________________
चन्द्रप्रभ महान जीवन-दृष्ट्रा संत हैं । उनका दर्शन जीवन-सापेक्ष है जो दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। यही कारण है कि वर्तमान पीढ़ी श्री चन्द्रप्रभ तार्किक, मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक है। श्री चन्द्रप्रभ ने एक ओर की पुस्तकें बेहद चाव से पढ़ती है और अपने जीवन के लिए सार्थक प्राचीन भारतीय संस्कृति के आदर्शों को नवीनता के साथ पेश किया है दिशा प्राप्त करती है। तो दूसरी ओर वर्तमान की आवश्यकता से जुड़े मौलिक सिद्धांतों एवं श्री चन्द्रप्रभ एवं आचार्य विनोबा भावे के दर्शन की परस्पर तुलना विचारों को आविष्कृत किया। उन्होंने युगीन समस्याओं का करने से ज्ञात होता है कि दोनों दर्शन जीवन-निर्माण और मानवीय मनोवैज्ञानिक समाधान दिया और विश्व के उज्ज्वल भविष्य की उत्थान से संबंधित हैं। दोनों दार्शनिकों ने निष्काम कर्मयोग पर विशेष रूपरेखा प्रस्तुत की।
बल दिया है। दोनों संत सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास की प्रेरणा इस अध्याय में श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन की स्वामी विवेकानंद, देते हैं। यद्यपि दोनों में दार्शनिक भिन्नता है, फिर भी उनमें काफी महात्मा गाँधी, श्री अरविंद, आचार्य विनोबा भावे, जे. कृष्णमूर्ति, निकटता देखी जा सकती है। महर्षि रमण, आचार्य श्रीराम शर्मा, आचार्य महाप्रज्ञ और श्री रविशंकर श्री चन्द्रप्रभ एवं जे. कृष्णमूर्ति के दर्शन के अन्वेषण से सिद्ध होता के दर्शन से तुलनात्मक विवेचना की गई है।
है कि उन्होंने जीवन, धर्म और अध्यात्म को परम्परागत रूढ़ मान्यताओं श्री चन्द्रप्रभ एवं स्वामी विवेकानंद के दर्शन पर दृष्टिपात करने से से हटाकर नए स्वरूप में प्रस्तुत किया। दोनों दार्शनिकों ने मनुष्य को स्पष्ट होता है कि स्वामी विवेकानंद ने परतंत्र भारत की परिस्थितियों से पंथ प्रेमी बनने की बजाय सत्य प्रेमी बनने एवं जीवन में ध्यानयोग को प्रभावित होकर जनमानस को कर्मयोग और मानवतावाद की शिक्षा दी अधिकाधिक जीने की प्रेरणा दी। जे. कृष्णमूर्ति ने जीवन में
और श्री चन्द्रप्रभ ने स्वतंत्र भारत को स्वर्ग सरीखा बनाने के लिए लोगों आध्यात्मिक विकास के पक्ष को मजबूती के साथ रखा और श्री को सुखी-समृद्ध एवं मधुर जीवन जीने के प्रायोगिक सूत्र सिखाए। चन्द्रप्रभ ने आध्यात्मिकता के साथ व्यावहारिक विकास के पक्ष को भी दोनों दार्शनिकों ने राष्ट्र की समस्याओं के समाधान से जुड़े प्रासंगिक महत्त्व दिया। जे. कृष्णमूर्ति ने धार्मिक पंथ-परम्पराओं को त्यागने की विचार रखे एवं राष्ट्रीय उत्थान हेतु युवापीढ़ी को विशेष रूप से जबकि श्री चन्द्रप्रभ ने उनमें समन्वय स्थापित करने की बात कही। उत्साहित किया। स्वामी विवेकानंद ने वेदांत दर्शन की सकारात्मक यद्यपि जे. कृष्णमूर्ति का दर्शन आध्यात्मिक से ओतप्रोत है, पर उसमें व्याख्या कर उसे सरल ढंग से प्रतिपादित किया और श्री चन्द्रप्रभ ने क्लिष्टता है जबकि श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन व्यावहारिक, सरल एवं सभी धर्मों के सिद्धांतों की परस्पर सकारात्मक व्याख्या कर धार्मिक बोधगम्य है। सद्भाव की नींव खड़ी की। एक तरह से श्री चन्द्रप्रभ स्वामी विवेकानंद श्री चन्द्रप्रभ एवं ओशो के विचारों का अध्ययन करने से स्पष्ट से दो कदम आगे बढ़कर राष्ट्र और विश्व को और अधिक नई ऊर्जा होता है कि दोनों दार्शनिकों ने दर्शनधारा को नया मोड़ देने की कोशिश देने में सफल हुए हैं।
की।ओशो ने वर्तमान में चल रही धर्मदर्शन से जुड़ी परम्पराओं को पूरी श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन की महात्मा गाँधी के दर्शन के साथ समीक्षा तरह से नकार दिया वहीं श्री चन्द्रप्रभ ने प्रचलित धर्म परम्पराओं में करने से स्पष्ट होता है कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय चेतना के शिखर पुरुष आई संकीर्णताओं को दूर कर धार्मिक सद्भाव स्थापित करने की हैं। स्वयं श्री चन्द्रप्रभ महात्मा गाँधी के त्याग, तपोमय और सादगीपूर्ण कोशिश की और जीवन से जुड़ा धर्मदर्शन प्रस्तुत किया। दोनों जीवन से प्रभावित हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने भले ही किसी स्वतंत्रता संग्राम में दार्शनिकों ने ध्यान मार्ग को फैलाया। ओशो ने सक्रिय ध्यान को हिस्सा न लिया हो, पर वे स्वयं भी राष्ट्रवादी संत हैं और हर भारतीय के स्थापित किया और श्री चन्द्रप्रभ ने संबोधि ध्यान का मार्ग दिया। दोनों दिल में भारतीयता का जज्बा जगाते हैं। महात्मा गाँधी और श्री दार्शनिकों का धर्म, ध्यान, योग, अध्यात्म, समाज, नैतिकता, राष्ट्र, चन्द्रप्रभ दोनों नैतिक मूल्यों के समर्थक हैं और दोनों ही सदाचार, विश्व से जुड़े सभी पहलुओं पर विशाल साहित्य प्रकाशित हुआ है। सद्विचार और सच्चरित्रता में विश्वास रखते हैं। महात्मा गाँधी ने ओशो वर्तमान की सभी व्यवस्थाओं से असहमत थे। उन्होंने अपरिग्रह सिद्धांत पर विशेष रूप से बल दिया, जबकि श्री चन्द्रप्रभ व्यवस्थाओं को बदलने के लिए तार्किक विचार रखे जबकि श्री गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों को समृद्ध होने का पाठ सिखाते हैं। चन्द्रप्रभ ने वर्तमान व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के लिए व्यावहारिक उन्होंने गरीबी को जीवन का अभिशाप माना और उसे दूर करने की विचार प्रस्तुत किए। जहाँ ओशो का ध्यान-अध्यात्म दर्शन सदियों तक प्रेरणा दी। सार रूप में महात्मा गाँधी का दर्शन राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय उपयोगी बना रहेगा, पर अन्य विचार परिस्थितियों को बदलने में सफल समस्याओं को सुलझाने में सक्षम है और श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन घर- नहीं हो पाए हैं वहीं श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन वर्तमान पारिवारिक, परिवार और जीवन को सुख-शांतिपूर्ण बनाने में खरा उतरता है। सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों के लिए वरदान साबित हुआ है और
श्री चन्द्रप्रभ एवं श्री अरविंद के दर्शन की तुलनात्मक विवेचना से युवा पीढ़ी उनसे जीवन एवं व्यक्तित्व निर्माण को लेकर विशेष रूप से स्पष्ट होता है कि दोनों दार्शनिक योग परम्परा से जुड़े हुए हैं। दोनों लाभान्वित हो रही है। दार्शनिकों का विपुल साहित्य उपलब्ध है। यद्यपि श्री अरविंद द्वारा की श्री चन्द्रप्रभ एवं आचार्य श्रीराम शर्मा के दर्शन की परस्पर समीक्षा गई विवेचना में गहराई है, पर भाषा दुरूह होने के कारण वे आम से निष्कर्ष निकलता है कि दोनों दार्शनिकों ने धार्मिक विकृतियों को दूर जनमानस में स्थापित नहीं हो पाए। श्री चन्द्रप्रभ ने इस दुरूहता को कर धर्म का वैज्ञानिकीकरण किया। जहाँ श्रीराम शर्मा ने यज्ञकर्म एवं सरलता में बदलने की कोशिश की। श्री अरविंद का दृष्टिकोण चेतना गायत्री मंत्र साधना पर विशेष बल दिया वहीं श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान के विकास से जुड़ा रहा वहीं श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन के विकास से जुड़ा साधना का महत्त्व प्रतिपादित किया। आचार्य श्रीराम शर्मा ने धर्मशास्त्रों 144 » संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org