________________
१०८
चलें, मन-के-पार माकूल उदाहरण दरसाया है । वे कहते हैं कि छह राहगीर किसी पहाड़ी रास्ते से गुजर रहे थे । उन्हें भूख लगी । उन्होंने दूर से एक वृक्ष देखा, जो फलों से लदा हुआ था । उसमें से एक राहगीर ने सोचा कि इस पेड़ को जड़ से उखाड़ दिया जाए ताकि फल तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने की जरूरत ही नहीं रहे । भर-पेट फल खाऊँगा और आगे चलते समय अपना झोला भी भर लूँगा । दूसरे राहगीर के मन में तना काटने का विकल्प बना । तीसरे ने शाखा काटने की सोची । चौथे ने डाली और पाँचवे ने फल तोड़ने का विचार किया; परन्तु साथ चल रहे छठे राहगीर ने सोचा, पेड़ हरा-भरा है और फलों से लदा है । फल पेड़ की सम्पत्ति है । उसे भी जीने का अधिकार है । मुझे भूख लगी है, जरूर पेड़ के नीचे कुछ-न-कुछ फल पेड़ से गिरे/पड़े मिल जाएंगे । मैं उन्हें खाऊँगा और परितृप्त होकर आगे की यात्रा करूँगा ।
__ महावीर की यह कथा प्रतीकात्मक है । वे इन छह राहगीरों के माध्यम से मनुष्य की छह चित्तवृत्तियाँ समझाने की कोशिश करते हैं । उनके अनुसार जो आदमी किसी को जड़ से उखाड़ने की सोचता है, वह कलुषित है । उसकी अन्तरवृत्तियाँ काली-कलूटी हैं । तना काटने की सोचने वाला इंसान जड़ वाले की अपेक्षा कुछ कम कलुषित है । यों समझिये, वह नीले रंग का है । शाखा तोड़ने की सोचने वाला नीले से कुछ ठीक है | समझने के लिये उसका रंग आकाशी या कबूतरी है। डाली के विकल्प वाला इन तीनों की अपेक्षा कुछ तेजस्वी है। उसका रंग ढलते सूरज की तरह है । फल के विकल्प वाला होठों के मुस्कुराते गुलाबी रंग जैसा है । वहीं छठा राहगीर जो वृत्तियों से स्वस्थ है, किसी को सुख देते हुए स्वयं को सुखी महसूस करता है, सत्वयोगी है । किसी के फलों को छीनना अतिक्रमण है । अस्तित्व की पूर्ति के लिए वृक्ष स्वयं फल देता है । ऐसे वृत्ति-स्वस्थ लोगों के चित्त के आकाश में पूर्णिमा-सा चाँद खिला रहता है । जिसका अन्तःकरण साफ-सुथरा और स्वच्छ है, वह उतना ही अमल-धवल है, जितना यह हिमालय ।
वृत्ति का यह आरोहण और अवरोहण महावीर की भाषा में लेश्या है । वृत्ति के ये छः प्रतीक वास्तव में लेश्या के छः सोपान हैं । योग जिसे षट्चक्र कहता है, अर्हत् उसे षट्लेश्या कहते हैं । इन छ: लेश्याओं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org