________________
4.संसार के स्वरूप को समझें,कर्ता-भाव व राग-द्वेष से ऊपर उठे। पंछियों से प्रेरणा लो, मंदिर पर गुटर-गूं करते हैं और मस्जिद पर भी 5. धैर्यपूर्वक ध्यानयोग की साधना करें।
गीत गाते हैं। निश्चय ही, श्री चन्द्रप्रभ ने प्रभु-प्रार्थना एवं प्रभु-प्राप्ति इस प्रकार श्री चन्द्रप्रभ मोक्ष को आज. अभी. यहीं. जीते-जी का जो सरल मार्ग दिया है वह प्राणीमात्र के लिए उपयोगी सिद्ध हआ घटित करने के पक्षधर हैं एवं इसके लिए विषयों से उपरत होने और है। ध्यान में जीने को आधार बताते हैं । इस विवेचन से स्पष्ट है कि 'मोक्ष' भारतीय धर्म दर्शनों के केन्द्रबिन्दु 'मोक्ष' पर श्री चन्द्रप्रभ द्वारा दी आध्यात्मिक साधना का परम लक्ष्य है। श्री चन्द्रप्रभ ने 'मोक्ष' को गई जीवन सापेक्ष दृष्टि अद्भुत है। वे देहमुक्ति की बजाय जीवनमुक्ति समय-मुक्त कर वर्तमान सापेक्ष स्वरूप दिया है। मोक्ष की प्रचलित में अधिक विश्वास रखते हैं। वे जैन परम्परा के इस मत से सहमत नहीं धारणाओं का तार्किक एवं वैज्ञानिक ढंग से खण्डन कर इस सिद्धांत को हैं कि आज मोक्ष नहीं है। उन्होंने 'आज मोक्ष संभव नहीं है' के सिद्धांत नए स्वरूप में प्रतिपादित करना श्री चन्द्रप्रभ की मौलिक विशेषता है। का तार्किक एवं मनोवैज्ञानिक रूप से खण्डन कर मानव समाज को नई उन्होंने मोक्ष को समय व नियति की बजाय पुरुषार्थ का परिणाम दिशा दी है। उन्होंने जैन धर्म की दिगम्बर परम्परा की इस मान्यता का बताकर साधकों को नई दिशा दी है। उनके दर्शन में मोक्ष के आधार- भी खंडन किया है कि 'स्त्री को मोक्ष नहीं मिलता।' वे मोक्ष को स्तंभ के रूप में 'ध्यानमार्ग' प्रतिपादित हुआ है। इस तरह श्री चन्द्रप्रभ सर्वकालिक और लिंगमुक्त मानते हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने आत्म-दर्शन और का 'मोक्ष' संबंधी मार्गदर्शन आत्म-साधकों के लिए प्रकाश-स्तम्भ आत्म-विकास के लिए ध्यानयोग पर विशेष जोर दिया है। वे ध्यान को एवं मील का पत्थर साबित होता है।
अध्यात्म का प्रथम व अंतिम द्वार मानते हैं। इस तरह श्री चन्द्रप्रभ का आत्मदर्शनकानिष्कर्ष
आत्मदर्शन भारतीय दर्शन जगत एवं आत्म-जिज्ञासुओं के लिए मील
के पत्थर की तरह मार्गदर्शक है। श्री चन्द्रप्रभ द्वारा प्रस्तुत आत्मदर्शन से सम्बन्धित विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि श्री चन्द्रप्रभ ने आत्मा को शरीर से भिन्न माना है एवं आत्मा को 'जीवनी (चैतन्य) शक्ति' कहा है। उन्होंने 'जीवन यात्रा' सम्पूर्ण अध्याय के अनुशीलन से स्पष्ट होता है कि श्री चन्द्रप्रभ का पुस्तक में आत्मा को तर्कों के द्वारा सिद्ध करने की कोशिश की है, पर सिद्धांत एवं विचार-दर्शन दर्शन क्षेत्र में नई दृष्टि एवं चिंतन को स्थापित 'स्वअनुभूति ' को वे सबसे बड़ा प्रमाण मानते हैं। उन्होंने 'कोहं' करता है। उसमें आदर्शवाद, यथार्थवाद, मनोवैज्ञानिकता एवं अर्थात् 'मैं कौन हूँ?' को आत्मअनुभव हेतु मुख्य साधना मंत्र कहा है। तार्किकता का वैज्ञानिक दृष्टि से संगम एवं समन्वय हुआ है। श्री वे आत्मा के बंधन का मूल कारण संसार को नहीं, अंतर्मन में पलने चन्द्रप्रभ ने जहाँ एक ओर भारतीय दर्शन में छिपे सैद्धांतिक एवं वाली आसक्ति को मानते हैं। उन्होंने अध्यात्मकपरक साहित्य में न व्यावहारिक सत्य को युगीन संदर्भो में प्रस्तुत किया है वहीं दूसरी ओर केवल आसक्ति के विभिन्न रूपों की विस्तार से चर्चा की है, वरन् उससे मूल्यहीन परम्पराओं को नकारा है। उन्होंने जीवन-जगत पर सूक्ष्म रूप मुक्त होने के सरल सूत्र भी बताए हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने आध्यात्मिक से दृष्टिपात कर नये जीवन-दर्शन की स्थापना की है जिसमें वर्तमान विकास के लिए संन्यास अथवा संसार की अनिवार्यता का खण्डन जीवन से जुड़ी समस्याओं का प्रभावी समाधान है तो जीवन को किया है। उन्होंने आत्म-शुद्धि हेतु चित्तशुद्धि पर बल दिया है। वे ऊँचाइयाँ देने का मार्गदर्शन भी। चित्तशुद्धि के लिए निम्न मार्गदर्शन देते हैं -
श्री चन्द्रप्रभ ने धार्मिक एवं आध्यात्मिक दर्शन को नई दृष्टि से 1.क्रोध की बजाय प्रेम और प्रसन्नता को जीवन से जोड़ें।
परिभाषित किया है। तत्त्वदर्शन की रूढ़ता एवं दुरूहता को दूर कर उसे 2. मैं शरीर में रहता हूँ, पर शरीर नहीं हूँ, इस मनोदशा को गहरा करें। वर्तमान उपयोगी बनाया है। उन्होंने भारतीय संस्कृति में प्रवेश कर रही 3. राग और द्वेष से ऊपर उठकर सहज-निर्लिप्त जीवन जिएँ। विकृत संस्कृति पर तीखी प्रतिक्रियाएँ दी हैं और राष्ट्रीय उन्नयन में 4.समता और समरसता को बढ़ाएँ।
अवरोधक नीतियों के कारण पैदा हुई समस्याओं का सरल और प्रभावी 5.जीवन-बोध के साथ मृत्यु का बोध बनाए रखें।
समाधान दिया है। 6.विपरीत लिंग के आकर्षण में न उलझें।
श्री चन्द्रप्रभ का विचार-दर्शन मुख्यत: जीवन सापेक्ष है। उन्होंने श्री चन्द्रप्रभ के आत्मदर्शन में 'ईश्वर','ब्रह्म' और 'परमात्मा' जीवन को सुखी, सफल, समृद्ध एवं मधुर बनाने के लिए सरल सूत्रों तत्त्व पर भी अनुभवजनित विवेचन हुआ है। वे ईश्वरीय सत्ता में का विस्तृत रूप से विवेचन किया है। उन्होंने जीवन-मूल्यों से जुड़ा विश्वास करते हैं। उन्होंने प्राणिमात्र में व प्रकृति के कण-कण में ईश्वर धर्म-दर्शन देकर भारतीय दर्शन को समृद्ध किया है। उनका ध्यान एवं का नूर निहारने की प्रेरणा दी है। वे स्वयं भी प्राणीमात्र को 'प्रभु' अध्यात्म दर्शन भी वर्तमान सापेक्ष है। दर्शन को जीवन की भाषा में कहकर संबोधित करते हैं। उन्होंने परमात्म-अनुभूति के लिए चित्त का प्रस्तुत करना उनके सिद्धांत एवं विचार दर्शन की मुख्य विशेषता है। शांत व हृदय का सरल होना जरूरी माना है। उन्होंने ईश्वर के नाम, रूप, इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन-दर्शन देकर भारतीय दर्शन को नई दृष्टि आकार, संदेशों को लेकर पैदा हुई धार्मिक संकीर्णताओं को दूर किया और विकास के नये आयाम दिए हैं। है, उनकी उदार-दृष्टि धार्मिक सद्भाव को जन्म देती है। उन्होंने राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, जीसस, मोहम्मद को पंथ-परम्पराओं से मुक्त करने का साहस दिखाया है एवं उनके उपदेशों की सार्वजनिक उपयोगिता प्रतिपादित की है। उन्होंने भगवान के मंदिरों को पंथों से मुक्त करने की प्रेरणा देते हुए इस बात की ओर आगाह किया है कि उन
संबोधि टाइम्स -105.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only