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________________ विशेष की प्राप्ति माना जाता है। लेकिन वस्तुत: वह परिणाम मात्र है। भी अवश्य होना चाहिए।" भाव-मोक्ष के रूप में वह इसी जीवन में प्राप्त हो जाता है। इस तरह चौथा तर्क देते हुए श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "अगर अतीत अच्छा मोक्ष की दो तरह से विवेचना की गई है - जैन दर्शन में द्रव्य मोक्ष एवं था तब तो सभी मोक्ष प्राप्त कर चुके होते, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वैसे भाव मोक्ष के रूप में, बौद्ध दर्शन में सोपादि विशेष-निर्वाण एवं ही वर्तमान खराब है और कोई भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता, ऐसा भी अनुपादिशेष निर्वाण के रूप में और गीता में जीवन-मुक्ति व विदेह- होगा नहीं। मोक्ष समय का नहीं, हमारे प्रयास व पुरुषार्थ का परिणाम मुक्ति के रूप में। जैन-दर्शन के अनुसार मोक्ष का अर्थ है - राग-द्वेष से है।" मोक्ष से संबंधित दूसरी मान्यता यह है कि अनेक शास्त्रों में इस मुक्ति। बौद्ध-दर्शन के अनुसार - निर्वाण तृष्णा का क्षय होना है और काल में मोक्ष होना निषिद्ध माना है। इसलिए शास्त्रीय सिद्धांत में संदेह वैदिक-दर्शन के अनुसार - आसक्ति का पूर्णरूपेण समाप्त हो जाना ही करना धर्म के विरुद्ध है। श्री चन्द्रप्रभ ने इस मान्यता का भी खण्डन मक्ति है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में जीते-जी होने वाली मुक्ति, निर्वाण किया है। वे शास्त्रों को पढ़ने की प्रेरणा देते हैं. पर शास्त्र में लिखी हर अथवा मोक्ष पर विशेष परिचर्चा हुई है। बात को आँख मूंदकर मान लेना उनकी दृष्टि में ग़लत है। वे कहते हैं, भारतीय धर्म-शास्त्रों में जहाँ संसार को दुःखरूप, बंधनरूप और "शास्त्रों को पढ़ो, उनसे सत्य मार्ग सीखो, पर मात्र किताबी होकर मत जन्म-मरण का आधार बताया गया है, वहीं मोक्ष को सच्चिदानंद रूप कहा रह जाओ। किसी के कहने या लिखने मात्र से किसी बात पर विश्वास गया है। मोक्ष पाए बिना दुःखों से पूर्णत: छुटकारा संभव नहीं है। इसलिए मत करो। शांत मन से सोचो, समझो, जानो, देखो तब वह बात अगर भारतीय ऋषि-मुनियों ने 'मोक्ष' की प्रेरणा दी है। श्री चन्द्रप्रभ ने मोक्ष को अपनाने जैसी लगे तो उस पर अमल करो अन्यथा उससे निरपेक्ष रहो। साधना व अध्यात्म की अंतिम पराकष्ठा माना है। मोक्ष पाना आम इंसान के मूल्य सत्य का होना चाहिए, व्यक्ति विशेष या परम्परा-विशेष का लिए वश की बात नहीं है। इसलिए वे जन्म-मरण से मुक्त होने से पहले नहीं।" व्यक्ति को बराइयों से, बुरी आदतों से और अंधविश्वासों से मुक्त होने की जैन धर्म की दिगम्बर परम्परा के अनसार स्त्री मोक्ष नहीं जा प्रेरणा देते हैं। वे मोक्ष को व्यक्ति के भीतर मानते हैं और उसे परिणाम' सकती, मोक्ष जाने के लिए निर्वस्त्र होना अनिवार्य है। श्री चन्द्रप्रभ ने नहीं, व्यक्ति का वास्तविक स्वरूप कहते हैं। उनकी दृष्टि में, "अपनी इस मान्यता का भी खण्डन करते हुए कहा है, "मोक्ष आत्मा का होता है इच्छाओं से मुक्त होना ही मोक्ष है।" शरीर अथवा स्त्री या पुरुष का नहीं। आत्मा न स्त्री है न पुरुष, आत्मा श्री चन्द्रप्रभ का कहना है कि मुक्ति और मोक्ष की बातें तो बहुत होती बस आत्मा है। जब तक व्यक्ति की नज़रों में स्त्री-पुरुष का भेद बना हैं,पर सब ऊपर-ऊपर। व्यक्ति पहले स्वयं से पूछे कि क्या वह वास्तव में रहेगा तब तक ब्रह्मचर्य और मोक्ष की बातें निर्मूल्य हैं।" उनकी दृष्टि मुक्ति पाना चाहता है? उसका जितना विषयों के प्रति रस है क्या उतना में,"निर्वस्त्र होना साधुता और वीतरागता नहीं है। व्यक्ति को भीतर में मुक्ति का भाव है? जब तक व्यक्ति विषयों में उलझा रहेगा तब तक बंधन पलने वाली राग-द्वेष की गाँठों के आवरण को उतारना चाहिए क्योंकि बना रहेगा। मोक्ष या मुक्ति तप और त्याग में नहीं, विषयों से निर्विषयी होने आत्मा का आत्मा में जीना ही अध्यात्म है, आत्म-मुक्ति है, स्वतंत्रता में है। अष्टावक्र गीता में भी विषयों से विरसता को मोक्ष कहा गया है और और मोक्ष है।" इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने मोक्ष से जुड़ी अर्थहीन अध्यात्म उपनिषद् में भी मोक्ष का अर्थ वासना का नाश हो जाना बताया मान्यताओं का खण्डन किया है और वर्तमान में मोक्ष नहीं है इस गया है। इस प्रकार श्री चन्द्रप्रभ मोक्ष से पहले मोक्ष की कामना व विषय- सिद्धांत को अवैज्ञानिक, विसंगतिपूर्ण, पुरुषार्थ-विरोधी और विरक्ति को आवश्यक मानते हैं। अध्यात्मवाद के विपरीत बताया है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में मोक्षश्री चन्द्रप्रभ ने मोक्ष से जुड़ी अनेक प्रचलित मान्यताओं का भी प्राप्ति हेतु ध्यान-योग को मुख्य रूप से जीवन के साथ जोड़ने की प्रेरणा खण्डन किया है। मोक्ष से संबंधित पहली मान्यता है; वैदिक आचार्यों दी गई है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "ध्यान से मोक्ष नहीं मिलता, वरन् के अनुसार कलियुग में और जैनाचार्यों के अनुसार पंचम आरा ध्यान में जीना ही अपने आप में मोक्ष को उपलब्ध करना है।" उन्होंने (वर्तमान युग) में मोक्ष संभव नहीं है। श्री चन्द्रप्रभ के अनुसार मोक्ष 'संबोधि-सूत्र' में मोक्ष व ध्यान के संदर्भ में काव्यात्मक विवेचना करते कोई समय नहीं है। वह समयातीत है, कालातीत स्थिति है। मोक्ष तो हुए लिखा है - हमारा होता है, हम मुक्त होते हैं। जब हम ही समय से ऊपर उठ जाते हैं मोक्ष सदा सम्भव रहा, मोक्षमार्ग है ध्यान। तब तो कोई काल भी नहीं बचता। दूसरा तर्क देते हुए श्री चन्द्रप्रभ ने भीतर बैठे ब्रह्म को, प्रमुदित हो पहचान ।। कहा है, "भगवान श्रीकृष्ण के समय में भी नारी का चीरहरण हुआ, वे __ श्री चन्द्रप्रभ की दृष्टि में, "बुरा मन नरक है और अच्छा मन स्वर्ग। लोग भी थे जो भरी सभा में देखते रह गए। भगवान श्रीराम के समय में मोक्ष मन से मुक्ति है, विचारों का निर्वाण है। ध्यान मोक्ष को जीने व भी रावण जैसे लोग हुए,सीता जैसी सतियों का अपहरण हुआ। बचाने मोक्ष तक जाने का मार्ग है। जीते-जी मोक्ष और 'महाशून्य' की वाले अब भी हैं और न बचाने वाले तब भी थे। अच्छी संभावनाएँ आज अनुभूति करा देना ही ध्यान का मुख्य लक्ष्य है।" ध्यान के अतिरिक्त भी हैं और बुरी संभावनाएँ तब भी थीं। हम स्वयं को समय से न जोड़ें। श्री चन्द्रप्रभ ने मोक्ष पाने हेतु निम्न प्रेरणा सूत्र दिए हैं - हमारा अच्छा-बुरा होना ही समय का अच्छा-बुरा होना है।" तीसरा 1.सही रास्ते पर चलें, नीयत साफ रखें, इंसान होकर इंसान के काम तर्क देते हुए वे कहते हैं, "जो अतीत में संभव था, वह वर्तमान में आएँ, मन के विकारों पर विजय प्राप्त करें। असंभव है, ऐसा कहना अव्यावहारिक है। जब पहले की तरह आज भी बंधन होता है तो पहले की तरह आज भी मोक्ष क्यों नहीं हो सकता। 2. विषयों से उपरत रहें, बुद्धि को सात्विक बनाएँ, मुमुक्ष-भाव जैसे जन्म के साथ मृत्यु, खिलने के साथ मुरझाना, संयोग के साथ जागृत करें। वियोग, उदय के साथ अस्त अवश्य होता है वैसे ही बंधन के साथ मोक्ष 3. पुरुषार्थव प्रयास करें, समय का आध्यात्मिक उपयोग करें। 104 > संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only Jain Education Internation www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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