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________________ निर्माणपरक साहित्य को रखा गया है। हर साहित्य रचना के प्रकाशक, प्रकाशन वर्ष, पृष्ठ संख्या, अध्याय संख्या एवं पुस्तक के संपादन आदि का नामोल्लेख प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक के हर अध्याय की समीक्षा करने के साथ पुस्तक का निष्कर्ष भी प्रस्तुत किया गया है। श्री चन्द्रप्रभ के जीवन-निर्माणपरक साहित्य में जीवन जीने की कला का विस्तार से मार्गदर्शन प्रस्तुत हुआ है। वे जीवन प्रेमी दार्शनिक हैं। उन्होंने जीवन को सुखी, सफल और मधुर बनाने का जो सरस मार्ग दिखाया है वह अद्भुत है। उनके जीवन-निर्माणपरक साहित्य में स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि पाने के कीमिया सूत्र दिए गए हैं। माँ ममता, पारिवारिक प्रेम, तनाव मुक्ति, सदाबहार प्रसन्न रहने की कला, सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास, बच्चों के संस्कार, बुढ़ापे का आनंद, घर का स्वर्ग जैसे ढेर सारे बिंदुओं पर बेहतरीन मार्ग प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने 'बातें जीवन की जीने की' एवं 'बेहतर जीवन के बेहतर समाधान' नामक पुस्तक में जीवन से जुड़ी 45 तरह की जिज्ञासाओं का मनोवैज्ञानिक एवं व्यावहारिक समाधान दिया है जो कि युवाओं के लिए रामबाण औषधि की तरह है। इन समाधानों के बारे में प्रसिद्ध कवि एवं लेखक बाल कवि वैरागी कहते हैं, " श्री चन्द्रप्रभ के संवाद नये युग के लिए नई संजीवनी की तरह है। " " , श्री चन्द्रप्रभ के व्यक्तित्व-निर्माणपरक साहित्य में समग्र व्यक्तित्व का निर्माण करने एवं जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को पाने के प्रभावी सूत्र दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने लक्ष्य को पाने, औरों का दिल जीतने प्रतिक्रियाओं से ऊपर उठने, भय से मुक्त होने, स्वस्थ सोच के स्वामी बनने, समय को बेहतर बनाने, मुस्कान को बढ़ाने, शांति पाने, सहज और सजग जीवन जीने, ध्यान से स्वयं को जानने, आनंददायी धर्म का अनुसरण करने, कामयाबी पाने, आत्मविश्वास जगाने, तनाव घटाने, निश्चिंत जीवन जीने, सहानुभूति अपनाने, आशावान बनने, स्वभाव में सौम्यता लाने, प्रेमपथ अपनाने, स्वयं को सार्थक दिशा देने, योगासन-प्राणायाम और ध्यान करने, लेश्याएँ बदलने, सुख से जीने, क्रोध से बचने, अंतर्मन को मजबूत बनाने, मन की शांति पाने, केरियर का निर्माण करने, दिमाग को अच्छा बनाने, बोलने की कला सीखने, मानसिक विकास करने, सफल होने, आहार में छिपे आरोग्य को बताने के प्रभावी विचार प्रस्तुत किए हैं। श्री चन्द्रप्रभ के राष्ट्र एवं विश्व निर्माणपरक साहित्य में भारतीय संस्कृति के उदात्त मूल्यों का विवेचन किया गया है एवं राष्ट्र व विश्व की युगीन समस्याओं का बेहतरीन समाधान दिया गया है। श्री चन्द्रप्रभ का सैद्धांतिक एवं अन्य साहित्य नामक तीसरे अध्याय से सिद्ध होता है कि उनका सैद्धांतिक साहित्य धर्म या जाति विशेष की सीमाओं से ऊपर है, वह सभी दिशाओं और विद्याओं में गतिशील रहा है । वे प्रगति और परिणाम में विश्वास रखते हैं । गतानुगतिक होकर चलना उन्हें रास नहीं आता। उन्होंने रूढ़ क्रियाकांडों, सामाजिक आडम्बरों और पंथवाद का खुलकर विरोध किया है। उनका साहित्य एकदेशीयता अथवा साम्प्रदायिक संकीर्णता से मुक्त है। उनके विचार सार्वभौम, सार्वजनीन और सार्वकालिक हैं। उन्होंने सभी धर्मों एवं महापुरुषों पर लिखा है। उनका साहित्य हर Ja 140 संबोधि टाइम्स जाति- कौम के संतों और लोगों के द्वारा बहुतायत मात्रा में पढ़ा एवं मनन किया जाता है। श्री चन्द्रप्रभ वास्तव में मानवता के संत हैं । वे सर्वधर्म सद्भावी एवं अध्यात्मनिष्ठ दार्शनिक हैं। वे दार्शनिक व चिंतक होने के साथ महान काव्यकार, गीतकार एवं कहानीकार भी हैं। उनका बहुआयामी साहित्य उनके महान व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रकट करता है। महाकवयित्री महादेवी वर्मा, प्रसिद्ध समालोचक डॉ. प्रभाकर माचवे और राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी ने उनकी काव्यप्रतिभा की खुलकर प्रशंसा की है। श्री चन्द्रप्रभ ने भगवान श्री महावीर के आगमों एवं सूत्रों पर, भगवान श्री बुद्ध के धम्मपद पर भगवान श्रीकृष्ण की गीता पर, कठोपनिषद् पर, आचार्य कुंदकुंद, योगीराज आनंदघन और श्रीमद् राजचन्द्र के पदों पर विवेचना कर उनमें छिपे गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित किया है। श्री चन्द्रप्रभ ने अपने साहित्य लेखन के शुरुआती चरण में कुछ अनुसंधान मूलक लेखन भी किया है। उन्होंने आगम शास्त्र आयार सुतं का अनुवाद एवं उस पर चिंतन प्रस्तुत किया है। उन्होंने प्राकृत भाषा एवं हिन्दी भाषा की सूक्तियों का विशाल संग्रह तैयार कर उन्हें प्राकृत एवं हिन्दी के विश्वकोश के रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने 'महोपाध्याय समयसुंदर व्यक्तित्व एवं कृतित्व' विषय पर शोध प्रबंध लिखकर महामहोपाध्याय की उपाधि प्राप्त की थी। खरतरगच्छ के इतिहास पर किया गया उनका अनुसंधान एवं लेखन इतिहास पाठकों के लिए दीपशिखा का काम करता है। भगवान महावीर के उपदेश अलग-अलग आगमों में संकलित हैं। उनका स्वरूप इतना विशाल है कि आम आदमी उससे लाभान्वित नहीं हो सकता। श्री चन्द्रप्रभ को यह कमी खली । उन्होंने आगम-शास्त्रों का आलोड़न करते हुए उनके प्रमुख सूत्रों का उपयोग किया और 'जिनसूत्र' के नाम से महावीरवाणी को सम्पादित किया। जैसे हिन्दुओं का सार-संदेश गीता में है वैसे ही जैन धर्म का सार - संदेश जिनसूत्र में है । जिनसूत्र यानी समस्त जैन आगमों की कुंजी, जैन धर्मशास्त्रों का प्रवेश-द्वार । इसी तरह श्री चन्द्रप्रभ की काव्य-कविताएँ गागर में सागर की तरह हैं। बड़ी बात को कुछ पंक्तियों में समेट कर उनमें कबीर और रहीम की गहराई भर देना उनके काव्य की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। उन्होंने अंतर्मन की संवेदनशीलता को युगीन छवि के साथ पेश किया है । उनकी काव्य-कविताओं में अतीत के आदर्श, वर्तमान की सच्चाई और भविष्य की आशा का अद्भुत समावेश है। उनकी कविताएँ दार्शनिकता के साथ धार्मिक एवं नैतिक पक्ष को भी उजागर करती हैं। इसलिए उनके गीत एवं कविताएँ हर आम आदमी के लिए उपयोगी हैं । श्री चन्द्रप्रभ का कहानीकार का स्वरूप भी उल्लेखनीय है। उन्होंने कहानियों की पाँच किताबें लिखी हैं। सभी कहानियों में नैतिक जीवन जीने की प्रेरणाएँ दी गई हैं। भाव एवं भाषा की दृष्टि से कहानियों में नयापन है, जीवंत चित्रण है जो जीवन एवं समाज को नई दिशा प्रदान करता है । श्री चन्द्रप्रभ महान गीतकार एवं महान गायक भी हैं। उन्होंने जितने रसभीने भजन बनाए हैं वे उन्हें उतनी ही सरसता से गाते भी हैं। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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