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सदियों से अनेक मनीषियों एवं महान् दार्शनिकों के द्वारा इस बात को लेकर चिंतन-मनन होता रहा है कि जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को किस तरह जीना चाहिए। इसी चिंतन के परिप्रेक्ष्य में भारत एवं अन्य देशों में अनेक दर्शनों का उदय होता रहा है। मानव-समाज में इस बात को लेकर सदैव जिज्ञासा बनी रही कि इन सब में से अधिक उपयोगी कौन है? फलस्वरूप उन सबकी व्यवस्थित रूप से तुलनात्मक एवं समालोचनात्मक अध्ययन करने की आवश्यकता महसूस हुई ताकि मानवीय जीवन के लिए उनकी उपयोगिता को निश्चित किया जा सके। 'मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना' की उक्ति के अनुसार जितने लोग होते हैं, उतने ही विचार एवं मत-मतान्तर होते हैं। व्यक्ति, विचार, वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चलते मतभेदों का होना स्वाभाविक है किंतु जब हम 'अनेकांत' का दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो हमें विविधता में भी एकता और समरूपता का अहसास होता है। यह एकता और समरूपता ही हमें'दर्शन' के व्यावहारिक पक्ष से जोड़ती है।
पहले जीवन में 'दर्शन' की महत्त्वपूर्ण भूमिका हुआ करती थी, पर अब जीवन 'विज्ञान' पर केन्द्रित होता जा रहा है। जीवन में दर्शन व विज्ञान दोनों को महत्त्व दिया जाना चाहिए। दर्शन और विज्ञान दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जीवन के संसाधन जुटाने के लिए जहाँ विज्ञान उपयोगी है, वहीं जीवन को दिशा देने के लिए दर्शन का सहारा लेना चाहिए। चूँकि भारतीय दर्शन अध्यात्म प्रधान रहा है इसलिए यहाँ के विचारकों ने जीवन-जगत की आध्यात्मिक व्याख्याएँ की, पर वैज्ञानिक प्रभाव के चलते वर्तमान में हुए दार्शनिकों ने प्राचीन संस्कृति को सुरक्षित रखते हुए वैज्ञानिक ढंग से दार्शनिक दृष्टि को आगे बढ़ाने का उपयोगी कार्य किया।
वर्तमान संदर्भ में देखें तो जिन मनीषियों एवं दार्शनिकों ने जीवन, जगत एवं अध्यात्म की व्याख्याओं एवं उसके प्रायोगिक स्वरूपों को नए ढंग से विश्व के सामने प्रस्तुत किया उनमें कुछ नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं - स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी,महर्षि अरविंद, जे. कृष्णमूर्ति, डॉ. राधाकृष्णन, महर्षि रमण, ओशो, आचार्य महाप्रज्ञ, श्री रविशंकर, सत्यनारायण गोयनका, डॉ. अब्दुल कलाम, आइंस्टीन, टॉलस्टाय, स्वेट मार्डन, जेम्स एलन आदि। दार्शनिकों की इसी श्रृंखला में श्री चन्द्रप्रभ ऐसे दार्शनिक हुए जिन्होंने न केवल जीवन जगत् एवं अध्यात्म से जुड़े प्रश्नों के तात्त्विक एवं तार्किक समाधान तलाशे, बल्कि दर्शन जैसे गूढ़ विषय को भी जीवन का व्यावहारिक पक्ष बना दिया। उन्होंने वर्तमानकालीन व्यवस्थाओं से उत्पन्न समस्याओं का मनोवैज्ञानिक समाधान दिया और उन्नत भविष्य की रूपरेखा भी प्रस्तुत की। इस अध्याय के अंतर्गत श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन का अन्य दार्शनिकों
श्री चन्द्रप्रभ की अन्य दार्शनिकों
के साथ तुलना
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