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चलें, मन-के-पार इस लोहार के हथौड़े को अपने भीतर तक जाने देना, क्योंकि अगर सुनार की हथौड़ी लाऊँगा तो उसका कोई अर्थ ही न होगा । सुनार की हथौड़ी तो वही काम कर सकेगी, जहाँ सोने का तार हो । जहाँ लोहे पर जंग लगा है, वहाँ तो लोहार की हथौड़ी ही काम कर सकेगी ।
इसलिए मैं सबसे पहले चेष्टा करूँगा कि आदमी अपनी सारी ऊर्जा, शक्ति एक बिन्दु पर केन्द्रित कर ले । जो व्यक्ति अपनी ऊर्जा को सम्रगता से एकत्र कर जीता है, उसी व्यक्ति की एकाग्रता सधती है । उस व्यक्ति की जिन्दगी में टुकड़े-टुकड़े होने वाली ऊर्जा का संग्रह होता है । जो चित्त, जो चेतना टुकड़ों में बाँती जा रही है, उसका एकीकरण, समीकरण करने का नाम ही समाधि है । चेतना का बिखराव ही मुखौटों का निर्माण है । जीवन के प्रति ईमानदार वह है, जो चेतना को सम्रगता से संजोता है, उसमें जीता है ।
अर्हत्-मनीषा ने एक अच्छा शब्द दिया- प्रतिक्रमण । इसका अर्थ होता है जहाँ-जहाँ चेतना जाकर जुड़ रही है, उसे वहाँ-वहाँ से लौटा लाना । अगर मेरी चेतना आपसे जाकर जुड़ी, तो मैं उसे वापस बुला रहा हूँ, क्योंकि घर का राग बुला रहा है । याद बुला रही है । घर की याद ही संकल्प-निर्माण की आधारशिला है ।
अपनी ऊर्जा को केन्द्रित करना है तो सबसे उपयुक्त स्थान है- दो आँखों के बीच ज्योति-केन्द्र । इस केन्द्र में अपनी ऊर्जा को केन्द्रित करो । अपनी सारी ऊर्जा केन्द्रित करने के बाद यदि आत्मा का स्पन्दन न हो, चेतना की अनुभूति भी न हो तो एक बात पक्की है कि आपकी प्रज्ञा बिल्कुल सध जाएगी । आपके मस्तिष्क में प्रज्ञा पूरी तरह से खुल जाएगी । जो व्यक्ति अपने भीतर की चेतना को मस्तिष्क में ले जाकर केन्द्रित करता है, उसकी प्रज्ञा पूरी खुली रहती है ।
आप कल्पना करिये । मैं भी छोटा-सा जीव हूँ। मैंने प्रयास किया कि मैं अपने विचारों की, मन की ऊर्जा को ले जाकर केन्द्रित कर लिया । मैं यह कहूँगा कि आप सिर्फ सात दिन ही अपनी ऊर्जा को, चेतना-शक्ति को यहाँ लाकर केन्द्रित कर लें तो सात दिन के भीतर आपको
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