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चलें, मन-के-पार साध्य से फिसला ही कहलाएगा ।
अतीत चित्त है और भविष्य मन । वर्तमान है- अतीत और भविष्य के मध्यवर्ती मार्ग पर पदचाप ।
वर्तमान व्यक्तित्व है । वर्तमान अतीत बने, भविष्य वर्तमान के द्वार पर दस्तक दे, उससे पहले वर्तमान शाश्वत के लिए पहल कर ले ।
मेरा विश्वास वर्तमान है, वर्तमान में है । वर्तमान में कैसी सुस्ती ! नींद लेने के लिए मना कहाँ है । पर नींद आज ही लेनी क्या जरूरी है ? नींद कल लेनी है, आज तो जागना है - पीले पड़ रहे पत्ते को । आज की जागृति आने वाले कल के लिए सुखद नींद है । समाधि उस नींद का ही तो अपर नाम है ।
समाधि की पहली सीढ़ी सम्बोधि है । समझ के साथ होने वाली जागरूकता ही सम्बोधि की परिभाषा है । अतीत को पढ़ना समझ है और भविष्य को चित्त पर संस्कार की परत के रूप में न जमने देना जागरूकता है । समझ का नाता मस्तिष्क से है, जबकि संस्कार का सम्बन्ध चित्त से है । संस्कार विचारों की लहर है | संस्कारों का काफिला बनता/बढ़ता है चेतना की बाहरी सैर से ।
विचारों का सरोवर शांत सोया रहे, तो अच्छा ही है । उसमें फेंका गया छोटा-सा कंकर मात्र एक ही लहर का कारण नहीं बनता, अपितु वह आंदोलित करता है सम्पूर्ण सरोवर को, सरोवर की ठेठ आखिरी बूंद को । सारा-का-सारा लहरों से तरंगित और विचलित हो उठता है । इसलिए मनुष्य को विचारों से वैसे ही निकल जाना चाहिये जैसे जंगल से रेलगाड़ी निकला करती है ।
वह मित्र गुफा में जाकर बैठा है । क्या यह पलायन है ? पलायन भगोड़े करते हैं । गुफा क्रांति की प्रतीक है । अन्तरराष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए वह योजना-कक्ष है । गुफावास चेतना की वापसी का अभियान है । मन शांत और अकम्प हो जाये, तो शहर भी महागुफा में प्रवेश है । आईनों में फिर खुद के चेहरे की झलक तो मुखर होती है, पर खत्म हो
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