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________________ मानवता में ईश्वर का निवास माना है। वे कहते हैं, "यदि मैं यह परिग्रह को ईश्वरीय नियमों के विरुद्ध मानते हैं। उन्होंने परिग्रह पर विश्वास कर पाता कि ईश्वर मुझे हिमालय में मिलेगा तो मैं तुरंत वहाँ संयम करने के लिए ट्रस्टीशिप का सिद्धांत अपनाने की प्रेरणा दी। पहुँचता, पर मैं उसे मानवता से पृथक् नहीं कर सकता।" बाद में ट्रस्टीशिप का सिद्धांत अनावश्यक परिग्रह को समाज कल्याण में गाँधीजी ने 'सत्य ही ईश्वर है' कहकर ईश्वर से ज़्यादा सत्य को महत्त्व । उपयोग करने की सीख देता है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में गरीबी को दिया। इस तरह गाँधी जी ने ईश्वरीय मान्यताओं में समग्र जीवन-दृष्टि जीवन का अभिशाप मानते हुए सबको समृद्ध होने का आत्मविश्वास लाने की कोशिश की। जगाया गया। वे कहते हैं, "हर व्यक्ति समृद्ध बने,समाज में गरीबों को श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व को सर्वत्र स्वीकार कोई नहीं पूछता। अपरिग्रह का सिद्धांत अमीरों के लिए है,गरीबों के किया गया है। श्री चन्द्रप्रभ की दृष्टि में, ईश्वरीय अनुभति अंतर्घट में लिए नहीं।" उन्होंने आवश्यकतानुसार वस्तुओं का संग्रह करने की उसके प्रति जगने वाली प्यास है। वे कहते हैं, "ईश्वर हमारी छाया की प्रेरणा दी है व झूठ-चोरी-रिश्वतखोरी-भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं का तरह हमारे साथ है, हमारे इर्द-गिर्द गज़र रही हवाओं में भी उसी की मूल कारण परिग्रह-बुद्धि को माना है। उन्होंने महात्मा गाँधी द्वारा दिए स्पर्शना है, हमारे आस-पास खिल रहे फूलों में भी उसी की सवास है। गए अपरिग्रह व्रत की प्रशंसा करते हुए कहा, "महावीर के बाद गाँधी आँखों के आगे से गुज़र रहे हर रूप के साथ उसी का अहसास है. बस ने अपरिग्रह को चरितार्थ किया।अब फिर से गाँधी की ज़रूरत आ पडी वह प्यास, दृष्टि, हार्दिकता, संवेदनशीलता, सजगता चाहिए जो हमें __ है जो गरीबों की, ज़रूरतमंदों की पीड़ा को समझे और देश के चरित्र को उसका सुखद अहसास दे सके।" इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ईश्वर को अपरिग्रह का चरित्र बनाए।" इसी तरह श्री चन्द्रप्रभ एवं महात्मा गाँधी खोजने की बजाय उस शक्ति को पहचानने पर बल देते हैं। उन्होंने के दर्शन में साधन शुद्धि, श्रम प्रतिष्ठा, शराबबंदी, अस्पृश्यता निवारण, अनेक ईश्वरीय रूपों में एक रूप देखने की और हर कर्म को प्रभु-पूजा सफाई व्यवस्था, गौरक्षा के सिद्धांतों पर भी वैचारिक समानता दिखाई मानते हुए करने की प्रेरणा दी है। वे दु:खी, रोगी, अपाहिज की सेवा व देती है। स्वार्थ के त्याग को भी प्रभु-पूजा तुल्य मानते हैं। इस तरह स्पष्ट है कि महात्मा गाँधी एवं श्री चन्द्रप्रभ भारतीय श्री चन्द्रप्रभ व महात्मा गाँधी के दर्शन में नैतिक मूल्यों को जीवन संस्कृति के मूल तत्त्वों में बेहद आस्था रखते हैं और उन्हें राष्ट्रीय में अपनाने पर विशेष बल दिया गया है। महात्मा गाँधी ने नैतिक मूल्यों उत्थान एवं जीवन-निर्माण के आधार स्तंभ के रूप में प्रस्तुत करते हैं। के अंतर्गत अहिंसा व सत्य को सर्वोच्च स्थान दिया है। वे कहते हैं, जहाँ महात्मा गाँधी प्राचीन मूल्यों को वर्तमान देश की परिस्थितियों के "जब आप सत्य को ईश्वर के रूप में जानना चाहो तो उसका एकमात्र साथ पूर्णरूपेण लागू करना चाहते हैं वहीं श्री चन्द्रप्रभ उन्हें उपयोगिता उपाय है प्रेम और अहिंसा।" महात्मा गाँधी ने अहिंसा के सकारात्मक के आधार पर अपनाने के समर्थक हैं। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में ईश्वर भाव पर विस्तार से प्रकाश डाला है। वे अहिंसा को स्वीकारात्मक, संबंधी विचार अनेकता में एकता व विराटता के रूप में प्रस्तुत हुआ है। वीरों का सिद्धांत, कर्मठता का दर्शन, विरोधियों को परास्त करने का जहाँ महात्मा गाँधी ने प्राणिमात्र में ईश्वरीय तत्त्व की विद्यमानता आधार व राष्ट्र-निर्माण करने वाली शक्ति बताते हैं। स्वीकार की वहीं श्री चन्द्रप्रभ ने सृष्टि के कण-कण में ईश्वरीय तत्त्व श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में नैतिक मूल्यों के अंतर्गत अहिंसा, प्रेम, का अस्तित्व माना है। दोनों दर्शन अहिंसा को राष्ट्र-रक्षा की नींव मानते शांति, सहयोग, व्यसनमुक्ति को विशेष स्थान प्राप्त हुआ है। श्री हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने अपरिग्रह सिद्धांत का समर्थन करते हुए भी समृद्ध चन्द्रप्रभ कहते हैं, "समृद्धि का कितना ही अंबार क्यों न लग जाए बगैर बनने की प्रेरणा दी है जो कि उनके वर्तमान अनुभवों का परिणाम है। नैतिक मूल्यों के व्यक्तित्व का निर्माण, सामाजिक मूल्यों का विकास व सार रूप में कहा जाए तो श्री चन्द्रप्रभ व महात्मा गाँधी के विचारों में देश का उत्थान नहीं हो सकता है। हमने अब तक धर्म-मज़हबों को काफी हद तक समानता होते हुए भी वर्तमान भारत के स्वरूप से श्री स्थापित करने के लिए जितना प्रयास किया, उतना प्रयास नैतिक मूल्यों चन्द्रप्रभ ज़्यादा संतुष्ट हैं। के लिए किया गया होता तो आज भारत का स्वरूप कुछ और ही श्री अरविंद एवं श्री चन्द्रप्रभ होता।" वे अहिंसा को सारे संसार की सुरक्षा का आधार और उसका अर्थ प्राणिमात्र के प्रति मंगल मैत्री साधने को बताते हैं। उन्होंने श्री अरविंद एवं श्री चन्द्रप्रभ दोनों ही आतंकवाद, उग्रवाद, दुर्व्यसन, मांसाहार जैसी समस्याओं से निजात अध्यात्म एवं योग-परम्परा से सम्बद्ध हैं। जैसे पाने व विश्वशांति की स्थापना हेतु अहिंसा, प्रेम एवं शांति जैसे नैतिक श्री अरविंद का दर्शन दर्शन के मूल तत्त्वों की मूल्यों को जन-जन में प्रसारित करने की पहल की है। श्री चन्द्रप्रभ ने व्याख्या करने में, आंतरिक जीवन के विकास अहिंसा के अंतर्गत मानसिक, वाचिक एवं कायिक हिंसा का त्याग को नई दिशा देने में और मानवता के उज्ज्वल करने की प्रेरणा दी है। श्री चन्द्रप्रभ ने 'यह है रास्ता इंसान के जीवंत धर्म भविष्य की रूपरेखा प्रस्तुत करने में सक्षम सिद्ध का','महावीर : आज की व आपकी हर समस्या का समाधान' नामक हुआ है, वैसे ही श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन दार्शनिक पुस्तकों में अहिंसापरक मूल्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला है। तत्त्वों की युगीन संदर्भो में व्याख्या करने, आध्यात्मिकता को नई दिशा श्री चन्द्रप्रभ एवं महात्मा गाँधी के दर्शन में अपरिग्रह को र दन एव सुखा, र देने एवं सुखी, सफल और मधुर जीवन जीने का प्रायोगिक मार्गदर्शन सामाजिक उत्थान के लिए अपरिहार्य बताया गया है। महात्मा गाँधी ने प्रदान करने के कारण आधुनिक विश्व में समादृत हुआ है। एक तरह से स्वयं अपरिग्रह को पराकाष्ठा के साथ जिया, जो कि विश्व के लिए दोनों दर्शन भौतिकता से आपूरित मानवता को आध्यात्मिक समृद्धि आदर्श रूप था। वे अपरिग्रह को सुख, शांति व संतोष का आधार व प्रदान करने में सफल रहे हैं। संबोधि टाइम्स -109.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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