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श्वांस-संयम से ब्रह्म-विहार
२०६ क्या आपने कभी आदमी की श्वांस-संख्या और बन्दर की श्वांस-संख्या पर ध्यान दिया ? आदमी एक मिनट में चौदह-पन्द्रह श्वांस लेता है तो बन्दर उससे दुगुनी । बन्दर एक मिनट में बत्तीस से पैंतीस सांस लेता है ।
श्वांस पर यदि नियंत्रण हो जाए तो जीवन के आयाम विकसित किये जा सकते हैं | संयम के लिए कछुए का उदाहरण बहुत प्रसिद्ध है । एक कछुआ करीब डेढ़ सौ साल जीता है । पता है इसका राज क्या है ? इसका राज है मन्द श्वांस । मन्द श्वांस का मतलब है आहिस्ते-आहिस्ते लम्बे-लम्बे श्वांस | श्वांस को एक ऐसी गति मिल जाती है कि श्वांस की अनुभूति भी नहीं होती कि वह ली जा रही है या नहीं।
__ कछुआ एक मिनट में सिर्फ पाँच-छः श्वांस लेता है । प्राणायाम की अस्मिता कछुए की चेतना से बड़ी समता रखती है । श्वांस-संयम देह-संयम का भी पोषक है । श्वांस के वेग पर नियंत्रण करके व्यक्ति अपने कषाय के वेग को भी बड़ी आसानी से कम कर सकता है । यह योग-का-अनुशासन है ।
प्राणायाम से सम्पूर्ण नाड़ी-चक्रों में, स्नायुओं में, चेतना का, जीवन्त संचार होता है । कार्य-शक्ति बढ़ती है । मैंने तो यहाँ तक पाया है कि व्यक्ति के ज्ञान-तन्तु भी इससे परिष्कृत और पल्लवित होते हैं ।
एक व्यक्ति की शिकायत थी कि उसके मन में बार-बार आत्म-हत्या के भाव पैदा होते थे । मैने उसे प्राणायाम सहित ध्यान की सलाह दी । परिणाम यह आया कि आत्म-हत्या के भाव आत्म-बोध में रूपान्तरित हो गये और समाधि की प्यास जग गई।
शरीर हो शान्त, श्वांसों में मन्दता, विचारों में ओ३म् की लयबद्धताब्रह्म-विहार की पहल है। झांको, जरा अपनी अन्तर की आँखों में; सम्भावनाएँ स्वागत को आतुर हैं । वह अन्दर विराजमान स्वामी तुम्हें पुकार रहा है । उसकी पुकार सुन लेना ही सम्बोधि-से-साक्षात्कार है ।
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