________________
वे कहते हैं, "पहले पेट भरो, फिर समृद्ध बनो और तत्पश्चात् समाज कि "कमजोर तबके के लोगों को जरूर आगे बढ़ाया जाए, पर सही की सेवा करो।" श्री चन्द्रप्रभ ने स्वयं को समाज विशेष तक सीमित न पात्र को पीछे न धकेला जाए।" रखा वरन् उन्होंने हर समाज से खुद को जोड़ा और सामाजिक सद्भाव 6.अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार को भारत की मूल समस्या बताया। की मिसाल कायम की। उनके मार्गदर्शन में अनेक सामाजिक संस्थाओं 7. भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए हर व्यक्ति को का गठन हुआ जो आज भी सफलतापूर्वक अपने कार्य सम्पादित कर जागृत किया। रही हैं। संक्षिप्त में सामाजिक उत्थान के लिए श्री चन्द्रप्रभ ने निम्न 8.राजनीति को नैतिकतापूर्ण बनाने की सीख दी। पहल की है
9.युवाशक्ति को भारत-निर्माण हेतु आगे आने का आह्वान किया। 1. मंदिरों के निर्माण से अधिक मानव समाज के उत्थान पर बल 10. गरीबी को देश का अभिशाप बताकर समृद्ध होने का रास्ता दिया।
दिखाया। 2. लायन्स क्लब, रोटरी क्लब, महावीर इंटरनेशनल, भारत 11.नारी जाति को आगे बढ़ने का हौंसला दिया। विकास परिषद्, विद्या भारती जैसी सामाजिक कल्याण से जुड़ी
12. आतंकवाद के कारणों की चर्चा की और अहिंसा को संस्थाओं को मानवता के लिए वरदान स्वरूप बताया।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैलाने का मार्गदर्शन दिया। 3. सामाजिक विसंगतियों को दूर करने में उल्लेखनीय सहयोग 13. नैतिक मूल्यों की आवश्यकता एवं उपयोगिता प्रतिपादित दिया।
की। 4. संतों और मुनियों को गरीबों का सम्मान करने के लिए प्रेरित 14. परिवार नियोजन, शिक्षा, प्रौद्योगिकी, धर्मांतरण, गंदगी, किया।
व्यसनमुक्ति आंदोलन, गौरक्षा पर समय-सापेक्ष चिंतन प्रस्तुत किया। 5. धर्म और समाज में बढ़ रहे धन के प्रभाव से उपजे अच्छे-बुरे इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाने एवं राष्ट्रीय परिणामों का विश्लेषण प्रस्तुत किया।
समस्याओं से निजात पाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाई है। 6. प्रभावना, सहधर्मी वात्सल्य और जीवित महोत्सव के नाम पर सातवे अध्याय से कहा जा सकता है कि श्री चन्द्रप्रभ भारतीय बढ़ रहे आडम्बरों को अनुचित ठहराकर इनकी वास्तविक व्याख्या संस्कृति एवं दर्शन जगत् के उज्ज्वल नक्षत्र हैं जिन्होंने एक ओर प्रस्तुत की।
भारतीय संस्कृति के मूलभूत तत्त्वों को युगीन संदर्भो में प्रस्तुत कर 7.समाज में बढ़ रही राजनीति को समाप्त करने की प्रभावी पहल । विश्व का ध्यान उसकी ओर खींचा है और भटकती युवा पीढ़ी को नई की।
दिशा दी है वहीं दूसरी ओर दर्शन की दुरूहता को दूर कर नया 8. सामाजिक उत्थान के लिए सहयोग, समानता, संगठन और कीर्तिमान स्थापित किया है। समन्वय जैसे सिद्धांतों को लागू करने पर जोर दिया।
निःसंदेह, श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन के अध्ययन, मनन और विश्लेषण इस तरह श्री चन्द्रप्रभ का सामाजिक कल्याण से जुड़ा मार्गदर्शन से सिद्ध होता है कि श्री चन्द्रप्रभ के व्यक्तित्व में बहुआयामी कृतित्व समाज के लिए मील के पत्थर का काम करता है।
के दर्शन होते हैं। जीवन, जगत और अध्यात्म का शायद ही ऐसा कोई श्री चन्द्रप्रभ राष्ट्रप्रेमी हैं। उन्होंने भारत के स्वरूप पर नये तरीके से पहलू होगा जो उनके दर्शन में अछूता रहा हो। जीवन में सफलता और प्रकाश डाला है। राष्ट्रीय मूल्यों को स्थापित करने के लिए वे काफी मधुरता का सृजन करना और धरती पर स्वर्ग निर्माण की पहल में वर्षों से प्रयत्नशील हैं। उन्होंने राष्ट्र को धर्म से ऊपर रख राष्ट्रीय गौरव योगदान देना उनके जीवन-दर्शन का मुख्य ध्येय है। उनका साहित्य को बढ़ाया है। उन्होंने अहिंसा, सत्य, सदाचार, शील, व्यसनमुक्ति से भाषा, भाव और प्रस्तुति - तीनों दृष्टि से प्रभावी और समृद्ध है। उनकी जुड़े नैतिक मूल्यों को इतना सरल एवं उपयोगिता पूर्ण ढंग से जनमानस अनेक कृत्तियाँ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहीं। वर्तमान में के सामने रखा कि लोग उन्हें अपनाने के लिए स्वत: आत्मप्रेरित हो जितने भी दार्शनिक हैं उनसे उनकी तुलना करना अथवा किसी के उठते हैं । राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए उनके द्वारा दिया गया समकक्ष दिखाना अनपेक्षित है क्योंकि वे स्वयं अतुलनीय और अनुपम मौलिक चिंतन हमारे देश के लिए दीपशिखा का काम करता है। हैं। उनके दर्शन का अध्ययन-मनन किये बिना भारतीय और पाश्चात्य संक्षिप्त में, उन्होंने राष्ट्र के बारे में कुछ खास बातें दीं,जो इस प्रकार हैं दर्शन का अध्ययन अपूर्ण रहेगा।
1. आत्मकल्याण के लिए एक हाथ में माला और आत्मरक्षा के लिए दूसरे हाथ में भाला रखने का सिद्धांत दिया।
2. विदेशी संस्कृति की आलोचना करने की बजाय उनकी अच्छाइयों से प्रेरणा देने की सीख दी।
3. भारतीय लोगों को दोहरा आचरण करने की बजाय एक स्वस्थ, स्वच्छ और समृद्ध भारत को साकार करने के लिए प्रेरित किया।
4.जाति की बजाय इंसानियत को महत्त्व देने का पाठ सिखाया। 5.जातिगत आरक्षण को देश का दुर्भाग्य बताया। उनका कहना है
146 » संबोधि टाइम्स
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org