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संबोधि का कारण
१२५ हैं । जब बर्फ पड़ती है, तो वे भालू जमीन के नीचे चले जाते हैं । उनके चारों तरफ बर्फ-ही-बर्फ ढंक जाती है । वे भालू छः-छ: महीने अपनी साँसें रोके रखते हैं । पशुओं में यह सर्वाधिक गहन प्राणायाम है, गहन समाधि है । लेकिन मैं इसे समाधि नहीं कहूँगा, क्योंकि छः माह तक साँसें रोकना ही समाधि है, तो वे भालू सबसे बड़े समाधिस्थ सिद्ध कहलाएँगे । - आपने देखा होगा तालाब में जब पानी कम हो जाता है तो मेंढक अपने बिलों में चले जाते हैं और जब तक बारिश नहीं होती, न तो साँस लेते हैं न ही भोजन करते हैं । एक दुबकी हुई चेतना लिए जमीन में दबे पड़े रहते हैं। जैसे ही वर्षा होती है, उनकी टर्र-टर्र सुनाई देने लगती है। वे चार महीने जमीन में दबे रहे, मगर वह समाधि नहीं है ।
समाधि का अर्थ है आप होशपूर्वक अपने शरीर के केन्द्र में विराजमान हो जाओ । यह मत समझना कि समाधि आने से कोई देवता आपके पास आएँगे । आपकी आरती उतारेंगे । समाधि का अर्थ है आप कितने होश में हैं कितने भीतर विराजमान हैं । केवल बाहरी आवरण को रंगना समाधि नहीं है । असली समाधि तो तब होगी जब अपने मन को रंग लोगे । 'मन न रंगा, रंगा रे जोगी कपड़ा' अगर भीतर से रंग चुके हो तो 'बाहर' गौण हो जाता है । असली चीज तो भीतर से रंगना है । आदमी भीतर से तभी रंग पाता है जब वह जीवन में घटने वाले छोटे-छोटे अनुभवों से कुछ सीखता और समझता चला जाए ।
एक साधक हुए हैं- 'च्वान सूं' । एक बार अपने शिष्यों के साथ च्वान सूं कहीं जा रहे थे । रास्ते में श्मशान पड़ा । च्वान सू को ठोकर लगी । नीचे झुक कर देखा तो वह किसी की खोपड़ी थी । उन्होंने खोपड़ी को देखा और मुस्करा दिए । उन्होंने झुककर खोपड़ी को उठाया, उसे चूमा और रवाना हो गए। उनके शिष्य हैरान ! गुरुजी को यह क्या हो गया । मरघट में पड़ी हड्डी क्यों उठाई । एक शिष्य ने हिम्मत की । पूछा, यह क्या माजरा है, आपने खोपड़ी को प्रणाम किया ?
च्वान सूं ने पहले तो मुस्कुराया, फिर बोलने लगे, जब मुझे ठोकर
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