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की जड़ है।" श्री चन्द्रप्रभ आदर्शयुक्त राजनीति के समर्थक हैं, उन्होंने मार्गदर्शन दिया गया है - आदर्शहीन होती जा रही राजनीतिक स्थिति की कटु आलोचना की है। 1.राजनीति और धर्मनीति के बीच रामसेतु का निर्माण हो। वे कहते हैं, "राजनीति अब देश-भक्ति नहीं रही, वरन् नाम और पैसा 2. नेता लोग राजनीति के नाम पर बुराइयों को पनपाने की बजाय कमाने का जरिया बन चुकी है।""राजनीति समाज-सेवा की बजाय अच्छाइयों को पनपाएँ ताकि राष्ट्रीय गौरव को पुनःस्थापित किया जा सके। समाज के साथ व्यापार बन गई है। वर्तमान में राजनीति से बढ़कर कोई 3.हर व्यक्ति धर्मभक्त बनने से पहले राष्ट्रभक्त बने। आशावान व्यवसाय नहीं है।" उनका मानना है,"कोई अच्छा आदमी 4.युवा राजनैतिक पार्टियों को जिताने की बजाय भारत को जिताएँ। राजनीति में आकर और अच्छा बन जाए, यह मुमकिन नहीं है। 5. कांग्रेस-भाजपा अपनी-अपनी रोटी सेकने की बजाय दोनों राजनीति तो अच्छे मनुष्य को और बुरा बनाती है और जो बुरा है, उसे पार्टियाँ देशहित में एक हों।
और भी जघन्य बना देती है।""राजनीति तो वह युद्ध है, जिसमें आम इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने राजनीति से जुड़े विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं का युद्ध की तरह रक्तपात तो नहीं होता, पर बाकी कुछ बचता नहीं है।" सटीक विश्लेषण कर राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई है।
वर्तमान राजनीतिक स्थिति का चित्रण करते हुए श्री चन्द्रप्रभ ने 6.नारी उत्थान- विश्व के चहुंमुखी विकास के लिए नारी-जाति कहा है, "अब राजनीति नीति-रहित होती जा रही है, पक्ष वाले जैसे- का उत्थान आवश्यक है। श्री चन्द्रप्रभ नारी-जाति के विकास के पूर्ण तैसे करके सत्ता बचाए रखने में लगे हैं, और विपक्ष वाले उसे गिराने में। समर्थक हैं। उन्होंने न केवल नारी-जाति को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी सांसदों की खरीद-फरोख्त हो रही है। शस्त्र के बल पर सत्ता पाने की है. वरन नारी-उत्थान के अनेक कार्य भी किए हैं। उन्होंने न केवल कोशिश हो रही है।" उन्होंने राजनीति में प्रवेश करने वाले संतों को नारी को पुरुष से महान बताया है, बल्कि उसका दायित्व क्षेत्र भी पुरुष सावधान करते हुए कहा है, "संतों द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार- से अधिक माना है। वे नारी को नरक की खान बताने वालों का विरोध प्रसार हेतु राजनीति के मंच का उपयोग करना कोई अर्थ रखता है, किंतु करते हैं। उनका मानना है, "नारी नरक की खान नहीं, ममता का सत्ता-सुख और प्रतिष्ठा के लिए उसका उपयोग करना संत के वेश में महासागर है।" नारी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा है, "नारी घर महत्वाकांक्षा का ही पोषण है।" निश्चय ही श्री चन्द्रप्रभ ने वर्तमान
की लक्ष्मी है। नारी घर की शोभा है। जिस घर में नारी की इज्जत नहीं, राजनीति के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की है।
वह घर अवनति की ओर चल पड़ता है।" उन्होंने पुरुषों को नारी का श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में राजनेताओं की स्थिति का भी चित्रण सम्मान करने, प्रेम देने और शिक्षित कर आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी है। वे किया गया है, उन्होंने राजनेताओं को राजनीति के क्षेत्र में आदर्श पेश नारी को पुरुष के समकक्ष न मानने की परम्परा का खण्डन करते हैं। करने का मार्गदर्शन दिया है। आज के नेताओं की स्थिति का विवेचन उन्होंने नारी की योग्यता पर प्रकाश डालते हुए कहा है, "स्त्री में करते हुए श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "यदि एक राजनेता को अपना पद अनादिकाल से ही ऊँचाइयों को छूने की अद्भुत क्षमता रही है। सृष्टि में बचाने के लिए सारी दुनिया को भी कुर्बान करना पड़े तो वह वैसा करते जब-जब भी नारी को विकास का मंच मिला है, शांत नारी ने अपनी हुए दो ट्रक भी हिचकिचाता नहीं है।""अवसरवादिता, पदलोलुपता, विलक्षण शक्ति को भी प्रदर्शित किया है। जिस युग ने नारी को उसकी घोटालेबाजी ये सब तो एक ऊँचा राजनेता होने के लिए सर्वमान्य बातें स्वतंत्रता और सम्मान दिया, नारी ने उस युग को सदैव गौरवान्वित हो गई हैं।" उन्होंने राजनेताओं को गाँधीजी से प्रेरणा लेने व सच्चा किया है। जिस युग ने नारी को अपमान, उपेक्षा और कलंक दिया, वह राजनीतिज्ञ बनने की सीख दी है। उनकी दृष्टि में, "गाँधीजी ने राजनेता युग इतिहास का काला अध्याय बन गया।" होकर भी त्याग के आदर्श को जीवंत किया था, यद्यपि भारत आज
श्री चन्द्रप्रभ नारी में विश्व का उज्ज्वल भविष्य देखते हैं। वे नारी प्रगति के शिखर पर है, फिर भी घटिया राजनीति के कारण अनेक
अनक जाति को अनुसरण की बजाय स्वयं का पथ निर्मित करने की सीख देते विकट समस्याओं से जूझ रहा है। नेता लोग चुनाव तो जीतना चाहते हैं, रोमादा आने वाला विएत नारी कामलों पर देश का संचालन करना नहीं जानते। परिणामस्वरूप राजनीति पैसा
ने युगों-युगों तक नारी का दमन किया है। आने वाले समय में पुरुषों को ऐंठने का शुद्ध व्यापार बन गई है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन
विदा होना पड़ेगा और नारी नए विश्व के निर्माण और विकास की भारत भिखमंगा हो जाएगा।" उन्होंने राजनेताओं को चाणक्य, महात्मा
आधारशिला होगी।" उन्होंने महिलाओं को चारदीवारी से बाहर गाधा, जयप्रकाश नारायण, राम मनाहर लोहिया, वल्लभभाई पटल, निकलने की सीख दी है। वे महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधे से कंधा अन्ना हजारे जैसे राजनीतिज्ञों को आदर्श बनाने की सीख दी है।
मिलाकर आगे बढ़ने व अपने ज्ञान का उपयोग चूल्हे-चौके में करने की राजनीतिज्ञ के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए श्री चन्द्रप्रभ कहते बजाय आने वाली पीढी के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण के लिए करने हैं. सच्चा राजनीतिज्ञ वह है जो राजनेताओं के मायाजाल में नहीं फँ की सलाह देते हैं। वे नारी में रहने वाले ममता, प्रेम, वात्सल्य, सता। राजनेता अपने को सदा पद से जोड़ना चाहता है, जबकि सहनशीलता. मर्यादा, गंभीरता, शील-भावना, निर्व्यसनी जीवन जैसे राजनीतिज्ञ पद को केवल खुद की लोलुपता मानता है, चाणक्य महान सदगणों को विश्व-शांति, विश्व-बन्धुत्व और विश्व रक्षा का आधार राजनीतिज्ञ हए, पर राज्य अधिकारों से सदा निवृत्त रहे, महात्मा गाँधी मानते हैं। उन्होंने नारी-जाति को अपनी मर्यादा और गरिमा के प्रति पदलोलुपता की प्रतिस्पर्धा में कभी सम्मिलित न हुए।" इस तरह विशेष रूप से सावधानी बरतने की सीख दी है। इस तरह श्री चन्द्रप्रभ श्री चन्द्रप्रभ ने राजनेताओं को राजनीति करते हुए राजनीतिज्ञ बनने की विश्व-निर्माण में नारी की भमिका को निर्विवादित रूप से स्वीकार सलाह दी है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में राजनीतिक सुधारों के निम्न करते हैं एवं उसे निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने आने वाले
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