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उसका क्रोध अपने आप छूट जाएगा। निराशा, घुटन अपने आप चले जाएँगे,तनाव और चिंताएँ स्वत: विलीन हो जाएँगी।"
2.जीवन-शैली में निखार - व्यक्ति जैसा जीवन जीता है वैसा ही उसका व्यक्तित्व बनता है। मधुर जीवन के लिए श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन- शैली को अच्छा बनाने की सीख दी है। जीवन-शैली को व्यवस्थित करके व्यक्ति जीवन को आनंदपूर्ण बना सकता है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में सुंदर जीवन-शैली पर मार्गदर्शन के रूप में निम्न सूत्र मिलते हैं -
1.सूर्योदय से पहले उठे।
2. माँ-बाप, बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम कर सबके प्रति आदर भाव समर्पित करें।
3.घर का वातावरण अच्छा बनाएँ। 4.हर चीज की साफ-सफाई पर ध्यान दें। 5.सबके साथ शालीनता से पेश आएँ। 6.बड़ों को देखकर उनसे आगे बढ़ने की प्रेरणा लें।
3. स्व-प्रबंधन - हर सफलता के पीछे एक प्रबंधन व्यवस्था निहित होती है। वैसे ही मधुर जीवन के लिए स्वयं का व्यवस्थित होना अति आवश्यक है। स्वयं को व्यवस्थित करने के लिए श्री चन्द्रप्रभ ने निम्न प्रेरणाएँ दी हैं
1.सामान को व्यवस्थित रखें। 2.समय के पाबंद बनें। 3.धैर्य, प्रेम और संयम से बोलें। 4. हर कार्य को प्रभु की पूजा मान कर करें। 5.प्रतिदिन पन्द्रह मिनट प्रार्थना करें। 6.किसी भी कार्य को छोटा न समझें।
4. सरल स्वभाव - हर व्यक्ति का जन्मतः एक स्वभाव होता है और उसी स्वभाव से उसका जीवन संचालित होता है। स्वभाव अर्थात् अंतर्मन का गहरा संस्कार । व्यक्ति अपने संकल्प से अपने स्वभाव को सरल बना सकता है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में सरल स्वभाव को मधुर जीवन का अनिवार्य अंग माना गया है। वे कहते हैं,"कपड़े बदलकर संत बनना आसान है, पर स्वभाव बदलकर संत बनना असली साधना है। एक अच्छा स्वभाव सौ करोड़ की सम्पदा से अधिक मूल्यवान है।" श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में स्वभाव को सौम्य एवं सरल बनाने के लिए निम्न सूत्र दिए गए हैं -
1. गुस्सा नहीं करूँगा, किसी को तभी डाँट्रॅगा जब उसकी पहले की तीन ग़लतियों को माफ कर चुका होऊँगा।
2. जैसे के साथ तैसा वाली नीति नहीं अपनाऊँगा. मैं बडप्पन रखंगा।
3. अपने आपको हर हाल में सकारात्मक रमूंगा। 4.सदा अच्छी सोहबत रमूंगा। 5.शराब व नशे से दूर रहूँगा।
5.तनाव-मुक्ति - आधुनिक जीवन शैली के कारण तनाव जीवन का हिस्सा बन चुका है। हर व्यक्ति तनावग्रस्त है। तनाव व्यक्ति को भीतर से खोखला कर देता है। यह शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति का दुश्मन है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में मधुर जीवन जीने के लिए तनाव से मुक्त होने की प्रेरणा दी गई है। श्री चन्द्रप्रभ के व्यक्तित्व- निर्माणपरक साहित्य में तनाव-मक्ति पर विस्तत रूप से वैज्ञानिक-
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्राप्त होता है। वे कहते हैं, "तनाव से घिरे व्यक्ति की मन:स्थिति का नाम ही नरक है। अगर व्यक्ति यह संकल्प कर ले कि जीवन में जो कुछ होगा उसे मैं प्रकृति की व्यवस्था का हिस्सा भर मानूँगा और जीवन को सहज भाव से जीते हुए हर हाल में मस्त रहूँगा वह तनाव और अवसाद से मुक्त होने में अवश्य सफल हो जाएगा।" उनके द्वारा तनाव मुक्त जीने के लिए दिए गए व्यावहारिक उपाय आम आदमी के लिए अति उपयोगी हैं। उन्होंने तनाव मुक्ति हेतु निम्न मार्गदर्शन दिया है
1.जीवन में सदा हँसने-मुस्कुराने की आदत डालिए। 2.कुछ समय प्रेम,शांति और मिठास भरा संगीत सुनिए। 3. थोड़ा-सा पैदल चलने की आदत डालिए। 4. प्रतिदिन दस से पन्द्रह मिनट योगासन अवश्य कीजिए। 5.हमेशा अच्छी नींद लीजिए। 6.थोड़ी देर ध्यान अवश्य कीजिए।
7.निराशावादी विचारों का त्याग कर आशा और उत्साह का संचार कीजिए।
8.थोड़ा-सा मेल-मिलाप बढ़ाइए। 9.अपने हर कार्य को धैर्य और शांतिपूर्वक सम्पन्न कीजिए।
6. सकारात्मक मस्तिष्क - मस्तिष्क प्रकृति की अद्भुत रचना है। मस्तिष्क का रचनात्मक उपयोग करके व्यक्ति आगे बढ़ सकता है। जो मस्तिष्क का सही उपयोग नहीं करते, उनका मस्तिष्क धीरे-धीरे निष्क्रिय-नकारात्मक हो जाता है। हमें खाली नहीं,खुले मस्तिष्क का मालिक बनना चाहिए। खाली दिमाग को शैतान का घर कहा गया है। स्कूटर की सीट फाड़ देना, ट्यूब की हवा निकाल देना, मील के पत्थरों पर लिखे शब्दों को बदल देना जैसे काम खाली मस्तिष्क वाले करते हैं। इसलिए श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में मधुर जीवन के लिए दिमाग का सक्रिय, सचेतन और सकारात्मक उपयोग करने की प्रेरणा दी गई है। उनका दृष्टिकोण है, "दुनिया में अधिकतर वे ही लोग शैतानी करने पर उतरा करते हैं जो खाली दिमाग के होते हैं।" उन्होंने मस्तिष्क का सार्थक उपयोग करने के लिए कुछ सूत्रों को जीवन में आत्मसात् करने का मार्गदर्शन दिया है, वे हैं
1.हर समय व्यस्त रहें व हर हाल में मस्त रहें। 2. खुद को लाफिंग बुद्धा' बनाएँ। 3.जीवन के प्रति अच्छा नजरिया रखें।
इस तरह दिमाग को सदा स्वस्थ, सक्रिय, सकारात्मक और आनंदमय बनाए रखना जीवन की महान सफलता है।
7.वाणी-विवेक- वाणी इंसान की बहुत बड़ी ताकत है। वाणी ही व्यक्ति को जानवरों से भिन्न करती है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं,"जीवन में से अगर वाणी को निकाल दिया जाए तो इंसान चलती-फिरती मशीन भर हो जाएगा।" संसार के व्यवहार का भी मुख्य आधार है वाणी। वाणी सज्जनों का आभूषण है तो दुर्जनों का शस्त्र। शतपथब्राह्मण में कहा गया है, 'वाची वा इद सर्व प्रभवति' अर्थात् वाणी से ही यह संसार उत्पन्न है।" वाणी से व्यक्ति मधुर जीवन भी जीता है और इसी से दुःख भी पाता है। अगर व्यक्ति केवल बोलने की कला सीख जाए ता वह जावन म सुखा, सफल एव मधुर जावन का मालिक बन सकता है। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन व्यक्ति को शरीरगत संदरता के साथ
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