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एवं आत्मनिर्भर बनाया है। श्री चन्द्रप्रभ के मार्गदर्शन में इंदौर (म.प्र.) में संबोधि नारी निकेतन संस्था की स्थापना हुई जो अशक्त, परित्यक्ता एवं विधवा महिलाओं के लिए आवास की व्यवस्था करने के साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह का प्रशिक्षण प्रदान करती है । श्री चन्द्रप्रभ की प्रेरणा से बाड़मेर में भी महिला सिलाई-कढ़ाई केन्द्र चल रहा है।
श्री चन्द्रप्रभ के मार्गदर्शन में जोधपुर, संबोधि धाम में सन् 2006 में गुरुमहिमा मेडिकल रिलिफ सोसायटी की स्थापना की गई है। यह सोसायटी गरीब एवं जरूरतमंद भाई बहिनों को 40 प्रतिशत छूट पर बड़ी एवं लम्बी बीमारियों की दवाएँ उपलब्ध करवाती है। अब तक यह सोसायटी पिछले 5 वर्षों में लगभग एक करोड़ रुपये से ऊपर की दवाइयाँ वितरित कर चुका है। उनके मार्गदर्शन में जयश्री मनस् चिकित्सा केन्द्र सन् 2000 में संचालित किया गया जिसके अन्तर्गत मनोमस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों की चिकित्सा इंग्लैण्ड से आयातित फूलों के अर्क से की जाती है। श्री चन्द्रप्रभ की प्रेरणा से भीलवाड़ा, जोधपुर, बीकानेर, राजसमंद, इंदौर आदि अनेक शहरों में सैकड़ों शीतल जल की प्याऊओं का निर्माण हुआ है। उन्होंने नशामुक्ति और मांसाहार के त्याग का अभियान भी भारतभर में चलाया। उनके वचनों और प्रवचनों से प्रभावित होकर अब तक हजारों लोग नशा और मांसाहार का त्याग कर चुके हैं, जिसमें सिंधी कौम एवं मुस्लिम कौम भी सम्मिलित है। इस संदर्भ में निम्न घटनाएँ उल्लेखनीय हैं
विदेशी महिला ने अंडे का किया त्याग उदयपुर की घटना है। अमेरिका से पेचविशा नामक एक महिला श्री चन्द्रप्रभ से मिलने आई । चर्चा के दौरान उसने बताया कि मैंने मांसाहार का त्याग कर दिया है। श्री चन्द्रप्रभ ने उनकी प्रशंसा की। चर्चा करते हुए मालूम चला कि वे अंडों को सेवन करती हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने उन्हें समझाया, जब आप मुर्गी नहीं खाती तो उसके अंडे को भी नहीं खाना चाहिए। ऐसा कर आप पूर्ण शाकाहारी बन जाएँगे। उन्हें बात समझ में आ गई और उन्होंने अंडे न खाने का भी हमेशा के लिए संकल्प कर लिया ।
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दुर्व्यसन का किया त्याग एक सिंधी बहिन ने श्री चन्द्रप्रभ से कहा - आज से मैं आपकी सदा ऋणी रहूँगी। उन्होंने बहिन से पूछा - आप कौन हैं? मैं आपसे परिचित नहीं हूँ फिर यह ऋण की बात कैसे? बहन ने बताया कि आज मेरे पति ने आपका प्रवचन सुनकर घर आते ही फ्रीज में रखी बीयर की सारी बोतलों को निकाला और बाहर जाकर नाली में बहा दिया। मुझे आश्चर्य हुआ कि आज इनको ये क्या हो गया? मैंने पतिदेव से पूछा इतनी महँगी बीयरों को नाली में क्यों बहाया? उन्होंने कहा आज महाराज श्री चन्द्रप्रभ जी ने 'अपनी वसीयत कैसी लिखें' प्रवचन में कहा कि, क्या आप चाहेंगे कि आपके बच्चों को भी वसीयत में दुर्व्यसनों के संस्कार मिलें ? आपके बच्चे भी बड़े होकर इन्हीं का सेवन करें। यह सुनकर मेरी अंतआत्मा हिल गई। मुझे लगा कि अपने बच्चों को दुर्व्यसनों की नहीं, संस्कारों की वसीयत देनी चाहिए। इसीलिए आज से मैं शराब का त्याग कर रहा हूँ ।
बेटा महाराज बने तो भी गम नहीं - श्री चन्द्रप्रभ का सन् 2000 में चातुर्मासिक प्रवास अजमेर में था। वहाँ आयोजित प्रवचनमाला में अनेक सिंधी परिवार भी आया करते थे। एक सिंधी युवक प्रवचनों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने शराब के दुर्व्यसन का त्याग कर दिया।
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वह अपना ज्यादातर समय उनकी सेवा में ही बिताया करता था। इतनी निकटता देख सिंधी भाइयों में चर्चा शुरू हो गई कि कहीं यह इनके साथ महाराज न बन जाए। सिंधी समाज के कुछ प्रमुख लोग उस युवक के घर गए। उसके माता-पिता को समझाया कि आपके बेटे का दिनभर इन महाराज के पास रहना अच्छा नहीं है। क्या भरोसा कहीं जैन बन गया तो उसके माता-पिता ने कहा हमारा बेटा दिनभर शराब पिया करता था। हम और उसकी पत्नी उसे समझाते- समझाते हार गए, पर उसकी शराब न छूटी, पर जब से इसने इन गुरुजी के प्रवचन सुनने शुरू किए हैं न जाने इसको क्या हुआ कि इसने न केवल शराब छोड़ी वरन् इसका वाणी व्यवहार भी मधुर हो गया है। हमारे बेटे में जितने भी सद्गुण आए हैं ये सब इन्हीं गुरुजी के सत्संग- सम्पर्क का चमत्कार है, अगर इनके सम्पर्क में रहते-रहते हमारा बेटा महाराज भी बन जाए तो कोई गम नहीं है। हमें खुशी है कि इसने श्रेष्ठ मार्ग पर क़दम बढ़ाया है।
श्री चन्द्रप्रभ जीवन-निर्माण एवं जीवन-विकास के लिए कारागार और कच्ची बस्तियों में जाते हैं। उनके इस अभियान से सैकड़ों कैदियों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आए हैं एवं कच्ची बस्ती वालों को आगे बढ़ने का मार्ग मिला है।
सचमुच में श्री चन्द्रप्रभ मानवता के महर्षि हैं। वे धर्म के उन्नायक हैं। धर्म को आश्रम, स्थानक और उपाश्रय के दायरे से बाहर निकालकर आम इंसान के साथ उसे लागू करने के पक्षधर हैं। ज्ञान के शिखर पुरुष
श्री चन्द्रप्रभ ज्ञान के क्षेत्र में शिखर पुरुष हैं। उनकी बुद्धि, प्रतिभा और ज्ञान अनुपम हैं। उन्होंने न केवल अध्ययन किया वरन् चिंतनमनन-मंथन भी किया और उससे जो सार निकला वह आमजनमानस के सामने रखा। उन्होंने प्राचीन ज्ञान का केवल अनुसरण नहीं किया वरन् उसे वर्तमान संदर्भों में और जीवन के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास किया है। उनके लिए न तो कोई सिद्धांत अगम्य है न ही कोई परम्परा । श्री चन्द्रप्रभ को समय-समय पर मिले ज्ञान अलंकार और उनके प्रवचनों में छत्तीस कौम की जनता का उमड़ना उनके ज्ञानगांभीर्य और उदार दृष्टिकोण को प्रकट करता है। श्री चन्द्रप्रभ का ज्ञानपरक साहित्य इतना सरल व जीवंत है कि लोग उसे बड़े चाव से पढ़ते हैं और एक बार पढ़ने के बाद स्वयं को रोक नहीं पाते हैं । जीवन, व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, ध्यान, धर्म, अध्यात्म, परिवार, समाज, राष्ट्र से जुड़े विषयों पर उनके विचार पढ़कर न केवल उनके प्रति हृदय में श्रद्धा भाव प्रकट होता है वरन् जीवन में आश्चर्यकारी परिवर्तन भी घटित होने लगते हैं। उनके साहित्य की प्रभावकता से जुड़ी मुख्य घटनाए हैं
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जीवन हुआ धन्य छत्तीसगढ़ से एक वृद्ध माताजी संबोधि धाम, जोधपुर आईं। उन्होंने श्री चन्द्रप्रभ को बताया, "आपकी कृपा से मैं बहुत खुश, प्रसन्न व स्वस्थ हूँ हमारे यहाँ आपका साहित्य आता है। मैंने उसे एक बार पढ़ा तो पढ़ने का शौक चढ़ गया। अब मैं प्रतिदिन 78 घंटे आपके साहित्य का स्वाध्याय करती हूँ। उससे मुझे इतनी शांति, आनंद और खुशी मिलती है कि पूछो मत। पहले मेरा समय फालतू की बातों में, बहुओं की खिच खिच में चला जाता था, जिससे मैं परेशान भी होती थी, पर आपकी कृपा ऐसी हुई कि जीवन धन्य हो गया।"
डिप्रेशन हुआ दूर - सन् 2012 श्री चन्द्रप्रभ का चातुर्मास जोधपुर में था । इक्कावन दिवसीय विराट प्रवचनमाला गांधी मैदान में चल रही संबोधि टाइम्स 15
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