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मौन है शिवपुर का सोपान।
होते झगड़े शांत, बने घर सचमुच स्वर्ग समान ।। मौन धर्म है, मौन साधना, समरसता की कुंजी । मौन महाव्रत, मौन तपस्या, ध्यानयोग की पूँजी । मन का मौन सधे तो सधता, सचमुच आतम-ज्ञान ।। बारह वर्ष मौन करने से, वचन-सिद्धि हो जाती। दो घंटा नित मौन करे तो नई ताजगी आती।
'चन्द्र' प्रभु से प्रीत लगाकर, पा लें शुभ वरदान ।।
श्री चन्द्रप्रभ के सान्निध्य में आयोजित संबोधि साधना शिविरों में भी मौन रखने पर विशेष रूप से प्रेरणा दी जाती है। उन्होंने मौन को साधना की नींव का मुख्य पत्थर माना है। मौन से जुड़ी उनके जीवन की निम्न घटनाएँ हैं
मौन का संकल्प - श्री चन्द्रप्रभ सन् 1991 में माउण्ट आबू में प्रवासरत थे। वे शाम को छत पर टहल रहे थे। टहलते टहलते वे डूबते सूर्य पर त्राटक करने लगे। थोड़ी देर में उनकी आँखें मुँद गई। वे ध्यानमग्न हो गए। लगभग दो घंटे बाद जब उनका ध्यान पूर्ण हुआ उनके अंतर्मन में संकल्प जगा कि आज से मैं एक वर्ष के लिए प्रतिदिन सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक मौन व्रत रखूंगा। तब से लेकर अब तक लगभग बीस वर्ष हो चुके हैं वे मौन व्रत को रख रहे हैं।
मौन से मिली शांति - श्री चन्द्रप्रभ के मौन-व्रत का संकल्प लेने के दूसरे दिन का वाकया है। उनके पिताजी महाराज ने उन्हें किसी बिन्दु को लेकर चार-पाँच कड़वी बातें सुना दी। श्री चन्द्रप्रभ को बुरा लगा। उनके मन में क्रिया-प्रतिक्रिया चलती रही। उन्होंने सोचा सुबह जैसे ही मौन व्रत पूरा होगा, मैं एक-एक बात का जवाब दूँगा। पर जब वे सुबह उठे तो उन्होंने देखा उनके भीतर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं हो रही थी, मन में सहज शांति थी । उसी क्षण उन्होंने दूसरा संकल्प ले लिया कि मौन के दौरान घटी घटना की मैं किसी प्रकार की क्रिया-प्रतिक्रिया नहीं करूंगा। इस संकल्प के बाद मौन ने उन्हें अंतर्मन की दिव्य शांति और आत्मिक आनंद का आलोक प्रदान किया।
संबोधि साधना मार्ग का प्रवर्तन
श्री चन्द्रप्रभ का व्यक्तित्व ध्यानयोगी के रूप में भी उभर कर आया है। उन्होंने ध्यान को गहराई के साथ आत्मसात किया और ध्यान से बहुत कुछ उपलब्ध किया। उनकी ध्यान योग साधना पर कई किताबें प्रकाशित हुई हैं। उन्होंने हम्पी और हिमालय की गुफाओं में साधना की और आत्म-प्रकाश की उपलब्धि के पश्चात् संबोधि साधना के मार्ग का प्रवर्तन किया। जिससे अब तक लाखों लोग लाभान्वित हो चुके हैं। वे ध्यान को साधना की आत्मा मानते हैं। वे कहते हैं, "प्रार्थना पहला चरण है और ध्यान अगला प्रार्थना में हम प्रभु से बातें करते हैं, जबकि ध्यान में प्रभु हमसे।" उनकी दृष्टि में, "प्रयासपूर्वक किया गया ध्यान एकाग्रता है, अनायास घटित होने वाली एकाग्रता ध्यान है। उन्होंने जीवन की नकारात्मकताओं से मुक्ति पाने के लिए ध्यान मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। उन्होंने ध्यान की अनेक वैज्ञानिक विधियाँ भी प्रतिपादित की हैं। वे तन, मन, चेतना की चिकित्सा के लिए ध्यान को राजमार्ग बताते हैं। उनकी ध्यान साधना से जुड़ी मुख्य घटनाएँ इस
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प्रकार हैं
गहन साधक श्री चन्द्रप्रभ सहयोगी संतों केसाथ कर्नाटक के गुन्टूर में प्रवासरत थे । वे वहाँ स्थित हम्फी की गुफाओं में साधना किया करते थे। तीन माह की साधना के दौरान उन्हें एक बार दीर्घावधि की समाधि सधी । वे लगातार 16 घंटों तक समाधिस्त रहे । समाधि की पूर्णता हुई तब उन्होंने देखा उनके चारों तरफ चंदन के चूर्ण की वृष्टि हुई है। संघस्थ गुरुभक्तों ने उसे इकठ्ठा किया। आज भी वह चमत्कारी और मनोवांछित देने वाला चूर्ण संबोधि धाम में है।
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योगशक्ति की भविष्यवाणी - मद्रास की बात है। पिता संत श्री महिमाप्रभ सागर, भ्राता संत श्री ललितप्रभ सागर के साथ श्री चन्द्रप्रभ कुन्नूर के पास नीलगिरि की घाटियों की ओर जा रहे थे । गुरुभक्त श्री विजय झाबक ने आग्रह किया कि वे आदि परा शक्ति की उपासिका योग माँ से जरूर मिलें श्री चन्द्रप्रभ ने भी उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की। श्री झाबक ने कहा- वे कहीं नहीं जाती हैं, पर श्री चन्द्रप्रभ ने कहा- आप उन्हें लेने जाइए। हमारा नाम लें, वे जरूर आएँगी । । वे उन्हें लेने पहुँचे। वे कार से उत्तरे कि योग माँ ने उन्हें देखते ही कहातुम्हें संतों ने मुझे बुलाने के लिए भेजा है न। मैं तो खुद काफी वर्षों से उनका इंतजार कर रही हूँ यह सुनकर वे हतप्रभ रह गए। योग माँ उनके साथ श्री चन्द्रप्रभ के पास पहुँचीं। श्री चन्द्रप्रभ को देखते ही योग माँ ने योग विद्या से पूजा की साम्रगी और आरती प्रकट की और श्री चन्द्रप्रभ की पूजा करते हुए आरती उतारी। यह देखकर योग माँ की शिष्य - शिष्याएँ भी आश्चर्यचकित रह गई। उन्होंने योग माँ से पूछा यह आप क्या कर रही हैं? योग माँ ने कहा- ये सामान्य पुरुष नहीं वरन् असाधारण आत्मा हैं । इन्हें आज से ठीक एक वर्ष बाद योगशक्ति प्राप्त होगी। ऐसी कुछ विशिष्ट बातें योग माँ ने बातचीत के दौरान श्री चन्द्रप्रभ के भविष्य को लेकर कहीं जो आगे चलकर सच साबित हुई। ऐसी सैकड़ों दिव्य घटनाएँ मुझे सुनने और जानने को मिली हैं। निष्कर्ष
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श्री चन्द्रप्रभ के समग्र जीवन पर दृष्टिपात करने से स्पष्ट होता है। कि वे भारतीय संस्कृति एवं दर्शन जगत् के उज्ज्वल नक्षत्र हैं। उन्होंने एक ओर भारतीय संस्कृति के मूलभूत तत्त्वों को युगीन संदर्भों में प्रस्तुत कर विश्व का ध्यान भारत की ओर खींचा है और भटकती युवा पीढ़ी को नई दिशा दी है वहीं दूसरी ओर दर्शन की दुरूहता को दूर कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उनका दर्शन, साहित्य, जीवन, विचार, व्यवहार और क्रियाकलाप सब कुछ सकारात्मकता, रचनात्मकता एवं विविधता लिए हुए हैं। इसी कारण वे वर्तमान के ऐसे संत, दार्शनिक, लेखक और व्यक्तित्व हैं जिनसे देश का हर व्यक्ति किसी-न-किसी रूप से अवश्य परिचित है। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। उनकी साधना, साहित्य-लेखन एवं मानवता से जुड़ी हुई सेवाएँ निरंतर प्रगति की ओर उन्नतिशील हैं। उन्हें समझना या उन पर लिखना संभव है, पर उनकी सम्पूर्णता को प्रकट करना असंभव है।
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संबोधि टाइम्स 33