SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऊर्जा का समीकरण चेतना के स्पन्दन का अनुभव होने लगेगा । जो चेतना शरीर में बँट रही है, बिखर रही है, उसे आप एक जगह एकत्र होता देखेंगे । जैसे घड़ी चलती है, आत्म-अनुभवों का स्पन्दन भी इसी प्रकार होता है । स्पन्दन का अनुभव भी होगा । यह ज्योति मस्तिष्क में केन्द्रित हो जाती है और आत्म-स्पन्दनों का यह अनुभव होना ही होता है, यदि आदमी अपनी सारी ऊर्जा, चेतना को एक स्थान पर केन्द्रित करे । नल की पानी की धार किसी एक स्थान पर निरन्तर गिरती रहे, तो पत्थर पर भी गड्ढा हो जाएगा । ___आदमी ने अपनी ऊर्जा को बाँट दिया है । थोड़ी ऊर्जा धन में, तो थोड़ी धर्म में । थोड़ी ऊर्जा कमाई में लगा दी तो थोड़ी मन्दिर बनाने में । आदमी के भीतर की नदी को पच्चीस टुकड़ों में बाँट दिया गया है। अब वहाँ नदी कहाँ रह पाएगी । वहाँ तो छोटे-छोटे नाले बन गए हैं । हम इन सभी नालों को मिला दें तो फिर से नदी बन जाएगी । नदी जहाँ एक प्रवाह से बहेगी, वहाँ विद्युत को, ऊर्जा को उत्पन्न होना ही है । कोई ऐसा कारण नहीं है कि वहाँ बिजली पैदा न हो । आपने कभी बिजली पैदा होते देखी है ? किसी बाँध पर चले जाइए । आप पाएंगे कि पानी को एक जगह एकत्र कर फिर तेज प्रवाह से उसे एक चक्र पर छोड़ा जाता है, पानी की धार निरन्तर उस चक्र पर गिरने से बिजली पैदा होगी । जहाँ एक धार, एक रस, एकाग्रता होगी, वहाँ बिजली को, ऊर्जा को पैदा होना ही होगा । अगर ध्यान में सफलता न मिले तो अपनी आत्मा को टटोलिएगा, फिर भीतर पूछना कि कहाँ खामी रह गई । ऊर्जा को एक स्थान पर ले जा रहे हो तो वहाँ पर भुजाओं की प्रतिष्ठा होगी, आत्म-बल का सम्मान होगा । वहाँ अपमान और फिसलन का नामोनिशान नहीं होगा । मैं तो चाहता हूँ कि व्यक्ति अपने आपको भीतर से पूरी तरह बदल डाले । छिटपुट होने वाली बूंदाबांदी क्या बारिश है ? वर्षा उतनी तो होनी ही चाहिए, जिससे फसल उग सके । वह बारिश किस काम की, जिससे धरती की धूल भी गीली नहीं होती । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003892
Book TitleChale Man ke Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy