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सार की बात कहूँ तो श्री चन्द्रप्रभ का जीवन एवं दर्शन विश्व की अमूल्य धरोहर है। उनका दर्शन न केवल भारतीय दर्शन जगत में वरन् सम्पूर्ण विश्व के दर्शन जगत् में विशेष स्थान रखता है। जितना उनका दर्शन अनुपम और अतुलनीय है उतना ही उनका जीवन भी आदर्श एवं प्रेरणास्तंभ स्वरूप है। श्री चन्द्रप्रभ का जीवन प्रेम और ध्यान से
ओतप्रोत है। वे ऋजुप्राज्ञ हैं। प्रज्ञा से वे जितने महान हैं हृदय से उतने ही सरल हैं। उनकी दया और करुणा प्राणीमात्र के लिए है। उनकी वाणी में गजब का सम्मोहन है। मनुष्य मात्र को 'प्रभु' कहकर संबोधित करना उनकी महान दृष्टि का द्योतक है। चाहे बाल हो या वृद्ध, युवक हो या युवती, संत हो या गृहस्थ उनसे मिलकर प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। उनसे मिलकर, चर्चा कर व्यक्ति को जो अनुपम आनंद, ज्ञान और सुकून मिलता है वह उसे आजीवन भुला नहीं पाता है।
श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य में एक विशेष आकर्षण है जो उनको एक बार पढ़ लेता है वह उनकी जीवन-दृष्टि का कायल हो जाता है। वे जहाँ जाते हैं, उन्हें सुनने के लिए छत्तीस कौम के हजारों लोग बेताब रहते हैं। देश के लगभग हर बड़े शहर के मैदानों में उनकी प्रवचनमालाएँ हुई हैं और उनके प्रवचनों में बीस से पच्चीस हजार तक की जनसमुदाय की उपस्थिति देखी गई है जो कि किसी कीर्तिमान से कम नहीं है। उनके द्वारा दिया गया 'माँ की ममता हमें पुकारे, सोचो अगर माँ न होती...' पर प्रवचन तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुआ है। उस प्रवचन की अब तक लाखों वीसीडी बिक चुकी हैं। यही कारण है कि विश्वभर में उन्हें सुनने-पढ़ने वाले लाखों पाठक और श्रोता हैं। क्रांतिकारी राष्ट्र-संत मुनि श्री तरुणसागरजी कहते हैं, "आम तौर पर लोग मुझसे प्रभावित होते हैं, पर मैं श्री चन्द्रप्रभ से प्रभावित हूँ। उनका भ्रातृत्व प्रेम भी देशभर में आदर्श बना हुआ है। श्री चन्द्रप्रभ जी लिखते भी सुंदर हैं, बोलते भी सुंदर हैं और दिखते भी सुंदर हैं। ये ही ऐसे संत हैं जो सिर्फ बोलते ही नहीं, बल्कि जैसा बोलते हैं वैसा जीते भी हैं।"
श्री चन्द्रप्रभ काव्य, कहानी और गीतों के सृजन में भी सिद्धहस्त हैं। उन्होंने विश्व के हर धर्म और हर महापुरुषों पर अपने प्रभावी विचार रखे हैं। उनका मानना है, "दीये भले ही अलग-अलग हों, पर ज्योति सबकी एक जैसी है। दुनिया के हर धर्म में महापुरुष हुए हैं, हर धर्म में विचारक एवं चिंतक और चमत्कारी महापुरुष हुए हैं। गुणानुरागी बनकर हम हर धर्म और महापुरुष से कुछ-न-कुछ अवश्य सीख सकते हैं।" श्री चन्द्रप्रभ ने अनुसंधानपरक साहित्य भी लिखा है। उनके द्वारा जीवन-निर्माण, व्यक्तित्व-विकास, पारिवारिक-प्रेम,
श्री चन्द्रप्रभ के
दर्शन का
सार-संक्षेप
Ja138-संबोधि टाइम्स
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