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है। वे गरीबी को दूर करने के लिए एकमात्र धर्मनीति को पर्याप्त नहीं किया है। वे कहते हैं, "भारत में धर्म के नाम पर दुनिया की सबसे मानते। उनकी दृष्टि में,"अकेले धर्मनीति से गरीबी को दूर नहीं किया ज्यादा सत्संग-सभाएँ व धर्म-कथाएँ होती हैं, पर क्या धर्म के पास जा सकता। धर्मनीति के द्वारा अर्थ पुरुषार्थ पर अंकुश तो लगाया जा आतंकवाद, भ्रष्टाचार, गरीबी मिटाने का समाधान है? संत-मौलवी सकता है, पर अर्थ पुरुषार्थ के लिए एकमात्र धर्मनीति काम नहीं आ लोग जनता को केवल मंदिर-मस्जिद में जाकर इबादत करने की ही सकती। धर्मपूर्वक अर्थ कमाया जाए और अर्थ अर्जित करते हुए भी प्रेरणा न दें, वरन् शांति के पैगाम को पूरे मुल्क में फैलाएँ। आतंक की व्यक्ति धर्म का विवेक रखे।" इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने गरीबी के प्रति घटनाओं में किसी एक मजहब का नाम आना शर्म की बात है। ऐसे परम्परागत धारणाओं से हटकर विचार रखे हैं। उन्होंने गरीबी को दूर आतंकवादियों को धर्म से बहिष्कृत करने की हिम्मत दिखानी चाहिए, करने के लिए कुछ विशिष्ट सूत्र प्रदान किए हैं -
तभी भाईचारे के नारे सार्थक होंगे।" उन्होंने मौलवियों से विशेष रूप 1.ग्रामीण व आदिवासी जनता को शिक्षित किया जाए। से निवेदन करते हुए संदेश दिया है, “हिन्दुस्तान में हिन्दू-मुस्लिम 2. माता-पिता बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाएँ।
भाई-भाई के रूप में सदियों से रहते आए हैं। मुस्लिम मौलवियों को 3.लड़कियों को लड़कों के समान अधिकार दिए जाएँ।
इस देश की जनता को विश्वास में लेना चाहिए कि देश में आतंकवाद न 4. शिक्षा को रोजगारमूलक बनाया जाए।
हो, पर फिर भी आतंक का जोर रहता है तो कम-से-कम मन मोल रोगों को विकसित करने के लिए आतंकवादियों की फेहरिस्त में कोई मुसलमान तो न ही हो।" अधिकाधिक प्रोत्साहन दें।
श्री चन्द्रप्रभ ने आतंकवाद को मिटाने का मार्गदर्शन देते हुए कहा 6. हर समृद्ध व्यक्ति एक गरीब आदमी को आत्मनिर्भर बनाने के है, "अगर आतंकवादी शक्ति का उपयोग बिगाड़ने की बजाय दुनिया लिए गोद ले।
को बनाने में लग जाए तो सौ सालों में किया जाने वाला विकास दस 7. हर व्यक्ति अपना हुनर दूसरों को सिखाए।
सालों में किया जा सकता है। इंसान मौत का सौदागर बनने की बजाय
इंसानियत का फरिश्ता बने। सरकार आतंकवाद को उखाड़ने की 8. शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।
मजबूत इच्छाशक्ति पैदा करे। आतंकवादी हमसे ज्यादा शक्तिशाली नहीं 9. देश के जितने भी धार्मिक ट्रस्ट हैं वे आय का 25 प्रतिशत मानव
हैं। आतंकवादियों में ऐसा खौफ पैदा किया जाना चाहिए ताकि वे सेवा के कार्यों में खर्च करें।
दुबारा आतंक फैलाने का साहस न कर सकें।" उन्होंने मानसिक 10. हर समाज सामाजिक बैंक बनाकर निर्धन व जरूरतमंद लोगों
आतंक को समाप्त करने के लिए औरों के प्रति मानवीय दृष्टि अपनाने, को ब्याजमुक्त ऋण दे।
प्रतिदिन ध्यान करने, शांति को महत्त्व देने, सत्-साहित्य का विस्तार इन बिन्दुओं से स्पष्ट होता है कि श्री चन्द्रप्रभ राष्ट्रीय समस्याओं के
करने, जाति या धर्मगत स्वार्थों को महत्त्व न देने की प्रेरणा दी है। वे प्रति जागरूक हैं। उन्होंने गरीबी जैसी समस्या का समसामयिक
वर्तमान आतंकवाद को मिटाने के लिए राजनीतिक समाधान ढूँढ़े जाने समाधान देकर राष्ट्रोत्थान को नई दिशा देने की कोशिश की है।
के भी पक्षधर हैं। इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने आतंकवाद के प्रति सशक्त 4.आतंकवाद - आतंकवाद न केवल भारत की अपितु विश्व की
मार्गदर्शन दिया है। धर्म और संतों-मौलवियों को भी आतंकवाद के प्रमुख समस्या बन चुका है। भारत में आए दिन आतंकी हमले हो रहे ।
निरसन के लिए खुलकर सामने आने की प्रेरणा देना उनका साहसिक हैं। लोग इससे संत्रस्त हैं, पर सरकार इस समस्या को सुलझाने में
कदम है। सफल नहीं हो पा रही है। घटिया राजनीति, कमजोर आंतरिक सुरक्षा
5. राजनीति - राजनीति लोकतंत्र का प्रमुख अंग है। स्वस्थ स्थिति और राष्ट्र-भावना की कमी के चलते यह समस्या दिनोंदिन
लोकतंत्र के संचालन के लिए स्वस्थ राजनीति का होना अनिवार्य है। बढ़ती जा रही है। पाकिस्तान आतंकवाद का प्रमुख केन्द्र बन चुका है।
राजनीति विश्व में सदियों से चली आ रही है। जब-जब राजनीति धर्म आतंकवादी बेखौफ होकर देश में तबाही मचा रहे हैं। ऐसी स्थिति में
और नैतिकता शून्य हुई है, तब-तब लोकतंत्र को इसका मोल चुकाना आतंकवाद को समूल नष्ट करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। श्री
पड़ा है। राजनीति नैतिकतापूर्ण हो, यह प्रत्येक देश व राज्य के लिए चन्द्रप्रभ के दर्शन में आतंकवाद पर समसामयिक चिंतन प्रस्तुत हुआ
अपेक्षित है। वर्तमान भारत की राजनीति धर्म और नैतिकता से अर्थ है। श्री चन्द्रप्रभ ने विश्वशांति और विश्व-प्रेम की स्थापना के लिए।
और काम की ओर गतिशील हो चुकी है। परिणामस्वरूप भारत को आतंकवाद को समूल नष्ट करने पर बल दिया है। वे कहते हैं,
अनेक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। "आतंकवाद वह विषैली गैस है, जिसे निष्प्रभावी किये बगैर विश्व प्रेम और शांति की साँस नहीं ले सकेगा।" उन्होंने आतंकवाद के पीछे
श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में जहाँ एक ओर राजनीतिक स्वरूप में निम्न कारणों का उल्लेख किया है -
प्रकाश डाला गया है, वहीं दूसरी ओर वर्तमान राजनीतिक स्वरूप में
सुधार लाने की पहल की गई है। राजनीति की व्याख्या करते हुए श्री 1.आनुवंशिकता
2.वातावरण 3.आर्थिक शोषण 4.मानसिक विकृतियाँ
चन्द्रप्रभ कहते हैं, "राज्य की लोक- कल्याणकारी नीतियों की 5.मानसिक दमन व आत्मदमन।
प्रशासनिक व्यवस्था का नाम राजनीति है।" उन्होंने अधिकारपरस्त
राजनीति की बजाय समाज-सुधार से जुड़ी राजनीति को उचित बताया श्री चन्द्रप्रभ छिछली राजनीति और धार्मिक-साम्प्रदायिक
है। उनका मानना है, "समाज सुधार के लिए की जाने वाली राजनीति संकीर्णता को भी आतंकवाद के मुख्य आधार बताते हैं। उन्होंने
कभी निन्दनीय नहीं रही है। अधिकारपरस्त राजनीति ही हर उठापठक आतंकवाद के परिप्रेक्ष्य में धर्म एवं संत-समाज को भी कठघरे में खड़ा
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