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________________ कल की नींव महिलाओं को बताकर नारी-जाति को बहुत बड़ा लिए खतरनाक सिद्ध किया है। वे कहते हैं, "दुनिया के किसी भी दायित्व सौंपा है। महादेव को धरती को मिटाने के लिए तीसरी आँख खोलने की जरूरत 7. अहिंसा और विश्वशांति - अहिंसा विश्वशांति की नहीं पड़ेगी। दुनिया के पास इतने अणु-परमाणु, हाइड्रोजन बमों का आधारशिला है। यह विश्व की संरक्षिका है। हिंसा, आतंक, उग्रवाद, भंडार इकट्ठा हो चुका है कि दुनिया को एक बार या सात बार नहीं, साम्प्रदायिक संकीर्णता और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से घिरे भारत के सौ-सौ बार खत्म किया जा सकता है।" उन्होंने अणुबमों के निर्माण में लिए अहिंसा एक सकारात्मक समाधान है। अहिंसा और प्रेम जैसे लगने वाले धन को मानवीय उत्थान में लगाने की सीख देते हुए कहा सिद्धांतों से ही विश्व-शांति और विश्व-बंधुत्व का सपना साकार हो है, "आधुनिक टैंक को खरीदने में जितनी कीमती लगती है, उतनी सकता है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में आतंकवाद के दौर में अहिंसा और कीमत से एक लाख लोगों को आठ दिन तक भोजन करवाने अथवा अणुबम के युग में अणुव्रत की स्थापना पर बल दिया गया है। श्री तीस हजार बच्चों को स्तरीय शिक्षा दिलवाने की व्यवस्था की जा चन्द्रप्रभ ने अहिंसा की वर्तमान संदर्भो में व्याख्या कर न केवल सकती है। लड़ाकू विमान के एवज में 40 हजार गाँवों को भोजनअहिंसक लोगों को जगाया है, वरन् अहिंसा के सकारात्मक पहलुओं स्वास्थ्य सुविधाएँ और परमाणु पनडुब्बी के एवज में 23 विकासशील को आम इंसान तक पहुँचाने की कोशिश भी की है। देशों के 60 लाख बच्चों को सारी सुविधाएँ दी जा सकती हैं। शस्त्र श्रीन टीन में अहिंसा कोना स्वरूप में व्यायायित निर्माण में लगने वाला धन दुनिया के विकास में लगा दिया जाए तो किया गया है। उन्होंने अहिंसा को हिंसा न करने के अर्थ तक सीमित 1000 वर्षों में होने वाला विकास मात्र 10 सालों में हो जाएगा।" नहीं रखा है। उनका कहना है,"अहिंसा का अर्थ केवल इतना ही नहीं श्री चन्द्रप्रभ ने अणुबमों के आधार पर स्वयं को सुरक्षित समझने है कि हिंसा मत करो। अहिंसा का अर्थ है प्राणिमात्र के प्रति अपनी वाले देशों को सावधान किया है और इंसानियत के धर्म को विस्तार देने मंगल मैत्री साधो। अहिंसा यानी अनंत प्रेम । अहिंसा हमें सिखाती है की जरूरत बताई है। वे कहते हैं, "दुनिया में कोई भी देश सुरक्षित नहीं कि अगर तुम किसी इंसान को जीवन नहीं दे सकते हो तो तुम्हें किसी है,न भारत, न पाकिस्तान न अमेरिका । ये जब तक सुरक्षित हैं तब तक का भी जीवन छीनने का कोई अधिकार नहीं है।" हम अपनी ओर से सुरक्षित हैं और जिस दिन कोई गलत कदम उठ गया, उस दिन कोई न किसी मछली को मारने की बजाय उसे पानी में तैरते हुए देखने, बचेगा। धरती पर एकमात्र इंसानियत का धर्म जीवित रहे बाकि सब आसमान में उड़ती किसी बुलबुल को निशाना बनाने की बजाय उसे भूल जाएँ। अगर इंसानियत रहेगी तो धरती पर स्वर्ग के रास्ते खुले हुए उड़ते हुए देखने, हिरणों को अपना शिकार बनाने की बजाय उन्हें होंगे, अन्यथा शेष क्या रहेगा?" दौड़ते हुए देखने का आनंद लें। श्री चन्द्रप्रभ ने अहिंसा का विस्तार श्री चन्द्रप्रभ ने इंसानियत का धर्म फैलाने के लिए संतों की करने के लिए हिंसक लोगों को अहिंसा का प्रशिक्षण देने की प्रेरणा दी आवश्यकता पर बल दिया है। उनका मानना है, "आज दुनिया में है। वे कहते हैं, "अगर आपका पड़ौसी मांस खा रहा है और आप उसे दाऊद और लादेन से 100 गुना ज्यादा जरूरत संतों की है, जो धरती पर छोड़ने की प्रेरणा नहीं देते तो आप भी दोषी हुए। जैसे मंदिर बनाना विस्तार लेकर शांति का संदेश फैला सकें । उन्होंने विश्व शांति स्थापित पुण्य की बात है, वैसे ही इंसान को अहिंसा के मार्ग पर प्रवृत्त करना सौ करने में इस्लाम की भूमिका निभाने का अनुरोध किया है। उनका तीर्थों की यात्रा करने से भी ज्यादा कल्याणकारी होता है।" मानना है, "इस्लाम का अर्थ है : शांति । इस्लाम का भी विश्व में शांति श्री चन्द्रप्रभ ने अहिंसक लोगों को चुप बैठने की बजाय पूरी स्थापित करने में उतना ही दायित्व है, जितना अन्य धर्मों का है। अगर दुनिया में फैलने और अहिंसा के साधनों को फैलाने की प्रेरणा दी है। कोई इस्लाम का सच्चा अनुयायी है तो वह पहले शांति का हिमायती उन्होंने शांति और अहिंसाप्रिय लोगों के सामने कर्त्तव्यपालन को लेकर बने। जो अमन के खिलाफ है वह मजहब के खिलाफ है और जो प्रश्नचिह्न खड़ा किया है। उनकी दृष्टि में, "तबाही के पुजारी अपना । मजहब के खिलाफ है वह खुदा का बंदा कैसे हो सकता है।" उन्होंने काम कर रहे हैं और शांति के पुजारी चुप बैठे हैं। शराब, अंडों का अहिंसा के प्रशिक्षण केन्द्रों को खोलने की प्रेरणा देते हुए कहा है, प्रचार करने वाले पूरी दुनिया में फैल चुके हैं, और इनका निषेध करने "जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के प्रशिक्षण केन्द्र चल रहे हैं। अगर वाले स्थान विशेष में बैठकर दो-चार बातें करके चुप हो जाते हैं। हिंसा दुनिया को खत्म करने का प्रशिक्षण पाकिस्तान देता है तो दुनिया को के शस्त्र तो बेहिसाब बन रहे हैं और अहिंसा के शास्त्र अलमारियों में कैसे जीवित रखा जाए, इसका प्रशिक्षण भारत दे।" वे युद्ध को सभ्यता दीमकों की खुराक बन रहे हैं। ऐसे वक्त में शांतिप्रिय, प्रेम और अहिंसा व संस्कृति की हत्या करने वाला बताते हैं। उन्होंने युद्ध को में आस्था रखने वाले लोगों को चाहिए कि वे सोचें कि उनके क्या महत्त्वाकांक्षाओं का संघर्ष माना है। वे कहते हैं, “विगत दो हजार कर्त्तव्य होते हैं?" सालों में शांति और मातृभूमि के नाम पर विश्व में पाँच हजार युद्ध हो श्री चन्द्रप्रभ ने अणुबम के इस युग में अणुव्रत की उपयोगिता को चुक हाजिस सभ्यता आर सस्कृति कानमाण म कसा दश का बास उजागर किया है। उनका मानना है, "दुनिया में कोई भी राज्य केवल साल लगते हैं, पर उसे नष्ट करने में युद्ध को बीस दिन भी नहीं लगते।" बम के बल पर न तो अपना संचालन कर सकता है, और न ही किसी श्री चन्द्रप्रभ ने विश्वशांति और विश्वमैत्री का दायित्व अहिंसक प्रकार की मजबूत अर्थव्यवस्था प्रदान कर सकता है। धरती पर जब भी लोगों को सौंपा है। यद्यपि दुनिया में अहिंसक लोग कम हैं, फिर भी किसी संस्कृति को पालन-पोषण मिलता है, तो उसके पीछे किसी-न- चन्द्रप्रभ कहते हैं, "मुट्ठीभर सेना भी अगर जीत का जज्बा अपने किसी अणुव्रत की ही भूमिका रही है।" श्री चन्द्रप्रभ ने अणबम के भीतर जगा ले तो सारी बाजी पलट सकते हैं। अहिंसा में निष्ठा रखने निर्माण पर होने वाले खर्चों को अव्यावहारिक बताते हुए उसे विश्व के वाले लोग भले ही अरबों न हों, पर करोड़ों अहिंसक अहिंसा को विश्व संबोधि टाइम्स -135 Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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