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हाथ परमात्मा की पूजा के समान है।" उन्होंने संतों को भी समाज की स्थापना हुई है। वे कहते हैं कि इंसानों की तरह हमें घायल पशुसेवा करने की प्रेरणा दी है और समाजोत्थान की भावना रखने वाले पक्षियों के लिए जागरूक रहना चाहिए ताकि वे भी स्वस्थ हो सकें। संतों की आवश्यकता को अनिवार्य बताया है। उनका कहना है, उन्होंने पक्षी चिकित्सालय जैसे सेवा-केन्द्र खोलकर इंसानियत की "समाज को वे संत चाहिए जो समाज-सेवा और मानवीय-उत्थान को सेवा के दायरे को और बढ़ाया। अपना धर्म समझें।" उन्होंने अनेक जगह सामाजिक बैंकों की स्थापना नारी उत्थान के कार्य- नारी जाति के अभ्युत्थान के प्रति श्री की है जो गरीब एवं जरूरतमंद लोगों को बिना ब्याज के ऋण देकर उन्हें चन्द्रप्रभ जागरूक नजर आते हैं। उन्होंने नारी जाति के विकास एवं पाँवों पर खड़ा कर सामाजिक उत्थान का कार्य कर रही हैं। इससे जुड़ी कल्याण के लिए कई संगठनों का गठन किया है। उनका मानना है, विशेष घटना है -
"नारी जाति को विगत 50 वर्षों में विकास के जो अवसर मिले हैं अगर ऐसे हुआ सामाजिक बैंक का निर्माण - श्री चन्द्रप्रभ का सन् वे अवसर 500 वर्ष पहले प्रदान किये जाते तो आज दुनिया का स्वरूप 2005 में चातुर्मास बाड़मेर शहर में था। वे प्रतिदिन 20-30 घरों में कुछ और होता। अब जमाना महिलाओं का है। वे पुरुषों के सामने हाथ गोचरी (आचारचर्या) हेतु जाते थे। लगभग 3000 घर वे पधारे। फैलाने की बजाय जॉब करें और आगे बढ़ें। पढ़ी-लिखी महिलाएँ दीपावली का समय था। वे आचारचर्या हेतु घरों में जा रहे थे। वे एक पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विकसित भारत का निर्माण करें। घर में पहुँचे। श्री चन्द्रप्रभ को देखते ही घर में बैठी तीन बहिनों के आँस्
महिला उत्थान के प्रति उनकी सजगता से जुड़ी एक प्रेरक घटना इस आ गए। उन्होंने कारण पूछा तो बताया कि हमारे पिताजी नहीं रहे। हम प्रकार हैपापड़शाला में काम करके अपना घर चलाती हैं, पर किसी कारणवश
आज वह कॉलेज में लेक्चरार है - एक बहिन दो वर्षीय बच्चे पापड़शाला में कई दिनों से काम नहीं मिल रहा है। जहाँ दीपावली में
को साथ लेकर श्री चन्द्रप्रभ के पास आई और कहने लगी- शादी के दो सबके मिठाइयाँ बन रही हैं वहीं हमें रोटी के भी लाले पड़ रहे हैं। यह
महीने बाद ही पति की मृत्यु हो गई। ससुराल वालों ने मुझे मनहूश सुन उनका हृदय पिघल आया। उन्होंने अगले दिन प्रवचन में सामाजिक उत्थान पर क्रांतिकारी प्रवचन देते हुए अमीरों को 5100/- रुपये
कहकर घर से निकाल दिया। पीहर वालों ने मेरी कोई सहायता न की। निकालने का आह्वान किया। देखते-ही-देखते लाखों रुपये इकट्ठे हो
मैं बहुत दुःखी हूँ। कृपा कर आप मेरे एक महीने के राशन-पानी की गए। उससे एक समाज-बैंक बनाया गया, जो कमज़ोर भाई-बहिनों को
व्यवस्था कर दीजिए। उन्होंने कहा- मैं तो अभी करवा दूंगा, पर बाद में ब्याजमुक्त 10,000/- रुपये का लोन देता है। उस बैंक ने अब तक
फिर तुम्हें औरों के सामने हाथ फैलाना पड़ेगा। इससे तो अच्छा है आप सैकड़ों भाई-बहिनों को बिना ब्याज ऋण देकर पाँवों पर खड़ा करने
कहीं काम कर लीजिए। उसने कहा - मैं तो केवल आठवीं पास हूँ, का पुण्य कमाया है।
मुझे काम कौन देगा? उन्होंने कहा - अगर कोई छोटा काम करना पड़े ___इंसानियत की सेवा और जीव-जंतुओं के कल्याण के लिए श्री ।
तो...? वह तैयार हो गई। उन्होंने एक विद्यालय में फोन करवाकर उन्हें चन्द्रप्रभ सदा ही प्रयत्नशील रहे हैं। उनका विश्वास है, "हमें दीन
चपरासी से जुड़ी नौकरी दिलवा दी। महीना पूरा होते ही बहिन ने दुःखियों की मदद के लिए सहयोग समर्पित करते रहना चाहिए। वे
अपनी पहली तनख्वाह गुरुचरणों में रख दी। उन्होंने उनको एक हजार लोग धरती पर जीते-जागते भगवान होते हैं जो औरों का हित और
रुपये घर खर्च हेतु व एक हजार रुपये से आगे की पढ़ाई करने की प्रेरणा कल्याण के लिए अपने स्वार्थों का त्याग कर देते हैं।" श्री चन्द्रप्रभ का
दी। उस बहिन ने दसवीं का फार्म भरा। क्रमश: दसवीं, बारहवीं पास यह संदेश देशभर में लोकप्रिय है,"अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत
- की, ग्रेजुएशन किया, बी.एड. किया। उनकी टीचर की नौकरी लग हिस्सा दीन-दुःखी, जरूरतमंद और पश-पक्षियों पर अवश्य खर्च गई। फिर उसने एम.ए. किया। आप यह जानकर ताज्जब करेंगे कि करना चाहिए। इससे हमारा शेष बचा धन निर्मल होता है और हमारी आज वही महिला एक कॉलेज में लेक्चरार के पद पर कार्यरत है। भावशुद्धि होती है। अगर हमारे पास रोटी दो और खाने वाले चार हों तब श्री चन्द्रप्रभ की प्रेरणा से अनेक शहरों में संबोधि महिला मण्डल भी हमें स्वार्थ-बुद्धि का त्याग कर दो रोटी चार लोगों में बाँटकर खानी एवं संबोधि बालिका मण्डल के नाम से संस्थाएँ गठित हुई हैं। नारी चाहिए।" श्री चन्द्रप्रभ ने 'मानव स्वयं एक मंदिर है' का संदेश देकर जाति के कल्याण के लिए ये संस्थाएँ विभिन्न योजनाएँ के साथ हर धर्म को मानवता का पाठ पढ़ाया है। पहले कीजिए मदद फिर प्रतिबद्ध हैं। भीलवाड़ा का संबोधि महिला मण्डल तो सम्पूर्ण राजस्थान कीजिए इबादत' पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ का यह संदेश धर्म-जगत् को के लिए आदर्श मण्डल के रूप में उभरकर आया है जिसने अपने नगर नई दिशा प्रदान करता है, "जहाँ केवल पत्थरों के मंदिरों पर श्रद्धा की की कई सेवापरक गतिविधियों को अपने कंधे पर उठाकर रखा है। जाती है वहाँ हमें मानवीय प्रेम का विस्तार करना चाहिए। दुनिया में नारी-जाति को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जहाँ सिलाई प्रशिक्षण एकमात्र प्रेम की ही परिभाषा होती है जिसे गूंगे बोल सकते हैं, बहरे चलता है वहीं टिफिन सेवा सेंटर भी शहर में लोकप्रिय है। इसने सुन सकते हैं।"
अस्पताल में कई वार्ड गोद लिए हैं तो शहर में कई चिकित्सा शिविरों पशु-पक्षियों की सेवा - श्री चन्द्रप्रभ ने मानवीय सेवा के लिए के आयोजन में यह मण्डल अपनी विशिष्ट सेवाएँ देता है। बाड़मेर का तो कई प्रकल्प चलाए ही हैं साथ ही उन्होंने जीव-जंतुओं और पशु
संबोधि बालिका मण्डल भी बालिकाओं के कल्याण के लिए सदा पक्षियों के लिए भी अपनी ओर से सेवाएँ प्रदान की हैं। उनकी प्रेरणा से जागरूक रहता है। अन्य शहरों में जोधपुर का सबााध महिला मण्डल गौसेवा के क्षेत्र में भी कई कार्य हए हैं। उन्होंने अपने सत्संगों में प्रेरणा नारी जाति को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई गतिविधियों को प्रदान करके गौशालाओं में लाखों रुपयों का सहयोग भिजवाया है वहीं संचालित करता रहता है। इस मण्डल ने अब तक 500 से अधिक उनकी प्रेरणा से भीलवाडा एवं नीमच में पक्षी चिकित्सालय की भी महिलाओं को विभिन्न कार्यों का प्रशिक्षण देकर पाँवों पर खडा किया है 14 » संबोधि टाइम्स
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