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और जीवन से बढ़कर कोई शास्त्र नहीं है।" उन्होंने जीवन-जगत को राशिफल देखने का शौक था। अगर राशिफल अच्छा लिखा आता तो समझे बिना गीता-रामायण-महाभारत को पढ़ना परिणामदायी नहीं वह दिनभर प्रसन्न रहता और राशिफल अच्छा लिखा नहीं आता तो वह बताया है। वे राम-कृष्ण-महावीर-बुद्ध से पहले जीवन से प्रेम करने दिनभर उदास हो जाता। रोज-रोज अखबार देखने की झंझट से बचने की सिखावन देते हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन को प्रभु प्रदत्त श्रेष्ठ उपहार के लिए वह एक पंडित के पास पहुँचा और अपनी समस्या रखी। माना है। श्री चन्द्रप्रभ की महान जीवन-दृष्टि को व्यक्त करती कुछ पंडित ने उसे एक सिक्का बनवाकर दिया - जिस पर एक ओर खुशी घटनाएँ इस प्रकार हैं
खुदी थी तो दूसरी ओर नाखुशी। वह सुबह उठते ही सिक्का उछालता। जीवन को कैसे जीऊँ - एक युवक ने श्री चन्द्रप्रभ के चरणों में अगर खुशी आती तो वह खुश हो जाता और नाखुशी आती तो नाखश। फूल चढ़ाते हुए कहा - गुरुजी, आज मेरा जन्मदिन है और मैं यह एक दिन वह व्यक्ति मुँह लटकाए गुरुदेव श्री चन्द्रप्रभ जी के पास बैठा जानने आया हूँ कि जीवन को कैसे जीएँ ताकि सदा खश और प्रसन्न रह था। गुरुजी ने पूछा- आप दुखी क्यों हैं? उसने कहा - आज मेरे भाग्य सकँ। श्री चन्द्रप्रभ ने यवक को आशीर्वाद देते हए कहा- पहले यह में नाखुशी लिखी हुई है। गुरुदेवश्री ने पूछा - कारण? उसने सिक्के बताओ कि अगर इन फूलों को किसी राजमहल में रख देंगे तो क्या वाली बात बताई और गुरुदेवश्री से कहा - आप सिक्के पर कुछ तंत्रहोगा? युवक ने कहा - ये फूल वहाँ खुशबू बिखेरेंगे। श्री चन्द्रप्रभ ने मंत्र कर दीजिए ताकि हमेशा खुशी ही आए। गुरुदेवश्री ने कहा- आप युवक से दोबारा पूछा - अगर इन्हें मंदिर या किसी किराणे की दुकान आज से चिंता छोड़ दीजिए। सात दिन बाद मुझसे सिक्का ले जाना, पर रख देंगे तो क्या होगा? युवक ने पुनः जबाव दिया कि ये वहाँ भी आपके चमत्कार हो जाएगा। सात दिन बाद उस व्यक्ति ने सिक्का ले महक फैलाएँगे। श्री चन्द्रप्रभ ने कहा - मेरा अंतिम सवाल है कि अगर लिया। अब तो वह व्यक्ति हर दिन खुश रहता । सप्ताह में सात दिन और इन फलों को कहीं गंदगी के ऊपर फेंक देंगे तो...? युवक ने कहा - ये महिने में तीस दिन खुश। उसने गुरुदेवश्री से पूछा - आखिर आपने यह वहाँ पर भी खशब ही बिखेरेंगे। श्री चन्द्रप्रभ ने युवक को समझाते हए चमत्कार कैसे कर दिया? अति आग्रह से पूछे जाने पर गुरुदेवश्री ने कहा - बस, आनंदपूर्ण जीवन जीने का राज इतना-सा है कि जीवन में कहा - मैंने कुछ नहीं किया, बस नाखुशी के 'ना' को घिसकर मिटा चाहे जैसी परिस्थिति आए, हम चाहे राजमहल में रहें या सड़क पर, दिया।अब चित गिरे तो भी खुशी और पुट गिरे तो भी खुशी। व्यक्ति यह फूलों की तरह हर जगह अपनी खुशबू बिखेरते रहें और हर परिस्थति सुनकर आश्चर्यचकित रह गया। गुरुदेवश्री ने कहा - जीवन को में महकते रहें।
आनंदपूर्ण बनाने का राज इतना-सा है कि जो जिंदगी में से बोलने से पहले किन बातों का ध्यान रखें - एक युवक ने श्री
नकारात्मकता के 'न' को हमेशा के लिए हटा देता है और हर कार्य को
नकारात्म चन्द्रप्रभ से पूछा - बोलने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए मुस्कुरात हुए करत
मुस्कुराते हुए करता है वह सदा खुश रहता है। सकारात्मकता ही ताकि कभी तकरार वाली नौबत न आए। उन्होंने युवक को कुछ पंख
सफलता का प्रथम मंत्र है। दिए और उसे बाहर फेंककर आने के लिए कहा। युवक फेंककर आ
के लिए कहा। यवक फेंककर आ मानवता के महर्षि गया। युवक ने कहा- मेरे सवाल का जवाब? उन्होंने कहा- मैंने तो दे श्री चन्द्रप्रभ मानवतावादी संत हैं। वे मानवता से बेहद लगाव दिया। युवक ने कहा - मैं समझा नहीं। उन्होंने कहा - जाओ, जो पंख रखते हैं। उनके यहाँ अमीर-गरीब, गोरे-काले अथवा ऊँच-नीच की आपने बाहर फेंके हैं उन्हें वापस ले आओ। युवक ने वापस आकर भेदरेखा नहीं है। उनके साहित्य में सर्वत्र मानवीय दृष्टि उजागर हुई है। कहा- वे तो उड़ गए, उन्हें अब वापस समेटना मुश्किल है। उन्होंने वे न केवल मानवीय कल्याण की बात कहते हैं वरन् वे मानवीय सेवा कहा - जैसे उड़े हुए पंखों को वापस समेटना संभव नहीं है वैसे ही के अनेक प्रकल्प भी चला रहे हैं। उनकी दृष्टि में, सभी मानव महान बोलने के बाद शब्दों को वापस लेना भी संभव नहीं है। इसलिए बोलने एवं आदरणीय हैं। वे जाति और रंग की बजाय इंसानियत को मूल्य देने, से पहले मुस्कुराओ और फिर सामने वाले का अभिवादन कर मीठी, मानवता की पूजा करने का पाठ सिखाते हैं। वे अच्छा जैन, हिन्दू, उपयोगी व शिष्टतापूर्ण भाषा बोलो।
मुस्लिम, सिख अथवा ईसाई बनने की बजाय अच्छा इंसान बनने की जीवन भर खुश कैसे रहें - संबोधि धाम, जोधपुर में बाहर से प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं, "अच्छा जैन, अच्छा हिन्दू, अच्छा यात्री-संघ आया हुआ था। खुशी-नाखुशी की चर्चा चल रही थी। एक मुसलमान अच्छा इंसान हो यह जरूरी नहीं है, पर अच्छा इंसान अपने यात्री ने श्री चन्द्रप्रभ से पूछा - हम कभी खुश रहते हैं तो कभी नाखुश। आप में अच्छा जैन भी होता है और अच्छा हिन्दू और मुसलमान भी।" क्या ऐसा कोई सरल नुस्खा है कि हम जीवन भर खुश रहें? उन्होंने कहा इस तरह उन्होंने धर्म, पंथ, परम्परा से ज्यादा मानवता को महत्त्व दिया - हाँ, अगर एक घंटे की खुशी चाहते हो तो जहाँ बैठे हो वहीं झपकी ले है। लो। एक दिन की खुशी चाहिए तो दुकान-ऑफिस से छुट्टी ले लो श्री चन्द्रप्रभ मानवीय उत्थान एवं प्राणीमात्र के कल्याण की भावना और आस-पास पिकनिक मनाने चले जाओ। एक सप्ताह की खुशी से सदा ओतप्रोत रहते हैं। उनका मानना है, "महत्त्व इसका नहीं है कि चाहते हो तो किसी हिल स्टेशन - माउण्ट आबू, मसूरी, दार्जलिंग हमारे कितने सेवक हैं, बल्कि इसका है कि हममें कितना सेवाभाव घुमने चले जाओ। एक महीने की खुशी चाहते हो तो किसी से शादी है।" श्री चन्द्रप्रभ ने सर्वधर्म सद्भाव, मानवीय एकता एवं प्राणी मात्र कर लो। साल भर की खुशी चाहते हो तो किसी करोड़पति के गोद चले की पर विशेष रूप से बल दिया है। वे सेवा धर्म को परमात्म-पूजा और जाओ, पर यदि जीवनभर की खुशी चाहते हैं तो अपने स्वभाव को मीठा प्रभ-प्रार्थना के तुल्य बताते हैं। वे कहते हैं, "मानवता की सेवा करने व मधुर बना लो
वाले हाथ उतने ही धन्य होते हैं, जितने परमात्मा की प्रार्थना करने वाले नाखुशी के 'ना' को हटाएँ - एक व्यक्ति को अखबार में होंठ।" उनका मानना है, "किसी पीड़ित व्यक्ति की सेवा में लगा हुआ For Personal & Private Use Only
संबोधि टाइम्स)-1300
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