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________________ श्री चन्द्रप्रभ वह प्रतिभा पुरुष हैं, जिन्होंने अल्पायु में ही बहुआयामी कार्य-योजना, धैर्य, मानसिक शक्ति, बौद्धिक प्रतिभा, मनोगत साहित्यिक व्यक्तित्व को स्वयं में उजागर किया है।" प्रसन्नता, क्रोध-संयम, चिंता-तनाव-मुक्ति, बोलने की कला, श्रेष्ठ श्री चन्द्रप्रभ एक प्रतिष्ठित दार्शनिक एवं साहित्यकार हैं। उनका व्यवहार जैसे पहलुओं पर मार्गदर्शन दिया है। साहित्य मधुर, भावपूर्ण और हृदय-स्पर्शी है। गहरी जीवन-दृष्टि और श्री चन्द्रप्रभ ने धार्मिक मूल्यों के अंतर्गत क्षमा, सर्वधर्म सद्भाव, मानवता की भावना उनके दर्शन एवं साहित्य में सर्वत्र समाविष्ट हुई है। अहिंसा, करुणा, प्रेम, न्याय, सत्य, त्याग, इच्छा-संयम, सत्संग, पुण्यउन्होंने साहित्य का सृजन मनोरंजन अथवा लोकरंजन के लिए नहीं, पाप, तीर्थ-यात्रा, मृत्यु-रहस्य, लेश्यामंडल, आत्मविकास-क्रम, जीवन के सत्य को उद्घाटित करने के लिए किया है। सुंदर व प्रभावी महाव्रत, वानप्रस्थ, संन्यास, विवेक, स्वर्ग-नरक, पूर्वजन्म-पुनर्जन्मसरल शब्दों में जीवन-जगत के सूक्ष्म रहस्यों को प्रस्तुत करना उनके पूर्णजन्म से जुड़े विविध बिन्दुओं पर गहनता से चर्चा की है। सामाजिक साहित्य की मुख्य विशेषता है। उनके दर्शन व साहित्य का मुख्य लक्ष्य मूल्यों के अंतर्गत उनके द्वारा समानता, मितव्ययिता, अपरिग्रह, मानव जीवन को प्रेमपूर्ण, ऊर्जावान तथा गरिमामय बनाना है। डॉ. अनेकांत, समन्वय, शिक्षा, सहयोग, सहभागिता, संगठन, वेंकट प्रकाश शर्मा कहते हैं, "श्री चन्द्रप्रभ की जीवन की गहराइयों के स्वावलंबिता, मानव-सेवा जैसे सिद्धांतों की प्ररूपणा की गई है। प्रति बेहद पकड़ है। वे एक महान जीवन-द्रष्टा हैं। जीवन के प्रति राष्ट्रीय मूल्यों के अंतर्गत उन्होंने नैतिकता, मानवीयता, राष्ट्र-प्रेम, उनका नजरिया बिल्कुल सहज और व्यावहारिक है। वे विकास में स्वस्थ-सकारात्मक राजनीति, नारी-स्वतंत्रता, सदाचार, सच्चरित्रता, विश्वास रखते हैं और रंग की बजाय जीवन जीने के ढंग को सुंदर बनाने कर्मयोग जैसे सिद्धांतों को प्रतिपादित किया है। आध्यात्मिक मूल्यों के की सीख देते हैं।" देवर्षि विजय भट्ट का मानना है, "श्री चन्द्रप्रभ अंतर्गत उन्होंने अनासक्ति, चित्त-शुद्धि, आत्मज्ञान, द्रष्टाभाव, कोऽहं, जीवन-दर्शन के महान चिंतक एवं प्रवक्ता हैं । वे हमारे देश में जीवन- मौन, अनुप्रेक्षा-विपश्यना, योग-साधना, ध्यान, कायोत्सर्ग, मृत्यु, उत्थान का नेतृत्व कर रहे हैं। उनके प्रेम एवं ज्ञान के प्रकाश से हजारों शून्य, सहजता, सचेतनता, भेद-विज्ञान, कैवल्य दशा, समाधि, जीवन प्रकाशमय हो रहे हैं। अनेक लोगों की जीवन-शैली सुधरी है ब्रह्मज्ञान, ईश्वर, मोक्ष आदि विभिन्न तत्त्वों की बेहतरीन मीमांसा और उन्हें नया जीवन जीने की प्रेरणा मिली है।" इस तरह श्री चन्द्रप्रभ प्रस्तुत की है। इस तरह श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन एवं साहित्य में विभिन्न का साहित्य व्यक्ति को नैतिक, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय व्यावहारिक, सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं मानवीय मूल्यों मर्यादाओं और मूल्यों से जोड़ने में सफल हुआ है। की जीवन-सापेक्ष विवेचना एवं स्थापना हुई है। श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य में सूक्ष्मता, विद्वत्ता, रोचकता, नवीनता श्री चन्द्रप्रभ द्वारा महापुरुषों पर लिखा गया साहित्य सर्वधर्म और मौलिकता का अद्भुत संगम है। लोग उनके साहित्य को बड़े चाव सद्भाव का स्वरूप लिए हुए है। उनके इस साहित्य से विभिन्न धर्मों से पढ़ते हैं। पढ़कर न केवल प्रफुल्लित होते हैं वरन् जीवन जीने की की आपसी दूरियाँ कम हुई हैं और सभी महापुरुषों के प्रति विराट दृष्टि कला भी सीखते हैं। महात्मा गाँधी ने कहा है, "वही साहित्य चिरंजीवी रखने की प्रेरणा मिली है। उनके साहित्य में राम व रामायण पर, कृष्ण रहेगा, जिसे लोग सुगमता से पचा सकेंगे।" निश्चित ही श्री चन्द्रप्रभ की गीता पर, पतंजलि के योगसूत्र पर, महावीर के आगमों पर, बुद्ध के का साहित्य सुगमता लिए हुए है, इसलिए वह सदा चिरंजीवी/ पिटकों पर, अष्टावक्र गीता पर विस्तार से विवेचन हुआ है। सभी कालजयी रहेगा। विवेचन धार्मिक और साम्प्रदायिक सद्भाव स्थापित करने में सफल श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन एवं साहित्य सत्यग्राहयता लिए हए है। रहे हैं। प्रो. ए. डी. बोहरा कहते हैं, "श्री चन्द्रप्रभ आत्ममनीषी एवं उनका साहित्य समय की परिधि में बँधा हआ नहीं है। साहित्य की चिंतनशील जीवन-दृष्टा हैं। उनका दृष्टिकोण शिवम् और विचार शायद ही ऐसी कोई विधा बची होगी, जिसे वे छ न पाए हों। सभी सार्वभौम हैं। वे भगवान महावीर, गौतम बुद्ध एवं उपनिषद् आदि श्रुति विधाओं एवं सभी दिशाओं में उनका साहित्य लेखन हआ है। उनके ग्रंथों के प्रभावी सूत्रों के माध्यम से जीवन और अध्यात्म की बात साहित्य में नई दृष्टि,नया संदेश और नया आलोक विद्यमान है। उन्होंने अत्यन्त सीधे सपाट वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। गंभीर विषयों को अपने साहित्य में अंतर्मन की संवेदनशीलता को यगीन छवि के साथ भी व्यावहारिक और मधुर बनाने में उनका कोई सानी नहीं है।" प्रस्तुत किया है। उन्होंने अतीत से प्रेरणा लेकर वर्तमान की जरूरतों भगवान श्रीराम पर व्याख्या करते हुए उन्होंने लिखा है, "मुझे राम और और सच्चाइयों से परिचित होकर भविष्य के लिए कछ आदर्श स्थापित महावीर में ज्यादा फर्क नजर नहीं आता। राम महावीर की भूमिका है, किए हैं। उन्होंने किसी धर्म या पंथ-विरोध की सीमाओं से जडा वहीं महावीर राम का उपसंहार। राम का 'र' जहाँ जैनों के पहले साहित्य सृजित नहीं किया है। उन्होंने मानवीय हित चिंतन के लक्ष्य को तीर्थंकर ऋषभदेव और इस्लाम के रहमोदीदार अल्लाह का सूचक है सामने रखकर समग्र इंसानियत के लिए साहित्य का सृजन किया है। वहीं राम का 'म' अंतिम तीर्थंकर महावीर और अंतिम पैगम्बर इस तरह श्री चन्द्रप्रभ मानवता के संदेशवाहक दार्शनिक हैं। मोहम्मद साहब का परिचायक है। राम का नाम लेने से समस्त तीर्थंकरों श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य ने जीवन-निर्माण, व्यक्तित्व-विकास और पैगम्बरों की वंदना हो जाती है।" इससे स्पष्ट होता है कि वे और मानवीय मूल्यों की स्थापना में अथक सहयोग दिया है। जीवन- उदारवादा दाशानकह। मूल्यों के अंतर्गत स्वभावगत सौम्यता, बेहतर मानसिकता, वाणीगत श्री चन्द्रप्रभ अनुसंधानमूलक साहित्य में भी गहरी पकड़ रखते हैं। मधुरता, व्यवहारगत शालीनता, समय की सार्थकता, पारिवारिक उन्होंने अनुसंधानमूलक विधा से ही अपना साहित्य-लेखन प्रारंभ प्रसन्नता और जीवन-प्रबंधन जैसे बिन्दुओं पर समग्रता से विवेचन किया था। उन्होंने जैनागम आयार-सुत्तं एवं समवाय-सुत्तं पर, प्राकृत हुआ है। व्यक्तित्व विकासपरक मूल्यों के अंतर्गत उन्होंने लक्ष्य- एवं हिन्दी साहित्य की सूक्तियों पर, खरतरगच्छ के इतिहास पर और संधान, कठोर पुरुषार्थ, आत्मविश्वास, समय-प्रबन्धन, उच्च शिक्षा, महावीर-वाणी पर अनुसंधान कार्य किया है। उन्होंने राजस्थान के संबोधि टाइम्स - 35 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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