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________________ समाज-निर्माण, धर्म, अध्यात्म, ध्यान-योग, शिक्षा, नारी उत्थान, राष्ट्रप्रेम, विश्व-कल्याण पर प्रस्तुत किए गए सिद्धांत एवं विचार अमूल्य हैं। उन्होंने धर्म, अध्यात्म, समाज, राष्ट्र और विश्व को जो दिया है वह उन्हें महान दार्शनिकों की श्रेणी में स्थापित करता है। श्री चन्द्रप्रभ झरने सा बहता जीवन नामक पहले अध्याय के विवेचन से स्पष्ट होता है कि श्री चन्द्रप्रभ जैन संत हैं, पर वे किसी भी धर्म विशेष के दायरे तक सीमित नहीं हैं। उन्हें छत्तीस कौम की जनता प्रेम से पढ़ती और सुनती है इसलिए वे जैन संत कम, जन संत अधिक हैं। वे राजस्थान के बीकानेर में 10 मई 1962 को जन्मे । जन्म से पूर्व मातुश्री जेठी देवी ने स्वप्न में शीतल चन्द्रमा को धरती पर उतरते हुए देखा। यह स्वप्न किसी महापुरुष के धरती पर अवतरण लेकर सारी दुनिया को शीतलता प्रदान करने का शुभ संकेत दे रहा था । प्राचीन साहित्य और इतिहास के महान विद्वान अगरचंद नाहटा उनके नानाजी थे। ज्ञान रश्मियों से परिपूर्ण नानाजी के घर पर उनका जन्म होना अपने आप में उज्ज्वल भविष्य की सूचना दे रहा था। उनका नाम 'पुखराज' रखा गया। उनके तीन बड़े भाई व एक छोटा भाई है। वे बचपन से ही मेधावी, साहसी और संस्कारशील रहे हैं। श्री चन्द्रप्रभ पन्द्रह वर्ष के हुए, तो उनके पिता-माता एवं छोटे भाई ने जैन धर्म में संन्यास ले लिया। माता-पिता की सेवा, भ्रातृत्व प्रेम और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए उन्होंने भी 17 वर्ष की किशोरवय में संन्यास (दीक्षा) जीवन अंगीकार कर लिया। पुखराज से वे मुनि चन्द्रप्रभसागर महाराज बन गए। लगभग तीन वर्ष पश्चात् उनके पितासंत उन्हें शास्त्रीय अध्ययन करवाने के लिए बनारस ले गए। बनारस में श्री चन्द्रप्रभ ने अनेक सुयोग्य विद्वानों के मार्गदर्शन में विभिन्न धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया। उन्होंने वहीं पर राजस्थान के महान कवि और साहित्यकार समयसुंदर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध-प्रबंध भी लिखा। श्री चन्द्रप्रभ के ओजस्वी व्यक्तित्व और कृतित्व के चलते संघ - समाज एवं विश्वविद्यालयों द्वारा उन्हें समय-समय पर अनेक सम्माननीय उपाधियों से अलंकृत किया गया। उन्होंने हम्फी और माउंट आबू की गुफाओं में साधना की और वहाँ उन्हें आत्मप्रकाश उपलब्ध हुआ। आत्मज्ञान होने के पश्चात् उन्होंने अपनी समस्त पदवियों और उपाधियों का त्याग कर दिया। साधना को गहराई देने के लिए वे सन् 1992 हिमालय चले गए। वहाँ उन्होंने लगभग डेढ़ वर्ष तक साधना की। उन्होंने जोधपुर में आध्यात्मिक साधना के लिए 'संबोधि धाम' का निर्माण करवाया जो आज हर जाति और पंथपरम्परा के लिए राष्ट्रीय स्तर का साधना केन्द्र बन चुका है। इसके अलावा श्री चन्द्रप्रभ के सान्निध्य में सम्मेतशिखर जी तीर्थ पर जैन म्यूजियम, कलकत्ता में श्री जितयशा फाउंडेशन, जोधपुर में जय श्री देवी मनस चिकित्सा केन्द्र, गुरु महिमा मेडिकल रिलीफ सोसायटी, जोधपुर एवं भीलवाड़ा में संबोधि महिला मण्डल, बाड़मेर में संबोधि बालिका मंडल, नीमच में गुरु महिमा पक्षी चिकित्सालय, इंदौर में संबोधि नारी निकेतन आदि अनेक सेवा संस्थाओं का गठन हुआ। श्री चन्द्रप्रभ ने हजारों भाई बहिनों को संबोधि साधना' की दीक्षा प्रदान की और स्वयं मुझे भागवती दीक्षा (संन्यास) प्रदान की। Jain Education International श्री चन्द्रप्रभ ने सदाचार और सद्विचारों को जनमानस में फैलाने के लिए देश के कोने-कोने तक पदयात्रा की। यद्यपि वे पैदल चलते हैं, पर उन्होंने वाहन यात्रा का समर्थन किया है। अब तक अलग-अलग शहरों में उनके 32 चातुर्मास हो चुके हैं। उन्होंने गुजरात में दो, दिल्ली में एक, उत्तरप्रदेश में तीन, पश्चिम बंगाल में एक, तमिलनाडू में दो, महाराष्ट्र में एक, मध्यप्रदेश में तीन और राजस्थान में अठारह चातुर्मास किए हैं। श्री चन्द्रप्रभ बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने जीवन और अध्यात्म से जुड़े विविध पहलुओं पर विशाल साहित्य सृजित कर न केवल कीर्तिमान स्थापित किया है बल्कि जीवन जीने की सही राह दिखाई है। वे स्वभाव से सरल, आत्म-दृष्टि से ओतप्रोत एवं विरक्त हैं। उनकी दृष्टि जीवन - सापेक्ष है । उनकी भारतीय धर्मशास्त्रों पर मजबूत पकड़ है। उन्होंने युगीन संदर्भों में युगीन धर्म को प्रस्तुत किया है। वे धर्म के उद्धारक होने के साथ महान जीवन द्रष्टा, मानवता के महर्षि, ज्ञान के शिखर पुरुष, विशाल साहित्य के सर्जक, शोध मनीषी, गीता मर्मज्ञ, देश के शीर्षस्थ प्रवचनकार, मनोवैज्ञानिक शैली के जन्मदाता, हर समस्या के तत्काल समाधानकर्ता, जीवंत काव्य के रचयिता, शब्दों के जादूगर, सहज जीवन के मालिक, सौम्य व्यवहार के धनी, सदाचार और मर्यादा की जीवंत मूर्ति, प्रेम की साक्षात प्रतिमा, परम मातृभक्त, भ्रातृत्व प्रेम की मिसाल, नये परिवार एवं समाज के निर्माता, राष्ट्रीय चेतना के उन्नायक निष्काम कर्मयोग के प्रेरक, क्रांति के पुरोधा, सफल मनोचिकित्सक, सफलता के मंत्रदृष्टा, सत्य के प्रतिष्ठाता, सर्वधर्म के महान प्रवक्ता, सर्वधर्मसद्भाव के प्रणेता, आध्यात्मिक चेतना के धनी, मौन धर्म के सहज उपासक, संबोधि साधना मार्ग के प्रवर्तक, शांतिदूत, गीतकार एवं आम जनता के करीब हैं। श्री चन्द्रप्रभ का जीवनमूलक एवं व्यावहारिक साहित्य नामक दूसरे अध्याय के विवेचन से कहा जा सकता है कि श्री चन्द्रप्रभ एक महान साहित्यकार और चिंतक हैं। मानव समाज के लिए उनका साहित्य एवं चिंतन प्रकाश स्तंभ का काम करता है। उनकी पुस्तकें यानी जीवन की हर समस्या का समाधान | श्री चन्द्रप्रभ यानी नई उम्मीद, नया उत्साह, नई ऊर्जा इंसान की मूर्च्छित चेतना को जगाने के लिए श्री चन्द्रप्रभ का साहित्य और दर्शन एक तरह से इंकलाब का पैगाम है। नई उम्मीद और आत्मविश्वास से भरा उनका साहित्य नई पीढ़ी के लिए वरदान स्वरूप है। उन्होंने चिंतन, दर्शन, काव्य, कथा, अनुसंधान आदि वाङ्गमय के समस्त अंगों पर साहित्य लिखकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उनका साहित्य जीवन-जगत के वास्तविक सत्य को उद्घाटित करने वाला है भारतीय एवं विश्वस्तर के साहित्य निर्माताओं में श्री चन्द्रप्रभ का नाम गौरव के साथ लिया जाता है। " - For Personal & Private Use Only श्री चन्द्रप्रभ का साहित्य तीन भागों में बाँटा गया है। 1. व्यावहारिक साहित्य 2. सैद्धांतिक साहित्य व 3. अन्य साहित्य। दूसरे अध्याय में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा लिखे गए व्यावहारिक साहित्य का समावेश किया गया है। व्यावहारिक साहित्य की श्रेणी में जीवननिर्माणपरक, व्यक्तित्व निर्माणपरक और राष्ट्र एवं विश्व संबोधि टाइम्स 139 www.jainelibrary.org.
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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