SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मगत ईर्ष्या को बताया। अपने धर्म और महापुरुषों को ही सही मानने आंदोलन चलाया वहीं आज श्री चन्द्रप्रभ नई पीढ़ी के जीवन स्तर को वालों की धारणा को गलत बताते हुए श्री विवेकानंद ने कहा है, "ऐसा ऊँचा उठाने के लिए प्रयासरत हैं। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जहाँ मानने वालों को धर्म का क-ख-ग भी नहीं आता। धर्म तत्त्वचर्चा, महात्मा गाँधी ने सत्य और अहिंसा जैसे परम्परागत मूल्यों को सैद्धांतिक मतवाद या बौद्धिक स्वीकृति का नाम नहीं है। धर्म तो ईश्वर आधुनिक परिस्थितियों में लागू कर भारत को स्वतंत्रता दिलाई और से तद्रूपता व उसका अंत:करण में साक्षात्कार है।" उन्होंने राष्ट्र को इन्हीं मूल्यों को आधार बनाकर उन्नत भविष्य की रूपरेखा प्रस्तुत की, ऊँचा उठाने के लिए तीन बातों की प्रेरणा दी है - "सौजन्य की शक्ति वहीं आज श्री चन्द्रप्रभ विश्वप्रेम, मानसिक विकास, लक्ष्य-सिद्धि और में विश्वास, ईर्ष्या और संदेह का अभाव एवं धर्मपथ पर चलने वाले व आध्यात्मिक उन्नति के द्वारा वर्तमान विश्व की अनेक समस्याओं का सत्कर्म करने वालों की सहायता करना।" श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में समाधान करने की एवं उन्नत जीवन जीने का बेहतरीन प्रशिक्षण दे रहे राष्ट्रीयता की भावना को धर्म से भी सर्वोपरि माना गया है। राष्ट्रभक्त हैं। बनने की प्रेरणा देते हुए श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "व्यक्ति धर्मभक्त बनने महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विवेचन से स्पष्ट होता से पहले राष्ट्रभक्त बने, नहीं तो वह मंदिर-मस्जिद से जुड़ा धार्मिक तो है कि नैतिकता एवं सामाजिकता के सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप देना बन जाएगा, पर जीवन का धार्मिक नहीं हो पाएगा।" व्यक्ति को जैन, उनके दर्शन की महत्त्वपूर्ण देन है। महात्मा गाँधी का देश-प्रेम अदभत हिंदू, बौद्ध, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई होने से पहले राष्ट्र की संतान होने था। वे राष्ट्रीय उत्थान के प्रति पूर्व सजग थे। उनके दर्शन में तत्त्वका गौरव होना चाहिए। उन्होंने भगवान के मंदिरों से भी ज़्यादा नीति के मीमांसा के अंतर्गत ईश्वर का मुख्य स्थान है। उन्होंने ईश्वर के स्वरूप मंदिरों की आवश्यकता पर जोर दिया और पश्चिमी ईमानदारी, व उसकी सिद्धि पर विस्तार से प्रकाश डाला है। जीवन के उत्तरार्ध में नैतिकता, राष्ट्रभक्ति जैसे मूल्यों से प्रेरणा लेने की बात कही है। उन्होंने ईश्वर व सत्य को एक-दूसरे का पर्याय माना। महात्मा गाँधी के इसी तरह विवेकानंद एवं श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में मूर्तिपूजा का दर्शन में नैतिक मीमांसा के अंतर्गत अहिंसा, अपरिग्रह, सत्याग्रह, समर्थन, सर्वधर्म-सद्भाव, सेवा, प्राणिमात्र से प्रेम, स्वधर्म-पालन साधन-शुद्धि, व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे सिद्धांतों का प्रमुखता से और पश्चिमी अंधानुकरण के दुष्परिणाम जैसे बिन्दुओं पर भी सम- विश्लेषण हुआ है। महात्मा गाँधी का समाज-दर्शन भी उपयोगी है। दृष्टिकोण प्रकाशित हुआ है। श्री चन्द्रप्रभ ने इसके अतिरिक्त वर्तमान उन्होंने इसके अंतर्गत वर्ण-जाति व्यवस्था, श्रम-प्रतिष्ठा, औद्योगिक में उत्पन्न आतंकवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, जातिगत आरक्षण, प्रगति, शिक्षा, स्वराज्य, सर्वोदय, ग्रामोद्योग व ग्रामोत्थान, अस्पृश्यतादलगत राजनीति, अनैतिकता, धार्मिक संकीर्णता, चरित्रहीनता, निवारण, गौरक्षा, खादी, सफाई-चिकित्सा, राष्ट्रभाषा, स्त्री-शक्ति, देशद्रोह, काम-चोरी, साम्प्रदायिक टकराव, नशाखोरी, गंदगी, संतति-नियमन, शराबबंदी जैसे सिद्धांतों पर महत्त्वूपर्ण प्रकाश डाला भ्रूणहत्या, मांसाहार, दहेज हत्या, पर्यावरण प्रदूषण, फैशन-परस्ती है। इस प्रकार गाँधी दर्शन नैतिक व सामाजिक मूल्यों पर आधारित है। और प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न चिंता-तनाव जैसी समस्याओं के समाधान पर महात्मा गाँधी एवं श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन की तुलनात्मक समीक्षा भी विस्तार से प्रकाश डाला है। करने से पता चलता है कि दोनों दर्शन भारतीय संस्कृति व राष्ट्र इस विवेचन से सिद्ध होता है कि विवेकानंद एवं श्री चन्द्रप्रभ का कल्याण के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित हैं। इसी दृष्टि को उजागर करते हुए दर्शन एक-दूसरे के काफी निकट है। स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्रीय महात्मा गाँधी कहते हैं,"भारत मेरे लिए दुनिया का सबसे प्यारा देश उत्थान से जुड़े पहलुओं पर बल दिया और श्री चन्द्रप्रभ ने स्वतंत्रता के है। मैंने इसमें उत्कृष्ट अच्छाई का दर्शन किया है।" उन्होंने भेदभाव बाद उपजी समस्याओं का समाधान करने की कोशिश की। जिस तरह रहित, नशीली चीज़ों से मुक्त, स्त्री-पुरुषों के समान अधिकारों से विवेकानंद ने वेदांत दर्शन की सकारात्मक व्याख्या की उसी तरह श्री युक्त, शोषण की भावनाओं से दूर और सर्वहित की कामना जैसी चन्द्रप्रभ ने न केवल राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, जीसस, नानक, विशेषताओं से युक्त भारत के निर्माण की पहल की है। श्री चन्द्रप्रभ के मोहम्मद के सिद्धांतों एवं विभिन्न शास्त्रों की सकारात्मक विवेचना की साहित्य में भी भारतीय संस्कृति का गुणगान हुआ है। वे कहते हैं, वरन् उन्हें एक-दूसरे के निकट लाने की कोशिश की। सार रूप में श्री "हमें स्वयं के भारतीय होने का गौरव होना चाहिए। हम उस संस्कृति चन्द्रप्रभ को इक्कीसवीं सदी का विवेकानंद कहा जाए तो अतिशयोक्ति के संवाहक हैं, जिसने सारे संसार को विश्व-मैत्री, विश्व-प्रेम और न होगी। विश्व-बंधुत्व का संदेश दिया है। भारत की आत्मा ताजमहलों या कुतुबमीनारों में नहीं वह तो इस देश की सहिष्णुता और शूरवीरता में, महात्मा गाँधी एवं श्री चन्द्रप्रभ शांति और मर्यादा में, अहिंसा और करुणा में मिलेगी।" श्री चन्द्रप्रभ ने आधुनिक भारतीय विचारकों में महात्मा वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए पुनः इन्हीं मूल्यों को विश्व के गाँधी एवं श्री चन्द्रप्रभ का अनन्य स्थान है। कोने-कोने तक पहुँचाने की आवश्यकता बताई है। यद्यपि वे शास्त्रीय दार्शनिक नहीं हैं, तथापि श्री चन्द्रप्रभ व महात्मा गाँधी के दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व को इन्होंने जीवन-जगत को देखकर एवं अतीत में स्वीकार किया गया है। महात्मा गाँधी ने ईश्वर सिद्धि के परम्परागत हुए महापुरुषों द्वारा प्रतिपादित जीवनोपयोगी तर्क देते हए अंतआत्मा की आवाज़ को ही ईश्वर की आवाज़ माना है। मूल्यों को ग्रहण कर उसे वर्तमान संदर्भो में उन्होंने ईश्वर को सत्य और प्रेम के रूप में अनभव करने की प्रेरणा देते विवेचित किया है जिससे उनका नवीन हए कहा है."ईश्वर के अस्तित्व के प्रति श्रद्धा का अर्थ है : जगत के दार्शनिक दृष्टिकोण प्रतिपादित हुआ है। जहाँ नैतिक शासन और नैतिक नियमों को स्वीकार करना अर्थात् सत्य एवं महात्मा गाँधी ने भारत की परतंत्रता से आहत होकर स्वतंत्रता का प्रेम के नियम की सर्वोच्चता में विश्वास रखना।" महात्मा गाँधी ने 108 » संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy