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________________ 6. तत्कालीन निर्णय की प्रतिभा व क्षमता अर्जित करें। 4.गुस्सा छोड़ें और मुस्कान बढ़ाएँ। 7.भीतर में उत्साह का संचार करते रहें। 5.गहरी नींद लें। 8.रंग की बजाय जीवन जीने के ढंग पर ध्यान दें। 6.सोच को सकारात्मक बनाएँ। 9.कठोर मेहनत - प्रमाद जीवन का प्रबलतम शत्र है। ऋग्वेद में 7. एकाग्रता बढ़ाने वाले अभ्यास करें। कहा गया है, "आलसी मनुष्य अपना पुरुषार्थ गँवा देते हैं, जिससे उन्हें जीवन औरमधरता कहीं भी सफलता नहीं मिलती, उन्हें सभी ओर से निराशा के ही दर्शन ___ हर व्यक्ति मधुर जीवन जीना चाहता है। मधुर जीवन के लिए करने पड़ते हैं। व्यक्ति को वही प्राप्त होता है जैसी वह मेहनत किया मनुस्मृति में चार आश्रमों की व्यवस्था दी गई है - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, करता है।" श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन सफलता के लिए कठोर मेहनत पर वानप्रस्थ और संन्यास । वर्तमान में आश्रम व्यवस्था के प्रति व्यक्ति का जोर देता है। वे आरक्षण नीति को अनुचित मानते हैं। उन्होंने युवाओं रुझान कम हो गया है। ऐसी परिस्थिति में मधुर जीवन के लिए अन्य को योग्यता एवं प्रतिभा को जागृत करने की प्रेरणा दी है। उनका मानना मार्ग की तलाश है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में जीवन को मधुर बनाने के है, "सबके बीच सम्मान और समृद्धि भरी जिंदगी आदमी तभी जी लिए सरल एवं नया मार्गदर्शन दिया गया है। उनका दर्शन कहता है, सकता है जब कोई व्यक्ति अपनी ओर से सफलता को पाने की पहली "जीवन में चाहे जैसी परिस्थिति आए हम हर हाल में खुश रहें। हमारे कीमत चुकाए और वह कीमत है कठोर मेहनत।" श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन का एक ही मंत्र हो- लोग रहेंगे बस्ती में हम रहेंगे मस्ती में। कठोर मेहनत के लिए चार प्रेरणा मंत्र दिए हैं - आनंद हमारी जाति बन जाए और उत्सव हमारा गोत्र।" आजकल 1.किसी भी कार्य को छोटा न समझें। व्यक्ति केवल धन, संपत्ति एवं सुविधा साधनों को ही मधुर जीवन का 2. हर कार्य को पूर्णता देकर ही विश्राम लें। मूल आधार मानता है। पर यह पूर्ण सत्य नहीं है। जहाँ एक तरफ 3. पूरे मन से हर कार्य को सम्पन्न करें। सुविधासम्पन्न दिखाई देने वाला व्यक्ति भीतर से दुःखी और अशांत है 4.कम-से-कम 12 घंटे मेहनत अवश्य करें। वहीं दूसरी तरफ अभावग्रस्त व्यक्ति सुविधा-साधनों को संगृहीत करने 10. कार्य योजना - किसी भी कार्य को पूर्णता देने के लिए के लिए बेचैन है। योजना बनाना आवश्यक है। श्री चन्द्रप्रभ का विचार दर्शन सफल श्री चन्द्रप्रभ ने सुख-दुःख का संबंध साधनों के होने न होने से नहीं जीवन जीने के लिए कार्य-योजना बनाने की प्रेरणा देता है। वे कहते हैं, ह, नोटा जोड़ा है। उनकी दृष्टि भिन्न है। वे धन या सुविधाभाव के कारण स्वयं "दुनिया में बातों के बादशाह बहुत होते हैं आचरण के आचार्य कम।। को दु:खी मानने वाले और सुविधासम्पन्न होने के कारण स्वयं को सुखी लोग केवल बातें करेंगे। आप मनोयोगपूर्वक लग जाओ, सारी सृष्टि मानने वाले को अज्ञानी कहते हैं। जीवन को वरदान बनाने के लिए आपके सहयोग के लिए तैयार रहेगी।" उनका दर्शन जीवन का मूल्य समझने और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट 11. बेहतरीन शिक्षा - व्यक्ति का पूरा जीवन कैसा होगा यह करने की प्रेरणा देता है। श्री चन्द्रप्रभ का मानना है. "द:ख का मल उसकी शिक्षा पर निर्भर करता है। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन शिक्षा को । कारण रुग्ण एवं विक्षिप्त चित्त है। स्वर्ग-नर्क कोई आसमान या पाताल सफलता की नींव मानता है। वे शिक्षा के साथ विचारों को उत्तम बनाने के नक्शे नहीं हैं, वरन् ये दोनों जीवन के ही पर्याय हैं। शांत चित्त स्वर्ग व जीवन की कला का प्रशिक्षण पाने की भी प्रेरणा देते हैं। उनका है,अशांत चित्त नरक; प्रसन्न हृदय स्वर्ग है, उदास मन नरक।हर प्राप्त में विचार-दर्शन युवापीढ़ी को शिक्षा के प्रति सजग रहने, लड़कियों को आनंदित होना स्वर्ग है, व्यर्थ की लालसाओं में उलझे रहना नरक। यह श्रेष्ठ शिक्षा दिलवाने, कॅरियर बनने के बाद शादी का निर्णय करने का व्यक्ति पर निर्भर है कि वह अपने आपको नरक की आग में झलसाए मार्गदर्शन देता है। रखना चाहता है या स्वर्ग के मधुवन में आनंदभाव से अहो नृत्य करना 12. धैर्य-किसी भी कार्य की सिद्धि पहले प्रयास में हो जाए, यह चाहता है।" श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में मधुर जीवन के लिए निम्न सूत्रों जरूरी नहीं है, इसलिए जीवन में धैर्य की आवश्यकता होती है। धैर्य को जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा दी गई है - आत्मविश्वास को कमजोर नहीं होने देता है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में 1.चैत्तसिक प्रसन्नता - मधर जीवन के लिए चित्त की प्रसन्नता धैर्य और आत्मविश्वास सफलता के दो संबल माने गए हैं। उन्होंने धैर्य पहली शर्त है। प्रसन्न हृदय में ही परमात्मा का वास होता है। अगर के संदर्भ में कहा है, "जीवन में बाधाओं की चाहे सड़क पार करनी हो व्यक्ति दिन की शुरुआत प्रसन्नता से. मुस्कान से करेगा तो उसका पूरा या रेल की पटरी धैर्य और साहस का दामन कभी मत छोड़िए।" दिन आनंद भाव से गुजरेगा, पर उदास मन, आलस्य भाव से दिन की 13. मानसिक विकास - इंसान की सबसे बड़ी शक्ति है शुरुआत करेगा तो पूरा दिन व्यर्थ में ही जाएगा। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन मस्तिष्क। इसका विकास करके व्यक्ति महान सफलताओं को कहता है, "अपने हर दिन की शुरुआत इतने स्वस्थ और प्रसन्न मन से उपलब्ध कर सकता है। जीवन को बनाए रखने के लिए हृदय जरूरी है कीजिए कि दिन, दिन नहीं अपितु ईश्वर की ओर से मिला हुआ वरदान और जीवन को चलाने के लिए मस्तिष्क आवश्यक है। मस्तिष्क से ही बन जाए। बहुत लोग सोते हैं तो सोये के सोये ही रह जाते हैं, हमें जीवन जीवन की सारी गतिविधियाँ संचालित होती हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने बौद्धिक मिल गया, यह क्या कम उपहार है? अच्छा होगा कि आज जो दिन विकास के निम्न सूत्र दिए हैं - मिला है, उसकी खुशी मनाई जाए।" इस तरह उन्होंने मधुर जीवन के 1.पौष्टिक भोजन लें। लिए सर्वप्रथम प्रसन्न रहने की सीख दी है। वे प्रसन्नता को सभी 2.प्रतिदिन योग एवं व्यायाम करें। समस्याओं का समाधान करने वाला मानते हैं। उनकी दृष्टि में, "अगर 3.गहरी-लम्बी श्वासोश्वास का अभ्यास करें। व्यक्ति सुबह-सुबह दो मिनट तक मुस्कुराने का प्रयोग कर ले तो 64» संबोधि टाइम्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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