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________________ श्री अरविंद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विवेचन से स्पष्ट होता है श्री चन्द्रप्रभ ने योग साधना के अंतर्गत निम्न बिंदुओं को जीवन में कि वे सदैव परम सत्य व विश्व-प्रेम के उदात्त मानवीय आदर्शों से आत्मसात् करने की प्रेरणा दी हैप्रेरित रहे हैं। उन्होंने दर्शन से जुड़े पाश्चात्य एवं प्राचीन भारतीय 1.सात्त्विक भोजन लें। वाङ्गमय का गहन अध्ययन किया। उन्होंने योग-साधना के साथ 2.विचारों को स्वस्थ व सकारात्मक रखें। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी रुचि दिखाई, पर वे धीरे-धीरे राजनीति 3.विपरीत निमित्तों में शांति बनाए रखें। की बजाय आध्यात्मिक साधना की ओर उन्मुख होते चले गए। श्री 4.हर परिस्थिति में प्रसन्न रहें। अरविंद ने भारतीय दर्शन की मूलभूत समस्याओं को सुलझाने में व 5.जीवन को सुव्यवस्थित करें। प्राचीन सांस्कृतिक प्रतीकों की व्याख्या करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका 6. प्रत्येक कार्य को परमात्मा की प्रार्थना मानकर उत्साहभाव से करें। निभाई। उन्होंने न केवल भारतीय चिंतन की विपरीत धाराओं के बीच ध्यान की एकाग्रता साधने के संबंधी प्रश्न के संदर्भ में जहाँ श्री सामंजस्य स्थापित किया वरन् उनकी आधुनिक पाश्चात्य चिंतन के अरविंद ने हृदय केन्द्र पर ध्यान करना उत्तम माना है, वहीं श्री चन्द्रप्रभ मूल्यवान तत्त्वों के साथ समन्वयात्मक समीक्षा भी प्रस्तुत की। वे ज्ञान ने हृदय व मध्य ललाट पर ध्यान एकाग्र करने को उपयोगी कहा है। श्री प्रक्रिया के अंतर्गत वृद्धि-तत्त्व को विशेष स्थान देते हैं। उन्होंने ब्रह्म अरविंद कहते हैं, "उच्चतर सत्य की प्राप्ति हेतु हृदय पर एकाग्र होना विषयक निषेधात्मक व्याख्या को भावात्मक रूप दिया। श्री अरविंद का । सबसे अधिक उत्तम है।" हमें हृदय को केन्द्र बनाने के साथ भक्ति विकासवाद का सिद्धांत दर्शनशास्त्र में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। और अभीप्सा द्वारा चैत्य पुरुष को सामने लाना होगा और भगवत् शक्ति श्री चन्द्रप्रभ एवं श्री अरविंद के दर्शन की तुलनात्मक समीक्षा के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करना होगा, जिससे साधना अच्छे काम करने से स्पष्ट होता है कि इन दोनों दर्शनों ने योग-साधना पर विस्तार देना आरंभ कर देगी। ध्यान की एकाग्रता के परिणामों का विवेचन से प्रकाश डाला है। श्री अरविंद एवं श्री चन्द्रप्रभ ने देहगत प्रकृति से करते हुए श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "हृदय अथवा दोनों भौंहों के मध्य ऊपर उठने व विश्वव्यापी चेतना अथवा समाधि को घटित करने के ललाट के तिलक प्रदेश पर ध्यान केन्द्रित करना साधना में विशेष लिए ध्यान-योग की अनिवार्यता प्रतिपादित की है। श्री अरविंद के सहयोगी है। जहाँ हृदय शांति, समर्पण व प्रसन्नता का दिव्य केन्द्र है अनुसार पूर्ण योग (अतिमानस का अवतरण) एवं श्री चन्द्रप्रभ के वहीं मस्तिष्क पर ध्यान धरने से संकल्प, विश्वास और चिंतन शक्ति अनुसार आध्यात्मिक शांति एवं संबोधि की प्राप्ति योग साधना का मुख्य का जागरण होता है।" उद्देश्य है। इस संदर्भ में श्री अरविंद कहते हैं, "अभी मनुष्य चेतना के श्री अरविन्द एवं श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में परस्पर विरोधी सिद्धांतों ऊपरी तल तक सीमित है। वह मन-इन्द्रियों के द्वारा ही सब कुछ की त्रुटियों का परिमार्जन कर नए सिद्धांत की प्रस्तुति देने के तत्त्व भी समझता-जानता है, पर योग के द्वारा मनुष्य में एक ऐसी चेतना खुल दृष्टिगोचर होते हैं। जहाँ पाश्चात्य विकासवादियों का दृष्टिकोण सकती है जो जगत के चेतना के साथ एक हो जाती है। मनुष्य प्रत्यक्ष बौद्धिक व वैश्विक था वहीं पूर्वी विकासवादियों का सिद्धांत रूप में एक विश्वव्यापी पुरुष के विषय में सचेतन हो जाता है जिसमें आध्यात्मिक व व्यक्तिपरक था। श्री अरविंद ने विकासवाद के दोनों वह विश्वगत स्थितियों, शक्ति व सामर्थ्य, विश्वव्यापी मन, प्राण और सिद्धांतों की एकांतिकता को हटाकर अतिमानव के विकासवाद का जड़-तत्त्व को जान जाता है तथा इन सब चीज़ों के साथ सचेतन संबंध नया सिद्धांत प्रस्तुत किया और श्री चन्द्रप्रभ ने धर्मागत व ध्यानगत स्थापित करके विश्वव्यापी चेतना अर्थात विराट जीवन को प्राप्त कर संकीर्णताओं का परिमार्जन कर उदार दृष्टिकोण देने की पहल की। लेता है।" धार्मिक-संकीर्णता को त्यागने की प्रेरणा देते हुए श्री चन्द्रप्रभ ने कहा, "दुनिया के हर धर्म, पंथ, मज़हब में महान् से महान् सिद्धांत हैं, विचार श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में योग को स्वास्थ्य से समाधि तक का सफर हैं, चिंतक व महापुरुष हैं। हम अपनी दृष्टि को उदार बनाएँ ताकि हम माना गया है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "व्यक्ति स्वास्थ्य से योग की हर पंथ-परम्परा की विशेषताओं से लाभान्वित हो सकें।" शुरुआत करता है, मानसिक शांति को उपलब्ध करता हुआ दिमाग के श्री चन्द्रप्रभ ने विभिन्न महापुरुषों एवं धर्मशास्त्रों के संदेशों को तनाव व बोझ से मुक्त होता है। आत्मा के साथ अपने संबंध जोड़कर परम्परा विशेष तक सीमित रखने का विरोध करते हुए कहा है, "गीता शांति, समाधि व प्रज्ञा की सर्वोच्च स्थिति को उपलब्ध करना ही योग में वर्णित कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग की बात क्या केवल की परिपूर्णता है।"दोनों दर्शनों में साधना-सिद्धि हेतु अनेक सहयोगी हिंदुओं के लिए है? महावीर का अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांत का बातों का उल्लेख किया गया है। श्री अरविंद ने निम्न प्रेरणाएँ दी हैं - सिद्धांत क्या केवल जैनों के लिए है? जात-पाँत व छुआछूत से ऊपर 1.अच्छी चीज़ों को पढ़ें। उठने से जुड़ा मोहम्मद साहब का सिद्धांत क्या केवल मुसलमानों पर ही 2.व्यवहार में संयम लाएँ। लागू हो? ईश्वर में अपने प्रेम को स्थापित करने व प्राणिमात्र की सेवा 3. वस्तुओं के उपयोग में सावधानी रखें। करने का जीसस का उपदेश क्या केवल ईसाइयों के लिए है? नहीं, 4.दूसरों को ठेस पहुँचाने वाली बातों से बचें। महापुरुष सबके हैं, उनके संदेश प्राणिमात्र के लिए हैं। हमें महापुरुषों 5.आलोचना से जुड़ी चर्चाओं में भाग न लें। 6. झगड़े के माहौल में शांत रहें और बिना सोचे-विचारे कुछ न की अच्छाइयों को ग्रहण करना चाहिए।" बोलें। __भारतीय धर्म-दर्शनों में मुक्ति हेतु किसी ने ज्ञानयोग को महत्त्व 7.साधना के प्रति समर्पण रखें और आत्मविश्वास में दृढ़ता लाएँ।। नाम दिया, किसी ने भक्तियोग को, किसी ने कर्मयोग को महत्त्व दिया तो 8. संसार की निस्सारता समझें डर हटाएँ और भगवत्ता की ओर किसी ने ध्यानयोग को मुख्य मार्ग बताया। व्यक्ति इनमें से किस मार्ग उन्मुख रहें। को अपनाए, इस दुविधा को दूर करने के लिए श्री चन्द्रप्रभ ने सभी 110» संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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