________________
मानवीय मूल्यों के साथ जोड़कर मानवता के लिए कल्याण-मित्र की चाहता है। ऐसी स्थिति में ध्यान के प्रयोगों को सरल, संक्षिप्त बनाने एवं भूमिका अदा की है। धर्म को राजनीति से अलग रखने व राजनीति पर चमत्कारी परिणाम देने के रूप में सिद्ध करने की आवश्यकता है। अगर धर्मनीति का अंकुश लगाने की उनकी प्रेरणा भटकती राजनीति को संबोधि साधना के मार्ग में ऐसे प्रयोग आविष्कृत होते हैं तो यह मार्ग सार्थक दिशा-दर्शन है। उन्होंने अपने धर्मदर्शन में नारी को विकास के मानवता के लिए और अधिक उपयोगी बन सकता है। अधिकाधिक अवसर देने, शिक्षा को अर्थ के साथ संस्कारशील बनाने, भारतीय दर्शन में आध्यात्मिक तत्त्वों की विस्तार से विवेचना हुई धर्म और विज्ञान में परस्पर संतुलन बिठाने, पर्यावरण-रक्षा के प्रति है, पर परम्परागत दुरूहता के चलते आम व्यक्ति का आध्यात्मिकता से सजग होने और ध्यान-योग के द्वारा तन-मन को स्वस्थ और निर्मल जडाव कम हो पाया है। इस संदर्भ में श्री चन्द्रप्रभ का आत्मदर्शन आम बनाने के सटीक सूत्र दिए हैं। उन्होंने युवाओं की धर्मभावना की प्रशंसा व्यक्ति के काफी करीब है। उन्होंने आध्यात्मिक तत्त्वों को करते हुए उन्हें व्यसन और फैशन से बचने और राष्ट्रनिर्माण में सदैव व्यावहारिकता एवं वैज्ञानिकता के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया है। तत्पर रहने के लिए उत्साहित किया है। श्री चन्द्रप्रभ का धर्मदर्शन उन्होंने अध्यात्म को पारलौकिक शक्ति के साथ जोड़ने की बजाय निश्चित रूप से नये युग के लिए अत्यन्त वैज्ञानिक, तार्किक एवं आंतरिक शक्ति के साथ सम्पर्क साधने के रूप में स्थापित किया है। वे व्यावहारिक है।
आध्यात्मिक साधना के लिए एकांतवास से ज्यादा स्वयं की ध्यान और योग साधना हमारी आध्यात्मिक संस्कृति के प्राण हैं। मानसिकता को शांतिमय व आनंदम बनाने पर बल देते हैं। उन्होंने श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन से ध्यान-योग और साधना का मार्ग समृद्ध हुआ आत्मतत्त्व की सिद्धि के लिए शास्त्रोक्त उद्धरण देने की बजाय स्वयं में है।आधुनिक जीवन शैली से उपजी चिंता और तनावजनित मानसिक उतरकर स्वअनुभव को महत्त्व दिया है। उन्होंने स्वयं से मैं कौन हूँ', समस्याओं के निवारण के लिए एवं स्वयं की आंतरिक शक्तियों को 'कहाँ से आया हूँ','यहाँ से कहाँ जाऊँगा' जैसे प्रश्न भी करते रहने जागृत करने के लिए ध्यान हर जागरूक व्यक्ति के लिए अनिवार्य है। की प्रेरणा दी है। वे आत्मविकास के लिए निम्न सूत्रों को अपनाने की ऐसी स्थिति में श्री चन्द्रप्रभ ने वर्तमान जीवन के लिए उपयोगी 'संबोधि प्रेरणा देते हैं - ध्यान योग साधना' का मार्ग प्रतिपादित कर मानवता को सार्थक प्रयोग 1. जीवन और जगत् को अंतर्दृष्टिपूर्वक देखें और उसके यथार्थ प्रदान किया है। संबोधि ध्यान का मार्ग जहाँ एक ओर आँख बंद कर को समझें। भीतर की प्रज्ञा को जागृत करने के सरल प्रयोग सिखाता है वहीं दूसरी 2. मन की वृत्तियों पर सम्यक् समझ और संयम द्वारा विजय प्राप्त ओर जीवन की हर गतिविधि को खुली आँखों से होश और बोधपूर्वक करें। करने का प्रशिक्षण देता है। इस तरह संबोधि साधना प्रायोगिक भी है
3. देह के क्षुद्र गुणधर्मों को समझतकर आसक्ति और अभिमान और व्यावहारिक भी।
का त्याग करें। श्री चन्द्रप्रभ ने संबोधि ध्यान साधना पर विस्तार से प्रकाश डाला 4.वैराग्य का वेश पहनने की बजाय अनासक्ति को महत्त्व दें। है। उनकी ध्यान साधना पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिसमें
5. अपने सम्प्रदाय का आग्रह रखने की बजाय सबके प्रति कछेक के नाम उल्लेखनीय हैं - 1. संबोधि साधना का रहस्य। गुणानुरागी बनें। 2. ध्यानयोग, 3. ध्यान : साधना और सिद्धि,4. ध्यान का विज्ञान,
6.जीवन-बोध और मृत्य-बोध दोनों को गहरा करें। 5. आध्यात्मिक विकास, 6. मनुष्य का कायाकल्प, 7. ध्यान को
श्री चन्द्रप्रभ ने मोक्ष, मरने की कला और आत्मविकास की क्रमिक गहराई देने वाले ध्यान सूत्र आदि। संबोधि ध्यान व्यक्ति को शारीरिक
साधना के संदर्भ में परम्परागत धारणा से मुक्त होकर जो सरल एवं स्वास्थ्य के साथ मानसिक शांति, बौद्धिक विकास और आध्यात्मिक
सटीक मार्गदर्शन दिया है वह दर्शनशास्त्र और आत्मसाधकों के लिए समृद्धि भी प्रदान करता है। जो कि समग्र व्यक्तित्व निर्माण के अनिवार्य
वरदान स्वरूप है। चरण हैं।
इस तरह श्री चन्द्रप्रभ का सिद्धांत एवं विचार दर्शन मौलिक, संबोधि ध्यान महावीर की अनुप्रेक्षा, बुद्ध की विपश्यना, पतंजलि
चिंतनप्रधान और वर्तमान युग के लिए उपयोगितापूर्ण है। उन्होंने का अष्टांग योग एवं षट्चक्र साधना का अनुभवजन्य मिश्रण है।
जीवन, परिवार, धर्म, ध्यान एवं आत्मा से जुड़ा वैज्ञानिक चिंतन प्रस्तुत संबोधि साधना में मंत्र साधना, श्वास साधना, शरीर साधना, पंचकोश
कर भारतीय दर्शन एवं विश्व दर्शन को समृद्ध बनाने में एक सिद्ध योगी साधना और षट्चक्र साधना के प्रयोग करवाए जाते हैं । संबोधि साधना
और विचारक की भूमिका अदा की है। का मुख्य उद्देश्य है : स्वस्थ शरीर, शांत मन, निर्मल चित्त, प्राण ऊर्जा
श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन का अन्य दार्शनिकों के साथ तुलनात्मक का विस्तार और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से सम्पर्क। श्री चन्द्रप्रभ ने संबोधि
अध्ययन नामक पाँचवें अध्याय से निष्कर्ष निकलता है कि भारत एवं साधना को जीवन-निर्माण, चित्त-शुद्धि, प्रतिभा निखार और
विश्व में चल रही दार्शनिकों की प्रवाहमान धारा में श्री चन्द्रप्रभ वर्तमान सृजनात्मक शक्ति के साथ जोड़कर सभी दृष्टिकोणों से उपयोगी सिद्ध
युग के महान दार्शनिक हुए हैं। उन्होंने जो दर्शन मानव-समाज को कर दिया है।
दिया वह न केवल अन्य दार्शनिकों से भिन्न और नया है वरन् मौलिक ___ निश्चय ही, श्री चन्द्रप्रभ का संबोधि ध्यान दर्शन मनुष्य के भौतिक
भी है। उन्होंने अपने दर्शन में धरती पर स्वर्ग निर्माण की जो पहल की है और आध्यात्मिक उत्थान में कीमिया संजीवनी का काम करता है। वर्तमान
वह आने वाली पीढ़ी के लिए प्रकाश शिखा का काम करेगी। श्री मनुष्य के पास समय की कमी है। वह कम समय में अधिक परिणाम पाना Jain Education International
For Personal Private Use Only
संबोधि टाइम्स 143