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यह है विशद्धि का राजमार्ग
मानवता विश्व की सबसे बेहतरीन नीति है । यह विश्व की आँख है, अस्तित्व की आभा है । मानवता का सम्मान विश्व के लिए अमृत स्नान है । मानवता का गला घोंटना विश्व को विषपान के लिए विवश करना है ।
विश्व-शान्ति का पहला पगथिया मानवता को अन्तर्द्वन्द्व से मुक्त करना है । भला, द्वन्द्व का मानवता से क्या सम्बन्ध ! मानवता उजाले का मंचन है; द्वन्द्व अन्धेरे का मंथन है । अंधेरे से अंधेरा पैदा होता है और उजाले से उजाला । अन्धेरे से अन्धेरे को कभी खदेड़ा नहीं जा सकता । उजाले का अवतरण ही अन्धेरे के निरस्त्रीकरण का साधन है ।
अन्तर्द्वन्द्व मानवता के लिए चुनौती है । उसका अधिकार शान्ति है, द्वन्द्व नहीं । द्वन्द्व का रिश्ता स्वयं मनुष्य से है । अगर चित्त को ही फाइ-फूड़ कर कचरे की टोकरी में फेंक दिया जाए, तो अन्तघर में द्वन्द्व की गन्दगी कहाँ फैलेगी !
द्वन्द्व से छुटकारा पाने के लिए दो ही विकल्प हैं- या तो चित्त को मृत्यु के दस्तावेज पढ़ा दिये जायें या उसे धो-मांजकर/झाड़-पोंछकर/ साफ-सुथराकर सजा-धजा लिया जाए । जीवन में महाशून्य और महाशान्ति की अनुभूति के लिए ये दोनों ही तरीके अनन्त के वरदान हैं ।
चित्त सूक्ष्म परमाणुओं की मिली भगत सांठगांठ है । इसका खालिस होना जीवन का सौन्दर्य है । घरवार को सजाने में लगे इंसान द्वारा हृदय-कक्ष को नयनाभिराम बनाने के लिए संकल्प जगना ही ग्रन्थि-शोधन की आधार भूमिका है । तृष्णा और वासना के बीच धक्के खाते रहना तो मृत्यु के द्वार
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