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________________ ध्यान योग श्री चन्द्रप्रभ का मानना है कि पिछले पाँच-छह दशकों में बुद्धि एवं विज्ञान का बहुत विकास हुआ है फिर भी मनुष्य मन के अंधकार से, अज्ञान से उबर नहीं पाया है। परिणामस्वरूप बाहर से सुखी-संपन्न दिखाई देने वाला इंसान भीतर से व्यथित पीड़ित है। इसलिए वह एक ऐसे श्रेष्ठ मार्ग की तलाश में भटक रहा है जो उसे मुक्त कर सके मन की पीड़ाओं से और रसास्वादन दे सके भीतर का श्री चन्द्रप्रभ की यह पुस्तक ऐसे ही श्रेष्ठ मार्ग का मार्गदर्शन देती है। श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में धर्म-अध्यात्म के सिद्धांतों को विज्ञान की कसौटी पर कसकर आम जनमानस के सामने रखने में सफल हुए हैं। उनकी यह किताब बेहद लोकप्रिय हुई है। प्रस्तुत पुस्तक मनुष्य को मन के अंधकारों से मुक्त करने का वैज्ञानिक मार्गदर्शन प्रदान करती है। और उसके लिए ध्यान साधना को आधार स्तंभ मानकर प्रस्तुत करती है। प्रस्तुत पुस्तक अजमेर में संपन्न हुए संबोधि ध्यान शिविर के दौरान श्री चन्द्रप्रभ के मुख से निःसृत अमृतवाणी एवं साधकों की जिज्ञासाओं के समाधानों का संकलन है। ध्यान मार्ग द्वारा किस तरह इंसान मानसिक एवं आध्यात्मिक सत्यों से रूबरू हो सकता है, उसी मार्गदर्शन से जुड़ी पुस्तक का नाम है ध्यान योग। यह मात्र पुस्तक नहीं, सत्य को प्रकट करने वाली सहज अभिव्यक्ति है । इसमें एक विशेष तरह की गहराई है। इस पुस्तक में व ध्यान विधियों में उतरना किसी रोशनी में उतरना है जिसकी तरंगों से बाहर का नहीं, भीतर का संसार भली-भाँति पहचाना जा सकता है। अंतर्यात्रा इस पुस्तक में माउंट आबू में आयोजित हुए संबोधि साधना शिविर के दौरान श्री चन्द्रप्रभ द्वारा साधकों को दिए गए आध्यात्मिक प्रवचन व उनकी जिज्ञासाओं के समाधान का संकलन है। इसमें अध्यात्म के उस मार्ग की चर्चा है जो हमें भीतर में उतरकर आंतरिक आनंद और सुख से रूबरू करवाता है। श्री चन्द्रप्रभ ने वर्षों की साधना करके जो अनुभव किया उन्हीं रहस्यों को सीधे-सरल शब्दों में यहाँ प्रस्तुत किया गया है । यह पुस्तक हमें भीतर में उतरने की प्रेरणा देती है, उसका मार्ग दिखाती है, मार्ग में आने वाली समस्याओं का समाधान देती है और शांति, मुक्ति, आनंद से भरे पथ पर पहुँचने में श्रेष्ठ भूमिका निभाती है। अध्यात्म के रहस्यों को जानने एवं ध्यान से जुड़ी जिज्ञासाओं का समाधान पाने वालों के लिए यह पुस्तक अनमोल उपहार है। अपने आप से पूछिए मैं कौन हूँ इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने भारतीय दर्शन के इस यक्ष प्रश्न को कि 'मैं कौन हूँ' को सुलझाने की कोशिश की है। उन्होंने सत्य की प्राप्ति के लिए अनुकरण की बजाय एकांत, मौन, ध्यान एवं धैर्य की साधना को उपयोगी बताया है। उन्होंने सत्य का प्रवक्ता बनने की बजाय सत्य का ज्ञाता होना श्रेष्ठ माना है। वे कहते हैं, "प्रवक्ता जानता है और ज्ञाता जानता भी है और जीता भी है।" उन्होंने लगातार स्वयं की विपश्यना करने, सत्संग करने और स्वयं को सार्थक दिशा देते रहने की प्रेरणा दी है। निसंदेह 'मैं कौन हूँ' का बोध देने में यह पुस्तक खरी उतरी है। इसमें साधना से लेकर समाधि तक का क्रमिक मार्गदर्शन दिया गया है। जो जिज्ञासु स्वयं को जानना चाहते हैं, अंधकार से प्रकाश Jain Education International की ओर और प्रकाश से अमृतत्व की और यात्रा करना चाहते हैं उनके लिए यह पुस्तक वरदान स्वरूप है। द योग 03 इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योग सूत्र के मुख्य सूत्रों पर बेहतरीन व्याख्या की है। जोधपुर स्थित साधनास्थली संबोधि धाम में साधकों के समक्ष दिए गए आध्यात्मिक प्रवचनों का संकलन इस पुस्तक में हुआ है। वर्तमान में योग की उपयोगिता, योग के सरल प्रयोग, योग के चमत्कार, योग द्वारा अज्ञान से मुक्ति, मानसिक क्लेशों से मुक्ति में योग की भूमिका, योग के आठ अंगों यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का सूक्ष्म एवं सरल वर्णन, योग का सार-संदेश आदि विविध विषयों पर बेहतर तरीके से विश्लेषण इस पुस्तक में किया गया है। उन्होंने योग सूत्र के खास सूत्रों को चुनकर उनके अर्थ, रहस्य और गूढ़ताओं को सहज, सरल एवं सुबोध शैली में हमारे सामने प्रस्तुत किया है। ये प्रवचन योग के प्रवेशद्वार भी हैं और योग को आत्मसात् करने वाली कुंजी भी मानव जाति को यह ग्रंथ हर दृष्टि से रोशनी देने का काम । करेगा। उन्होंने व्यक्ति को प्रतिदिन 1 घंटा योग, प्राणायाम व ध्यान को समर्पित करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने नए-पुराने सभी दार्शनिकों व परम्पराओं का भी उल्लेख किया है। उनके वक्तव्यों में तर्क के साथ भाव गहराई भी नज़र आती है। इस पुस्तक में वैज्ञानिक तरीके से योग की जो व्याख्याएँ हुई हैं वे व्यक्ति को योग-ध्यान की ओर बढ़ने और अमन दशा को घटित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। द विपश्यना इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने भगवान बुद्ध द्वारा प्रदत्त की गई साधना पद्धति 'विपश्यना' पर विस्तार से व्याख्या की है। जोधपुर में स्थित अंतर्राष्ट्रीय साधना स्थली संबोधि धाम के साधना सभागार में साधकों के समक्ष किए गए आध्यात्मिक संवादों का संकलन इस पुस्तक में बहुत ही आत्मीय ढंग से किया गया है। इसमें अवगाहन करते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम उस शिविर के ही अंग हैं। एक-एक शब्द अनुभव से निःस्तृत होता हुआ हमारे भीतर उतरता है । इन संवादों को पाकर हम निश्चय ही धन्य और आनंदविभोर हो उठेंगे। प्रस्तुत पुस्तक में साधक को किन-किन बातों की सावधानी रखनी चाहिए और साधना की गहराई में कैसे उतरना चाहिए, इसका सटीक मार्गदर्शन है। पुस्तक का एक-एक शब्द अनुभव से निःसृत होता हुआ हमारे भीतर उतरता है। इन संवादों से हम स्वयं में धन्यता एवं आनंददशा का अनुभव करने लगते हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने भगवान बुद्ध के 'महासति पट्टानसुत' का सुंदर विश्लेषण कर हमारे सामने सहज-सरल रूप में प्रस्तुत किया है । 'विपश्यना ध्यान की विशिष्ट विधि है।' इसका अनुशीलन कर अनेक साधकों ने सत्य से साक्षात्कार किया है, दुःखदौर्मनस्य का नाश किया है एवं निर्वाण को उपलब्ध किया है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, विपश्यना पर की गई चर्चा से वे स्वयं भी पुलकित, आनंदित एवं सत्य के रस से अभिभूत हैं। उनके साथ व्यक्ति इसमें उतरकर धीरे-धीरे भीतर के विकारों एवं अंतर्द्वन्द्वों से ऊपर उठने लगता है । पुस्तक का प्रत्येक शब्द, विचार, विलक्षण व अद्भुत है। उनकी For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स 49 www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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