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________________ १६२ चलें, मन के पार है अपनी ऊर्जा के साथ, चैतन्य-शक्ति के साथ । यहाँ जब शरीर और मन के पार चले जाते हैं, तो जीवन की एक गहन प्रशान्तता उभरती है । सहकारी बन जायें जो कुछ उस समय घटित हो रहा है । इस समय हम अपने अन्तर्जगत् में जहाँ भी हैं, जो भी हो रहा है, अपनी वास्तविकता से साक्षात्कार है । यह चरण वास्तव में सम्बोधि से समाधि की ऊँचाइयों को जीवन में विकसित करता है । यह स्थिति जीवन का परम पुण्य-कृत्य है । हम मर चुके हैं एक परम भाव से, परम तृप्ति से, परम ऊर्जा से, परम संगीत से । साक्षात्कार हुआ है जीवन के अन्तर् वैशिष्ट्य से, आत्म-वैभव से । आप प्रमुदित हुए, आनन्द-मग्न । धन्यवाद दीजिए स्वयं की धन्यता पर, कृतपुण्यता पर । प्रतीक्षा है जीवन में ऐसे ही सूर्योदय की, प्रतिदिन । जीवन के इस उत्सव में सरीक होने के लिए न्यौता है प्रभात का; मंगल कामना के साथ । 000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003892
Book TitleChale Man ke Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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