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________________ 1.लक्ष्य का निर्धारण करें। इस तरह उन्होंने इंसान को सुखी-समृद्ध, पर सहज-सरल और 2. इच्छा-शक्ति का जागरण करें। निष्पृह जीवन जीने की प्रेरणा दी है। 3.आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दें। नैतिक मूल्यों और मानवीय मूल्यों पर जोर देने के साथ श्री 4.आशा और आत्मविश्वास से भरे रहें। चन्द्रप्रभ पारिवारिक मूल्यों को भी महत्त्व देते हैं। पारिवारिक विघटन 5.सकारात्मक सोच के मालिक बनें। की समस्या को रोकने के लिए एवं रिश्तों में मिठास घोलने के लिए श्री 6. समय-प्रबंधन करें। चन्द्रप्रभ का परिवार-दर्शन किसी चमत्कार से कम नहीं है। घर में 7.परिस्थितियों को चुनौती के रूप में स्वीकार करें। मंदिर बनाने की बजाय घर को मंदिर बनाना और धर्म की शुरुआत 8.कठोर मेहनत करें। मंदिर-मस्जिद से करने की बजाय घर से करने की प्रेरणा देना उनके 9.समय-समय पर कार्ययोजना बनाएँ। दर्शन की नई देन है। उन्होंने भगवान के मंदिरों से ज्यादा बच्चों का 10. बेहतरीन शिक्षा प्राप्त करें। नवनिर्माण करने वाले मंदिरों को बनाने की आवश्यकता पर जोर देकर 11. उग्रता से बचें। समाज को उद्देश्यपूर्ण मार्गदर्शन दिया है। वे माता-पिता में ईश्वर का नूर 12. हर परिस्थिति में प्रसन्न रहें। देखते हैं और भाई-भाई को रामायण से जीवन जीने की कला सीखने 13. सफलता के नये द्वार तलाशते रहें। की प्रेरणा देते हैं। भाई अगर भाई का साथ दे, तो भाई जैसा कोई मित्र श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में जीवन को स्वर्गनुमा बनाने के लिए नहीं और भाई अगर भाई को दगा दे जाए तो भाई जैसा कोई शत्रु नहीं। बेहतरीन मार्गदर्शन दिया गया है। भारतीय धर्मशास्त्र स्वर्ग-नरक की वे कहते हैं, "समाज में दान या चंदा लिखाने से पहले अपने उस भाई व्याख्याओं से भरे पड़े हैं, पर श्री चन्द्रप्रभ ने स्वर्ग-नरक को का सहयोग करो जो आर्थिक रूप से कमजोर हो। जो भाई भाई का पारलौकिकता से मुक्त करने का साहसी कदम उठाया है। उन्होंने साथ देता है वह अगर बड़ा है तो पिता के समान है और छोटा है तो पुत्र स्वर्ग-नरक की जीवन-सापेक्ष व्याख्या कर भारतीय दर्शन को नया के समान।" श्री चन्द्रप्रभ ने सुखी-स्वस्थ-सुरक्षित बुढ़ापे और आयाम प्रदान किया है। वे कहते हैं."स्वर्ग-नरक कोई आसमान या वसीयतनामे के बारे में जो मार्गदर्शन दिया है, वह संजीवनी औषधि की पाताल के नक्शे नहीं है, वरन् ये दोनों ही जीवन के पर्याय हैं। शांत तरह है। श्री चन्द्रप्रभ के प्रवचनों से प्रेरित होकर हजारों टूटे परिवार चित्त स्वर्ग है, अशांत चित्त नरक, प्रसन्न हृदय स्वर्ग है, उदास मन आपस में जुड़े हैं, यह किसी भी विचारक की बहुत बड़ी सफलता है। नरक। हर प्राप्त में आनंदित होना स्वर्ग है, व्यर्थ की लालसाओं में धार्मिक संकीर्णता को कम करने और साम्प्रदायिक सद्भाव का उलझे रहना नरक है। यह व्यक्ति पर निर्भर है कि वह अपने आपको वातावरण निर्मित करने में श्री चन्द्रप्रभ के धर्मदर्शन ने महत्त्वपूर्ण नरक की आग में झुलसाए रखना चाहता है या स्वर्ग के मधुवन में भूमिका निभाई है।श्री चन्द्रप्रभ ने न केवल धर्म को वैज्ञानिक रूप दिया आनंदभाव से अहोनृत्य करना चाहता है।"उन्होंने मधुर जीवन जीने के वरन् उसे जीवन के साथ जोड़ा और जीवन की समस्याओं को समाधान लिए निम्न सूत्र जीवन से जोड़ने की प्रेरणा दी है - के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने धर्म के तीन चरण स्वीकार किए - 1.चित्त की प्रसन्नता। पहला : कर्तव्य-पालन, दूसरा : नैतिक आचरण, तीसरा : आत्मिक 2.जीवन-शैली में निखार उन्नति । उनकी दृष्टि में, "पारिवारिक सदस्यों के प्रति रहने वाले 3.स्व-प्रबंधन कर्तव्यों का पालन करना इंसान का पहला धर्म है। इंसान होकर इंसान 4.सरल स्वभाव के काम आना इंसान का दूसरा धर्म है। भीतर की कमियों और 5. तनाव-मुक्ति कमजोरियों पर विजय पाना इंसान का तीसरा धर्म है और दुनिया के हर 6.सकारात्मक मनोदशा धर्म और महापुरुष का सम्मान करना चौथा व अंतिम धर्म है।" उन्होंने 7.मधुर वाणी घर-परिवार के लिए राम व रामायण को, व्यापारिक समृद्धि के लिए 8.सौम्य व्यवहार 9.प्रेमी हृदय श्रीकृष्ण को और आत्मिक उन्नति के लिए महावीर को आदर्श बनाने 10.ईश्वर में विश्वास की प्रेरणा देकर धार्मिक सद्भाव की अनूठी मिसाल पेश की है। श्री चन्द्रप्रभ के जीवन-दर्शन की यह मुख्य विशेषता है कि उन्होंने श्री चन्द्रप्रभ का धर्मदर्शन सामाजिक उत्थान के लिए नींव का जीवन में सफलता के साथ शांति पाने की कला भी सिखाई है। शांति और काम करता है। उन्होंने एक ओर जीमणवारी और पत्थरों पर हो रहे असीमित खर्चों को अनुचित ठहराया है वहीं दूसरी ओर अमीर लोगों सफलता सामान्यतौर पर विपरीत ध्रुव हैं, दोनों को पाना आम व्यक्ति के लिए मुश्किल है, पर श्री चन्द्रप्रभ ने दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करने को गरीब भाइयों को ऊपर उठाने का पाठ पढ़ाकर स्वस्थ समाज की का बेजोडरास्ता दिखाया है। उन्होंने शांति पाने हेतु निम्न सूत्र बताए हैं संरचना में योगदान दिया है। उन्होंने गरीब भाइयों को रोजगार दिलाने के 1.चिंतामुक्त रहें। लिए सामाजिक बैंकों की स्थापना की है। जहाँ से बगैर ब्याज के धन 2.क्रोध पर नियंत्रण करें। लेकर घरेलू लघु उद्योग प्रारम्भ किये जा सकते हैं। 3. मन को शांत और प्रसन्न रखें। श्री चन्द्रप्रभ ने विविध धर्मों के सिद्धांतों एवं महापुरुषों की 4.सहज जीवन जिएँ। सकारात्मक व्याख्या कर उनमें निकटता स्थापित करने में सफलता पाई 5.प्रतिक्रियाओं से बचे रहें। है। उन्होंने धर्म को रूढ़ मान्यताओं और क्रियाओं से ऊपर उठाकर उसे 16142 » संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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