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वाणीगत सुंदरता पर ध्यान देने की प्रेरणा देता है। श्री चन्द्रप्रभ का कोटि का, माँ से जुड़ा प्रेम पवित्र कोटि का और गुरु से जुड़ा प्रेम, प्रेम दृष्टिकोण है, "केवल ऊँचे कुल में जन्म लेने से व्यक्ति ऊँचा नहीं हो का उच्च रूप है, लेकिन जब यह परमात्मा से जुड़ जाता है तो प्रेम प्रेम जाता, ऊँचाइयों को छूने के लिए बोलने की कला आनी जरूरी है।" नहीं रहता मीरा की पैरों की पाजेब बन जाता है।" उन्होंने अहिंसा को संसार एक प्रतिध्वनि है, व्यक्ति जैसा बोलता है वैसा ही वापस लौटकर धन्य करने के लिए प्रेम का पथ उसके साथ जोड़ने की सीख दी है। आता है। व्यक्ति को सदैव मधुर, मीठी और सम्मान युक्त भाषा का उनकी दृष्टि में, "चाँटा न मारना अहिंसा है, पर दो कदम आगे बढ़कर उपयोग करना चाहिए ताकि वह दूसरों से भी मिठास पा सके। श्री स्नेह से माथा चूमना अहिंसा का विस्तार व प्रेम की सिखावन है।" चन्द्रप्रभ के दर्शन ने वाणी को विवेक एवं मिठास युक्त बनाने के लिए उनके दर्शन में प्रेम का विस्तार परिवार से प्रकृति तक देखने को मिलता निम्न सूत्रों को अपनाने का मार्गदर्शन दिया गया है -
है। वे ध्यान के साथ प्रेम को भी आध्यात्मिक विकास का आधार बताते 1. कटु व टोंट भरी भाषा न बोलें। 2. उपालम्भ देने व आलोचना करने से बचें।
सभी बिन्दुओं के अनुशीलन से स्पष्ट होता है कि श्री चन्द्रप्रभ का 3. मधुर व मुस्कुराते हुए बोलें।
दर्शन मधुर जीवन के लिए ठोस सिद्धांत एवं विचार प्रस्तुत करता है। 4.सॉरी, षै क्यू, प्लीज जैसे शब्दों का पूरी उदारता से प्रयोग करें।
उनके द्वारा मधुर जीवन पर प्रकट किए गए विचार बेहतर, सरल, 5. जब भी बोलें धीमे व धीरज से बोलें।
संक्षिप्त एवं भविष्य के लिए भी उपयोगी हैं। 6.संक्षिप्त वाणी ही बोलें। 7. कहे हुए शब्द और दिए हुए वचन को हर हालत में निभाएँ।
जीवन और शांति 8. बेहतर व्यवहार - जीवन के मुख्य तीन आधार हैं - विचार,
__ शांति कहाँ है, इसकी खोज कैसे की जाए या इसको कैसे प्राप्त वाणी और व्यवहार। तीनों परस्पर पूरक हैं। व्यवहार से व्यक्ति के
किया जाए, यह भारतीय धर्म और दर्शन शास्त्रों की मूल विषय-वस्तु व्यक्तित्व की पहचान होती है। हितोपदेश में कहा गया है, "इस संसार
रही है। महावीर और बुद्ध जैसे राजकुमारों ने तो शांति को पाने के लिए में स्वभावतः कोई किसी का शत्रु या प्रिय नहीं होता है। लघुता या
राजमहलों, राजरानियों तक का त्याग कर दिया और जंगलों में चले प्रभुता व्यक्ति को अपने व्यवहार से ही प्राप्त होती है।" श्री चन्द्रप्रभ के ।
गए। मन को समझना, शांत करना बहुत बड़ी साधना है। वर्तमान की दर्शन में मधुर जीवन के लिए व्यवहार को बेहतर बनाने का मार्गदर्शन
भागमभाग भरी जिंदगी से मनुष्य के हाथों से शांति छिटकती जा रही दिया गया है। उनका मानना है, "महान लोग शत्र के साथ भी महान
है। अर्थ केन्द्रित जिंदगी ने मनुष्य को मशीन बना दिया है। धैर्य और व्यवहार करते हैं। जबकि हल्के लोग दोस्त के साथ भी हल्का व्यवहार
सहनशीलता जैसे सद्गुण कमजोर होते जा रहे हैं। आज का इंसान किया करते हैं। जो सबके साथ सलीके से पेश आते हैं, सभी से
बाहर से खूब समृद्ध हुआ है, पर भीतर में पलने वाली चिंताएँ, तनाव, सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करते हैं, मित्रों के साथ भी सहजतापूर्ण
क्रोध, इच्छाएँ उसे अशांत करती रहती हैं। ऐसे में व्यक्ति एक ऐसे सरल व्यवहार करते हैं वे सदा महान व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं।" श्री ।
एवं वैज्ञानिक मार्ग की तलाश में है जो उसे शांति का सुकून प्रदान कर चन्द्रप्रभ व्यवहार को उत्तम बनाने के लिए निम्न मार्गदर्शन देते हैं -
सके एवं चिंता-तनाव-इच्छाओं के मकड़जाल से बाहर निकाल सके। 1.जीवन में विनम्रता को अपनाएँ।
श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन शांति और सफलता पाने का दर्शन है। 2.सुबह उठकर बड़ों को प्रणाम करें।
यद्यपि शांति और सफलता दो अलग-अलग पहलू हैं फिर भी उनके 3. मुस्कुराकर बोलने व मिलने की आदत डालें।
दर्शन में इन दोनों के बीच में सामंजस्य स्थापित किया गया है। श्री 4.सभी के साथ सभ्यता, शिष्टता व नम्रता से पेश आएँ।
चन्द्रप्रभ ने सफलता की बजाय शांति को विशेष महत्व दिया है। उनका 5.सम्मान लेने की बजाय देने की भावना रखें।
मानना है, "शांति ही जीवन का सबसे बड़ा स्वर्ग है, शांति ही अपने 6. दूसरों का दिल दुखाने वाली बातें न बोलें।
आप में सुख है और वास्तविकता तो यह है कि शांति को पाना ही 7.शब्दों का प्रयोग सावधानी से करें।
जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। वे स्वयं को शांतिदूत कहते हैं एवं 8.किसी का उपहास न उड़ाएँ।
शांति के मार्ग पर कदम बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं। उनका दृष्टिकोण है, 9.तर्क करें, पर तकरार नहीं।
"निश्चित ही पैसा मूल्यवान है, लेकिन शांति पैसे से भी ज्यादा 9. प्रेमी-हृदय - प्रेम संसार का प्राण-तत्व है। प्रेम बिना सारी मूल्यवान ह। निश्चय हा पत्ना का कामत है, पर शाति पत्नी से भा ज्यादा धरती रिक्त है। सभी धर्मों में प्रेम को किसी न किसी रूप में अपनाने की
कीमती है। संतान का मोल अनमोल होता है, लेकिन शांति का मोल बात कही गई है। जीसस ने प्रेम को धर्म का सार कहा है । कबीर का यह
संतान से भी ज्यादा मूल्यवान होता है। जीवन में वह हर डगर स्वीकार्य दोहा प्रसिद्ध है -
है, वह हर व्यक्ति स्वीकार्य है, वह जिसके पास बैठने से, रहने से या पोथी पढि-पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
जीने से हमारी शांति को कोई खतरा न होता हो।" उनके दर्शन में शांतढाई आखर प्रेम का, पढे सो पंडित होय ॥
जीवन जीने के लिए निम्न मार्गदर्शन दिया गया है - श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन भी इंसान को प्रेम के रास्ते पर कदम बढ़ाने
1.चिंतामुक्त जीवन- मानवीय स्वभाव का नकारात्मक पहलू है के लिए प्रेरणा देता है। उनके दर्शन में प्रेम और मोह का सुंदर विश्लेषण
चिंता। चिंता चिता से भी भयानक है। वर्तमान में चिंता का स्तर बहुत प्रस्तुत हुआ है। वे मोह को हटाने और प्रेम को बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं।
बढ़ गया है। व्यक्ति पर बचपन से लेकर पचपन तक चिंता हावी रहने उनका दृष्टिकोण है, "प्रेम में विश्व की सारी समस्याओं का समाधान
लगी है। चिंता के चलते व्यक्ति की शांति समाप्त हो गई है। चिंता से निहित है।" उनके दर्शन में कहा गया है, "पत्नी से जुड़ा प्रेम सामान्य
शरीर और मस्तिष्क पर भी नकारात्मक परिणाम आने लगते हैं। चिंता 66 » संबोधि टाइम्स
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