SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के साथ तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक विवेचन किया जाएगा और सम्पूर्ण शिक्षा और बुद्धिमत्ता पर अहंमन्य एवं राज्याश्रय प्राप्त व्यक्तियों उसकी वर्तमान संदर्भो में उपयोगिता पर भी चर्चा की जाएगी। का एकाधिकार रहा है। यदि हमें उत्थान करना है तो शिक्षा को जनसाधारण में फैलाना होगा।" उन्होंने आत्मविश्वास के विकास के स्वामी विवेकानंद एवं श्री चन्द्रप्रभ लिए भी शिक्षा को अनिवार्य माना है। इस संदर्भ में श्री चन्द्रप्रभ ने । आधुनिक भारतीय दार्शनिक विचारधारा निरक्षरता और गरीबी को देश के लिए अभिशाप मानते हुए कहा है, को नूतन दिशा प्रदान करने में स्वामी "हम शिक्षा के प्रति जितने गंभीर होंगे हमारा विकास भी उतना ही तीव्र विवेकानंद एवं श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन का होगा।" श्री चन्द्रप्रभ ने प्रतिभा को जीवन की सबसे बड़ी ताक़त कहा महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। स्वामी विवेकानंद है और शिक्षा को प्रतिभा की नींव बताया है। वे शिक्षा और रोजगार में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जन्मे तब भारत पल रहे जातिगत आरक्षण को देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए एवं परतंत्र था और श्री चन्द्रप्रभ 20वीं शताब्दी के सरकारों को सचेत करते हुए कहते हैं, "अगर सरकार ने शिक्षा और | उत्तरार्ध में जन्मे तब भारत स्वतंत्र था। देश की प्रतिभाओं पर गौर नहीं किया तो विकसित राष्ट्र का सपना तत्कालीन स्थितियों को देखकर स्वामी विवेकानंद ने भारतीय धूमिल हो जाएगा।" श्री चन्द्रप्रभ ने अभिभावकों से लड़कियों को जनमानस में हिन्दुत्व के कर्मयोग धर्म का शंखनाद किया था और आज दहेज में धन देने की बजाय शैक्षणिक योग्यता देने की, अमीरों से शिक्षा श्री चन्द्रप्रभ जनमानस को कर्मयोग धर्म के साथ जीने की कला का के मंदिर बनाने की और शिक्षित लोगों से शिक्षा को आगे से आगे प्रायोगिक प्रशिक्षण दे रहे हैं। एक तरह से श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन और विस्तार करने की अपील की है। विवेकानंद का दर्शन समान विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। नारी उत्थान के संदर्भ में भी दोनों दर्शनों में समान दृष्टिकोण स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विश्लेषण से ज्ञात उजागर हुआ है। स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र निर्माण के लिए नारी उत्थान होता है कि वे वेदांत दर्शन के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। उन पर मिल, पर विशेष बल दिया है। उन्होंने बाल-विवाह को गलत व विधवाकांट, हेगेल आदि दार्शनिकों के विचारों का और विज्ञान, उदारतावाद व विवाह को उचित कहा है। उन्होंने नारी को मातृ-शक्ति के रूप में पश्चिमी समाज के जनतांत्रिक स्वरूप का प्रभाव पड़ा। उन्होंने शंकर देखने और उनके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार करने की प्रेरणा दी है। वे के अद्वैत वेदांत को सरल व वर्तमान युग के लिए उपयोगितापूर्ण भाषा विवाह-बंधन को पवित्रता के साथ जीने की सीख देते हैं। उन्होंने नारी में प्रस्तुत किया। उन्होंने जैन-बौद्ध-ईसाइयों के निष्क्रियता पूर्ण मुक्ति जाति को भारतीय संस्कृति व धर्म में पूर्ण श्रद्धा रखने, तेजस्वी व के सिद्धांत को वर्तमान संदर्भो में अप्रासंगिक बताते हुए गीता के शिक्षित बनने और लज्जा को छोड़ नारीत्व के प्रति स्वाभिमान रखने की निष्काम कर्मयोग को जीवन से जोड़ने की प्रेरणा दी। उन्होंने ही सबसे प्रेरणा दी है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में भी विकसित भारत के निर्माण के पहले 'दरिद्रनारायण' अर्थात् 'गरीबों की सेवा' का आदर्श स्थापित लिए महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने किया। वे मानव जाति के विकास के लिए स्वतंत्रता के प्रत्यय को भी की सीख दी गई है। वे कहते हैं, "पढ़ी-लिखी महिलाओं पर देश का महत्त्वपूर्ण मानते हैं। विवेकानंद दर्शन में राष्ट्रीय एकता की भावना, भविष्य टिका है। उन्हें स्वयं को घर की चारदीवारी में कैद कर नहीं नारी उत्थान, शिक्षा-विस्तार, जातिगत भेदभाव से मुक्ति, कर्मयोग, रखना चाहिए और अपने ज्ञान का उपयोग चूल्हे-चौके में करने के साथ सबसे प्रेम, सबकी सेवा, युवा संगठन, विराट धर्म, त्याग-भावना, आने वाली पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य निर्माण हेतु कटिबद्ध रहना गरीबी से मुक्ति जैसे विषयों पर भी विस्तार से विवेचन हुआ है। इस चाहिए।" वे नारियों को सीता के साथ समय पड़ने पर दुर्गा बनने की प्रकार विवेकानंद दर्शन मानवतावाद, निष्काम कर्मयोग पर केन्द्रित है। भी सलाह देते हैं। उन्होंने लड़कियों को दहेज की व्यवस्था खुद अपने स्वामी विवेकानंद के नारी उत्थान एवं शिक्षा विस्तार के संदेश भी हाथों से करके जाने और पाँवों पर खड़ी होने से पहले शादी के बारे में न वर्तमानोपयोगी हैं। उनका दर्शन राष्ट्र को समग्र उन्नति प्रदान करता है। सोचने की प्रेरणा दी है। विवेकानंद दर्शन एवं श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन की तुलनात्मक समीक्षा स्वामी विवेकानंद की तरह श्री चन्द्रप्रभ भी गीता के निष्काम की जाए तो पता चलता है कि श्री चन्द्रप्रभ व स्वामी विवेकानंद के कर्मयोग में आस्था रखते हैं। स्वामी विवेकानंद का कहना है, "भारत विचारों में काफी समानता दिखाई देती है। दोनों दार्शनिकों ने राष्ट्र- दोबारा तभी उठ सकेगा, जब सैकड़ों विशाल हृदय, युवक-युवतियाँ विकास के लिए युवा पीढ़ी को आगे आने की प्रेरणा दी है। युवाओं को सुखोपभोग की समस्त कामनाओं को तिलांजलि दे दरिद्रता व अज्ञान से संबोधित करते हुए स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "उठो, जागो और घिरे अपने करोड़ों देशवासियों के कल्याण हेतु अपनी पूरी शक्ति लगाने लक्ष्य तक पहुँचे बिना ठहरो मत, यही मेरा हर भारतवासी के लिए का संकल्प लेंगे।" श्री चन्द्रप्रभ ने निष्काम कर्मयोग को 'वर्क एज गुरुमंत्र है।" ऊर्जावान बनने की प्रेरणा देते हुए श्री चन्द्रप्रभ युवा पीढ़ी वर्शिप' के रूप में परिभाषित करते हुए कहा है, "व्यक्ति अपने कठिन से कहते हैं, "स्वयं को साहसी बनाओ, पहला साहस करो कोशिश पुरुषार्थ से महान् बनता है। ईश्वर भी उन्हीं का साथ देता है जो करने का, दूसरा साहस करो संकल्प करने का और तीसरा साहस करो कर्मयोगी होते हैं। भारत को स्वर्ग बनाने के लिए हमें प्रमाद को त्याग जोखिम उठाने का। यदि आप जोखिम नहीं उठाएँगे तो पुराने ढर्रे की कर कर्म हेतु आगे आना होगा और 'चरैवेति-चरैवेति' के मंत्र को ज़िंदगी जीने को मज़बूर रहेंगे।" अपनाना होगा।" __स्वामी विवेकानंद के दर्शन में राष्ट्र-उत्थान के लिए एवं श्री विवेकानंद-दर्शन की तरह श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन भी राष्ट्रीयता की चन्द्रप्रभ के दर्शन में जीवन-उत्थान हेतु शिक्षा-विस्तार पर बल दिया भावना से परिपूर्ण है। स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र के विघटन का मुख्य गया है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "भारत के पतन का मुख्य कारण कारण लोगों के मन में एक-दूसरे के प्रति पलने वाली जातिगत For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स 8107org Jain Education International
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy