बेहतरीन मार्ग प्रस्तुत करता है। श्री चन्द्रप्रभ ने बनने के लिए मन में शांति का चैनल चलाने की प्रेरणा दी गई है। स्वयं क्रोध का स्वरूप, क्रोध के परिणाम, क्रोध के कारण, क्रोध की विविध को शांत करना वास्तव में बहुत बड़ी उपलब्धि है। श्री चन्द्रप्रभ कहते स्थितियाँ, क्रोध-मुक्ति के उपाय आदि सभी पहलुओं पर मनोवैज्ञानिक हैं, "मानवता की सेवा के लिए धन का दान देना पुण्य की बात है प्रकाश डाला है। उन्होंने क्रोध के निम्न कारणों का जिक्र किया है - लेकिन मानवता को अपनी ओर से शांति प्रदान करना लाखों-लाख औरों द्वारा गलती करना, अपेक्षाओं का उपेक्षित होना और अहंकार पर रुपयों के दान से भी ज्यादा श्रेष्ठ है।" अगर व्यक्ति संकल्पबद्ध हो जाए चोट लगना। उन्होंने क्रोध के परिणामों में होश खोना, स्वास्थ्य कि मैं हर हाल में शांत रहूँगा तो दुनिया की कोई ताकत उसे अशांत नहीं बिगड़ना, संबंधों में खटास आना, आत्महत्या करना, कॅरियर चौपट कर सकती है। श्री चन्द्रप्रभ ने मन को शांत बनाने के लिए निम्न प्रेरणा होना आदि को बताया है। श्री चन्द्रप्रभ ने क्रोध से छटकारा पाने के लिए दी हैनिम्न उपायों को जीवन से जोड़ने की प्रेरणा दी है -
1.हर परिस्थिति में स्वयं की शांति को महत्व दें। 1. गलती हो जाए तो माफी माँगें और दूसरों से गलती हो जाए तो 2. ध्यान में गहरी-लम्बी साँसों के साथ स्वयं को शांतिमय बनाते माफ कर दें।
जाएँ। 2. क्रोध के वातावरण वाले स्थान से हट जाएँ।
__5.आंतरिक सहजता - सुख-दु:ख, लाभ-हानि, संयोग-वियोग 3. तत्काल दो गिलास ठण्डा पानी पिएँ।
जीवन के अनिवार्य पहलू हैं। जो इस बात को जान लेता है वह सहजता 4. तत्काल गुस्सा करने की बजाय थोड़ी देर में करें।
से जीवन जी सकता है। औरों की टिप्पणी व उपेक्षा और अपमान में 5. चौघड़िया देखकर अमृत सिद्धियोग में गुस्सा करें।
अपनी सहजता-सौम्यता को बनाए रखना चुनौतिपूर्ण है। सहजता 6. मिठास भरी भाषा का उपयोग करें।
जीवन में शांति एवं समाधि के द्वार खोलती है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में 7. खुद पर संयम रखें व सकारात्मक व्यवहार करें।
शांति पाने के लिए सहजता को अपनाने की बात कही गई है। कबीर ने 8. प्रतिदिन 1 घंटा मौन-व्रत स्वीकार करें।
कहा है - 9. क्रोध का सप्ताह में एक दिन पूर्ण उपवास करें।
सहज मिले सो दूध सम मांगा, मिले सो पानी। 10. जीवन में हमेशा विनम्रता बनाए रखें।
कह कबीर वह रक्त सम, जामें खींचातानी।। 11.सदाबहार प्रसन्न रहने की आदत डालें।
श्री चन्द्रप्रभ का मानना है, "हम जीवन के प्रति निश्चिंतता का 3. प्रसन्न मन - जीवन उतार-चढ़ाव का नाम है। विपरीत नजरिया अपनाएँ क्योंकि प्रकृति की व्यवस्थाएँ पूर्णता लिए हुए हैं। परिस्थितियों में मन को शांत एवं प्रसन्न रखना बहुत बड़ी चुनौती है। श्री मनुष्य माँ की कोख में बाद में पैदा होता है, माँ की छाती में दूध पहले चन्द्रप्रभ के दर्शन में शांत एवं प्रसन्न जीवन जीने की बेहतरीन कला भर जाता है। वे सहज जीवन में विश्वास रखते हैं। उनके दर्शन में सर्वत्र सिखाई गई है। प्रकृति परिवर्तनशील है। व्यक्ति भी प्रकृति का हिस्सा सहज जीवन जीने का अंतर्बोध प्राप्त होता है। उनका कहना है, "जीवन है। उस पर भी प्रकृति के नियम लागू होते हैं। श्री चन्द्रप्रभ का दृष्टिकोण में सारे द्वार एक साथ बंद नहीं होते, यदि एक बंद होता है तो भी
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