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विश्वास रखें, दूसरा खुल भी जाता है। हमारा यह विश्वास और अंतर्दृष्टि आत्मीयता की भावनाएँ कम होती जा रही हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा ही हमें अपने जीवन में सहजता और शांति का आचमन करा पाएगी।" तो आने वाले कल में स्थिति भयावह हो जाएगी। इस स्थिति को
6. प्रतिक्रिया-मुक्ति - मनोविज्ञान का एक नियम है : वाद, संभालना व सुधारना बेहद जरूरी है। इस प्रकार के पारिवारिक माहौल प्रतिवाद और संवाद। संवाद के लक्ष्य से किया गया वाद, प्रतिवाद को अच्छा बनाने के लिए श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन सरल, उत्तम एवं सार्थक होता है। क्रिया की प्रतिक्रिया सकरात्मक रूप में हो तो अच्छे वर्तमानोपयोगी है। परिवार में किस तरह रहना और जीना चाहिए, परिणाम आते हैं, पर नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ द्वंद्व पैदा कर देती हैं। श्री प्रत्येक सदस्य के क्या कर्तव्य हैं, रिश्तों में मिठास लाना किस तरह चन्द्रप्रभ का दर्शन प्रतिक्रियाओं से मुक्त रहने की प्रेरणा देता है। संभव है, घर के वातावरण को स्वर्ग सरीखा कैसे बनाया जा सकता है, प्रतिक्रिया से बचने के लिए श्री चन्द्रप्रभ ने प्रतिक्रिया न करने का इत्यादि सभी पहलुओं पर उनका दर्शन बेहतरीन मार्गदर्शन देता है। श्री संकल्प लेने व समता-सहिष्णुता को आत्मसात् करने का मार्गदर्शन चन्द्रप्रभ के दर्शन का पारिवारिक दृष्टिकोण क्या है? इसको समझने के दिया है। वे कहते हैं, "शांति का स्वामी वही है जो निरपेक्ष रहता है हर लिए आगे विभिन्न बिन्दुओं में विवेचन किया गया है। परिस्थिति से। शांति के क्षणों में शांत हर कोई रहता है, जो अशांति के 1.खुशहाल परिवार - व्यक्ति के जीवन का मूल आधार परिवार वातावरण में भी शांत बना रहे, उसी की बलिहारी है।"श्री चन्द्रप्रभ का है। परिवार जीवन की पहली पाठशाला है। विद्यालय शिक्षा देते हैं, पर दर्शन हर हाल में शांतिपूर्ण जीवन जीने की सीख व समझ देता है। परिवार संस्कार देता है। अच्छे समाज के निर्माण के लिए परिवार का उनकी दृष्टि में,"शांति ही स्वर्ग है और अशांति ही नर्क।" वर्तमान में अहिंसक, व्यसनमुक्त और गरिमापूर्ण होना आवश्यक है। श्री चन्द्रप्रभ प्रतिदिन अशांत हो रहे मनुष्य को शांत जीवन जीने का मार्गदर्शन का दर्शन प्रेमपूर्ण परिवार के निर्माण की प्रेरणा देता है। उनका मानना मिलना अत्यावश्यक है। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन शांति पाने के लिए कुछ है, "जब सात वार मिलते हैं तो सप्ताह बनता है और सारे लोग और बिन्दुओं का भी संकेत करता है जो इस प्रकार हैं
मिलजुलकर रहते हैं तो परिवार बनता है। अगर व्यक्ति सातों वारों को 1.शांति चाहिए तो शांत रहिए।
स्वर्ग बनाना चाहता है, तो आठवें वार परिवार' को स्वर्ग बनाएँ।" घर 2.जो है जैसा है उसमें खुश होना सीखिए।
को पहला मंदिर मानना और धर्म की शुरुआत मंदिर-मस्जिद की 3.प्रकृति की व्यवस्थाओं को स्वीकार कीजिए।
बजाय घर से करना उनका दर्शन की नई देन है। उन्होंने घर-परिवार को 4.देखने व सोचने की मानसिकता में परिवर्तन लाइए।
खुशहाल बनाने के लिए निम्न प्रेरणा सूत्र दिए हैं - 5.स्वयं को सकारात्मक बनाए रखिए।
1. सभी सदस्य एक सूत्र में बँधकर रहें। 6. लोग क्या कहेंगे' की चिंता छोड़ दीजिए।
2. माता-पिता के रहते बेटे अलग न हों। 7.जीवन को व्यवस्थित कीजिए।
3. पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी के अनुरूप ढले और नई पीढ़ी पुरानी सभी बिन्दुओं के अनुशीलन से स्पष्ट होता है कि श्री चन्द्रप्रभ का पीढ़ी को दर्शन शांतिमय जीवन जीने की मुख्य प्रेरणा देता है। उनके साहित्य में समझने की कोशिश करे। शांति तत्त्व पर विस्तार से विवेचन किया गया है। अशांति के द्वार पर 4. हर घर में रामायण का पाठ हो, घर के लिए रामायण को खडे व्यक्ति के लिए यह मार्गदर्शन मील के पत्थर की तरह उपयोगी है। आदर्श माना जाए।
5. एक-दूसरे को पूरा सम्मान व स्वतंत्रता दें। परिवार दर्शन
6. सुबह जल्दी उठकर सभी घर को सजाने-सँवारने में सहयोग परिवार विश्व की नींव है। जैसा परिवार वैसा समाज, जैसा समाज करें। वैसा राज्य, जैसा राज्य वैसा देश और जैसा देश वैसे विश्व का निर्माण 7. सप्ताह में एक दिन सभी सदस्य साथ बैठकर भोजन करें। होता है। विश्व को सुधारने के लिए परिवार को सुधारना आवश्यक है। 8. घर में स्वच्छता बनाए रखें। भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को परिवार त्याग कर साधना के मार्ग पर 9. एक-दूसरे को पूरा सहयोग करें। कदम बढ़ाने की अथवा गृहस्थ जीवन को मर्यादापूर्वक जीने की प्रेरणा 10. परिवार को व्यसन-मुक्त रखें। दी गई है। हर किसी का जन्म परिवार के बीच होता है। व्यक्ति जन्म से 11. सभी अपने-अपने कर्तव्य निभाएँ। मृत्युपर्यन्त परिवार में रहता है। परिवारिक दायित्वों को निभाना व्यक्ति 2.रिश्तों में मिठास- अच्छे परिवार के निर्माण के लिए रिश्तों को का पहला कर्तव्य होता है। जीवन-निर्माण की शुरुआत परिवार से अच्छा बनाना जरूरी है। परिवार में अनेक तरह के रिश्ते होते हैं - माँहोती है। श्रेष्ठ परिवार ही श्रेष्ठ जीवन का निर्माण कर सकता है। बाप और पुत्र का रिश्ता, भाई-भाई का रिश्ता, देवर-भाभी का रिश्ता, __ वर्तमान की परिस्थितियों पर ध्यान दें तो पारिवारिक स्वरूप में सास-बहू का रिश्ता, पति-पत्नी का रिश्ता आदि। जीवन को मीठा काफी बदलाव आ चुका है। भागमभाग भरी जिंदगी एवं स्वार्थ युक्त बनाने के लिए परिवार में मिठास बढ़ानी चाहिए और परिवार में मिठास सोच के चलते पारिवारिक विघटन की स्थितियों में बाढ-सी आ गई बढ़ाने के लिए रिश्तों में मिठास बढ़ाना अनिवार्य है। श्री है। रिश्तों में मिठास की बजाय कड़वाहटें घुल गई हैं। व्यक्ति के भीतर चन्द्रप्रभ के दर्शन में परिवार के हर रिश्ते को मधुर बनाने का सुंदर पल रही स्वतंत्रता की भावना, स्वार्थ की प्रवृत्ति, संकीर्ण मानसिकता ने मार्गदर्शन दिया गया है। उनका मानना है, "लक्ष्मी का निवास बैकुण्ठ उसे पारिवारिक प्रेम से दूर कर दिया है। कर्तव्य व अधिकार की भाषाएँ में नहीं, उस घर में होता है जहाँ पिता-पुत्र, पति-पत्नी, भाई-भाई, बदलती जा रही हैं। भाई-भाई, सास-बहू, माता-पिता और पुत्र, पति- सास-बहू, देवरानी-जेठानी और देवर-भाभी के बीच प्रेम, सम्मान, पत्नी और देवराणी-जेठाणी के रिश्तों में प्रेम, सहयोग, त्याग, सहयोग और मिठास भरा व्यवहार होता है।" श्री चन्द्रप्रभ ने घर68 संबोधि टाइम्स
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