SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का विशद् विवेचन कर विपुल साहित्य की रचना की और श्री चन्द्रप्रभ बताता है कि श्री चन्द्रप्रभ धर्मगुरु, समाज सुधारक एवं राष्ट्रवादी चेतना ने जीवन-निर्माण, व्यक्तित्व विकास और धार्मिक सद्भाव से जुड़े के मालिक हैं। उन्होंने परम्परागत एवं रूढ़िवादी धार्मिक मान्यताओं पहलुओं पर विस्तृत साहित्य लिखा । इस तरह आचार्य श्रीराम शर्मा से को बदलने की क्रांतिकारी पहल की। जनमानस के सामने उन्होंने धर्म वैदिक धर्म-दर्शन को पूर्ण विस्तार मिला है जबकि श्री चन्द्रप्रभ ने न का वह स्वरूप प्रस्तुत किया जो मनुष्य को मनुष्य के निकट आने और केवल सभी धर्मों को निकट लाने में योगदान दिया बल्कि सामाजिक एक-दूसरे के दुःख-दर्द में सहयोगी बनने की प्रेरणा देता है। श्री और नैतिक उत्थान से जुड़े धार्मिक सिद्धांतों को भी सरल रूप में प्रस्तुत चन्द्रप्रभ वास्तव में मानवतावादी संत हैं। उन्होंने लोगों की धर्म के प्रति किया है। बन चुकी संकीर्ण एवं साम्प्रदायिक दृष्टि को विराट एवं गुणानुरागी श्री चन्द्रप्रभ एवं आचार्य महाप्रज्ञ का दर्शन आधुनिक भारतीय बनाने की कोशिश की। वे एक ओर धर्म को वर्तमान समस्याओं का दर्शन में विशेष स्थान रखता है। दोनों दार्शनिक समकालीन रहे हैं। समाधान देने की चुनौती देते हैं तो दूसरी ओर अनुपयोगी बन चुकी आचार्य महाप्रज्ञ का दर्शन मुख्यतः अध्यात्म-केन्द्रित है। उन्होंने धार्मिक मान्यताओं को नकारने की हिम्मत भी दिखाते हैं। उन्होंने धर्म जीवन-जगत के हर बिन्दु को आध्यात्मिक-वैज्ञानिक दृष्टि से का जो सरल, व्यावहारिक एवं जीवन-सापेक्ष स्वरूप प्रस्तुत किया, विवेचित किया। उन्होंने वर्तमान जीवन से जुडी धार्मिक, सामाजिक व उसके लिए धर्मजगत उनका आभारी है। संक्षिप्त में श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म राजनीतिक व्यवस्थाओं में आध्यात्मिक सूत्रों का समावेश कर उन्हें के क्षेत्र में जो नई पहल की, वह इस प्रकार हैश्रेष्ठतम बनाने की प्रेरणा दी। जबकि श्री चन्द्रप्रभ ने चेतना का 1.धर्म को पारलौकिकता से हटाकर इहलौकिक बनाया। ऊर्ध्वारोहण की बजाय जीवन के ऊर्ध्वारोहण से जुड़ा दर्शन प्रतिपादित 2.धर्म को आत्मा-परमात्मा की बजाय जीवन से जोड़ा। किया, वर्तमान व्यवस्थाओं को बदलने की बजाय उन्हें सकारात्मकता 3. धार्मिक सम्प्रदायों के प्रति संकीर्ण मानसिकता रखने वालों का से युक्त करने की कोशिश की। इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने आत्मविकास विरोध किया। के साथ जीवन विकास का मार्गदर्शन देकर आम व्यक्ति को जीने की 4. पारिवारिक परम्परा से मिले धर्म को धारण करने की बजाय मधर राह दिखाई है। आचार्य महाप्रज्ञ ने एक पंथ के दायरे में रहकर सोच-समझकर धर्म को धारण करने की सीख दी। जनमानस को तत्त्व बोध प्रदान किया है. जबकि श्री चन्द्रप्रभ ने पंथ- 5.धर्मक्रियाओं से ज्यादा मानसिक शुद्धि साधने पर बल दिया। परम्परा से चार कदम आगे बढ़कर लोगों को जीवन जीने की कला 6.सभी धर्मों, धर्मशास्त्रों और महापुरुषों के प्रति आदरभाव रखने सिखाई है। कुल मिलाकर, ये दोनों ही दार्शनिक ऐसे हुए हैं जिनका का प्ररणा दा। साहित्य मानव मात्र को जीवन और अध्यात्म के रास्ते पर मार्गदर्शन 7.धर्म के नाम पर एक-दूसरे के निकट आने की सिखावन दी। प्रदान करता रहेगा। 8. मंदिर-मूर्तियों को पंथ विशेष तक सीमित करने को धर्मविरुद्ध श्री चन्द्रप्रभ व श्री रविशंकर के दर्शन को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें बत तो ज्ञात होता है दोनों दार्शनिक युवावर्ग के समग्र जीवन निर्माण हेतु 9. धर्म के नाम पर होने वाले अनावश्यक खर्चों को कम करने के बेहतरीन मार्गदर्शन दे रहे हैं। उन्होंने ध्यान एवं योग को जीवन के सूत्र दिए। अनिवार्य अंग के रूप में जोड़ने की प्रेरणा दी है। दोनों दार्शनिकों के 10. धर्म की शुरुआत मंदिर-मस्जिद से नहीं, परिवार से करने की सान्निध्य में मानवीय कल्याण एवं विश्व-निर्माण से जुड़े अनेक सीख दी। कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं। चिंता, तनाव एवं प्रतिस्पर्धा से घिरे इस 11. गृहस्थ जीवन को संत-जीवन की तरह जीने की प्रेरणा दी। 12. अतितप व अतिभोग के स्थान पर मध्यम मार्ग का समर्थन युग में उन्होंने लोगों को हँसते-मुस्कुराते हुए जीने एवं सफलता की किया। ऊँचाइयों को छूने का प्रशिक्षण दिया है। दोनों दार्शनिकों का राष्ट्र 13.अध्यात्म और विज्ञान को परस्पर सहयोगी माना। निर्माण से जुड़ा साहित्य विपुल मात्रा में उपलब्ध है। इस तरह श्री 14.धर्म के साथ ध्यान को जोड़ने की अनिवार्यता प्रतिपादित की। रविशंकर ने दर्शन को आध्यात्मिकता से व्यावहारिकता प्रधान बनाने की कोशिश की और श्री चन्द्रप्रभ ने सेवा, सत्संग और साधना को इस तरह श्री चन्द्रप्रभ की धर्मदृष्टि समग्रता एवं समन्वय-भावना आधार बनाकर जनमानस में जीवन का कायाकल्प करने की पहल की लिए हुए है। श्री चन्द्रप्रभ सामाजिक विकास एवं मानवीय उत्थान के लिए सदा इस तरह श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन वर्तमान चिंतनधारा के दार्शनिकों जागरूक एवं प्रयत्नशील रहे हैं। वे सामाजिक परिस्थितियों के प्रति के बीच बेहद समादृत हुआ है। उनका दर्शन अनुसरण की बजाय गहरी पकड़ रखते हैं। उनके पास समाज से जुड़े खट्टे-मीठे अनुभवों अनुसंधान पर आधारित है। उन्होंने अन्य दार्शनिकों से सीखा भी है और का खजाना है। उन्होंने एक ओर समाज की अर्थहीन परम्पराओं का अपनी ओर से नया दर्शन दिया भी है। वे बीसवीं और इक्कीसवीं विरोध किया तो दूसरी ओर समाज के कमजोर तबके को ऊपर उठाकर शताब्दी में हुए दार्शनिकों में जीवन का नव-सृजन करने वाले महान उनके दुःख-दर्द को कम करने की कोशिश की। उन्होंने अपने यहाँ दार्शनिक सिद्ध हुए हैं और आने वाली शताब्दियाँ उनका अनुसरण अमीरों से ज्यादा गरीबों एवं मध्यमवर्गीय लोगों को महत्त्व दिया। वे करने के लिए स्वतः प्रेरित रहेंगी। समाज के कमजोर वर्ग को समृद्ध बनाने का मार्ग सिखाते हैं और श्री चन्द्रप्रभ की धर्म,समाज एवं राष्ट्र को देन नामक छठा अध्याय अमीरों को सामाजिक विकास में सहभागिता निभाने की प्रेरणा देते हैं। संबोधि टाइम्स > 145 For Personal & Private Use Only लिएएहा Jain Education International
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy