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चलें, मन-के-पार १८८ उतनी ही कामयाब होंगी ।
योग के प्रवेश-द्वार पर उस समग्रता का ही आह्वान है । चेहरे पर मुहैया होने वाली मुस्कान उस समग्रता की बोलती जुबान है ।
जीवन की समग्रता ऊर्जा की प्रगाढ़ता है । वह इन्सान मुर्दा है, जो ऊर्जा-क्रान्ति से मुख मोड़ लेता है । ऊर्जा आधार है हर गतिविधि का । विश्व में ऊर्जा कभी नदारद नहीं हो सकती । सर्जन ही क्यों, प्रलय भी बिना ऊर्जा के संभावित नहीं है । ऊर्जा सारे ब्रह्माण्ड में है । जहाँ ऊर्जा नहीं, वहाँ लोक नहीं ।
__बहुत सारी पवित्र किताबें कहती हैं कि 'विश्व का प्रवर्तक ईश्वर है' । विश्व के ऐश्वर्य को नकारा नहीं जा सकता । विश्व अभिनव सुन्दर है । सौन्दर्य की उपासना होनी चाहिये । जो विश्व के सौन्दर्य की रक्षा करते हैं, उसके प्रति प्रेहिल निगाहें रखता है, वह वास्तव में ईश्वर के पूजा-भाव से भरा हुआ है । वह व्यक्ति ईश्वर का सबसे बड़ा गुनहगार है, जो विश्व-के-वैभव पर कारतूस चलाता है, उसकी समग्रता को छलनी करता है, खून के भद्दे धब्बे लगाता है, बलात् दबोचता है ।
विश्व प्रेम करने जैसा है । मैत्री और प्रेम का विस्तार ही धर्म है । धर्म ने सबको धारण करने की ऋचाएँ रची हैं । परिवार को धारण करना मनुष्य की जिम्मेदारी है, परन्तु मानवता का तकाजा कुछ और ही है। वह केवल किताबों में लिखी रहने वाली चीज नहीं है । जिन्दगी में उसको ढाल लेना ही धर्म-का-आचरण है । उन लोगों के प्रति मेरा मन अभिभूत है, जो अन्य लोगों की खातिर जीवन-मूल्यों का सम्मान करते हैं । यह कार्य-क्षेत्र मनुष्य का धार्मिक और मौलिक व्यक्तित्व है ।
वैसे हर व्यक्ति में परमात्मा की संभावना है । इसे आप आर्ष-वचन समझें । आर्ष-वचन का मतलब है जो हर युग में सिद्ध होता रहा है । जिसे सिद्ध करने की जरूरत ही न पड़े, वही आर्ष-वचन है । परमात्मा की संभावना तभी से उभरी हुई है, जबसे व्यक्ति की जीवन-दर्शन को समझने की जिज्ञासा जगी । परमात्मा आत्म-प्रगति का वाचक है । मनुष्य का परम विकास ही परमात्मा की अर्थ-ध्वनि है । इस अर्थ में हर इन्सान परमात्मा
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