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________________ ७ २७० साहित्य समाज और समय का दर्पण है। मानव-समाज का किस युग में कैसा स्वरूप, रहन-सहन और जीवन-शैली रही, इसका ज्ञान हमें साहित्य के द्वारा ही होता है। विश्व की नब्ज हम साहित्य के द्वारा ही पहचानते हैं। विश्व का स्वरूप चाहे अच्छा हो या बुरा, साहित्य उसे न केवल शब्दबद्ध करता है, अपितु विश्व को नई दिशाएँ एवं आशाएँ भी देता है। साहित्य के अभाव में देश और विश्व का भविष्य अंधकारमय हो जाता है। मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है अंधकार है वहाँ, जहाँ आदित्य नहीं है। ___ मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है। साहित्य और जीवन-जगत का परस्पर अंतर्संबंध है। जीवनजगत की स्थितियों से साहित्य प्रभावित होता है और साहित्य से जीवन-जगत पर प्रभाव पड़ता है। श्रेष्ठ साहित्य श्रेष्ठ जीवन का निर्माण करने के लिए नींव की तरह है। साहित्यिक कला ही मनुष्य को सही अर्थों में मनुष्य का गौरव प्रदान करती है। साहित्य की कला से शून्य व्यक्ति को नीतिशतक में पशुतुल्य बताया गया है। भर्तृहरि कहते हैं, "जो मनुष्य साहित्य एवं संगीत की कला से शून्य है, वह बिना सींग-पूँछ का पशु है।" साहित्य का मुख्य ध्येय मनुष्य को मार्गदर्शन और गरिमामय जीवन देना है। जिस साहित्य में मानव मात्र के कल्याण की भावना निहित है वह उत्तम साहित्य है। साहित्य सदा सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय होता है। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन एवं साहित्य विश्व-संस्कृति में दर्शन और साहित्य महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। दर्शन और साहित्य परस्पर जुड़े हुए हैं। दर्शन में जहाँ जीवन-जगत और अध्यात्म से जुड़े तत्त्वों को जिज्ञासा भाव से देखा जाता है, चिंतन और मनन कर सत्य का निष्कर्ष निकाला जाता है, वहीं साहित्य में उन निष्कर्षों को सौन्दर्य तथा अलंकार के साथ लिपिबद्ध किया जाता है। जमनालाल जैन कहते हैं, "विचारों का प्रकाशित रूपही साहित्य है।" इस तरह दर्शन की स्थापना का आधार साहित्य है और साहित्य की नींव दर्शन है। साहित्य से दर्शन का फैलाव, संस्कार-निर्माण और सद्ज्ञान में वृद्धि होती है। श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य में जो दर्शन प्रस्तुत हुआ है वह मानवसमाज के लिए मील के पत्थर की तरह आदर्श और मार्गदर्शक है। उनके दार्शनिक साहित्य से दर्शन जगत की गरिमा में कई गुना अभिवृद्धि हुई है। उनका दर्शन बेजोड़ और साहित्य अनुपम है। डॉ. नागेन्द्र ने लिखा है, "साहित्य जगत में श्री चन्द्रप्रभ एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिनका कृतित्व विश्व के लिए प्रेरणादायी एवं मार्गदर्शक बना है। श्री चन्द्रप्रभ का साहित्य: जीवनमूलक एवं व्यावहारिक 34 संबोधि टाइम्स in Education Internation For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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