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दी प्राब्लम', मन ही समस्या है । दुनिया की जितनी समस्यायें दिखाई दे रही हैं, ये सब की सब मन की प्रतिध्वनियाँ हैं । अगर एक-एक समस्या से लड़ने लग गये तो पराजित हो जाओगे । किस-किस प्रतिध्वनि से संघर्ष किया जायेगा । प्रतिध्वनियों से संघर्ष व्यर्थ हैं । संघर्ष करो उस मन से, जो सब प्रतिध्वनियों का आदि स्रोत है । शाखाओं को काटने से क्या होगा ? एक शाखा काटेंगे चार शाखायें नई पैदा हो जायेंगी, 'शाखाओं के काँट-छाँट से और अधिक आते अगंर' शाखाओं को काटने से वृक्ष और अधिक बढ़ेगा, अगर काटना ही है तो जड़ को काटो, अगर जड़ काट दी गई तो सारी शाखाएँ अपने आप विदा हो जायेंगी। ___ मन जड़ है | इस जड़ को काटें ध्यान से । मन है समस्या, इसका समाधान करें ध्यान से | मन में समाधान नहीं है, समाधान है ध्यान में। मन की अनुपस्थिति का नाम ही ध्यान है और ध्यान की अनुपस्थिति ही मन है। ___ ध्यान के सम्बन्ध में झेन परम्परा भी गहरे तक गयी है । इनकी ध्यान पद्धति, में महावीर और बुद्ध दोनों की ध्यान परम्परा का सम्मिश्रण है । झेन का मूल शब्द भी ध्यान है | ध्यान परम्परा ही, जापान और चीन में झेन परम्परा हो गयी । इस परम्परा का मूल उद्देश्य, व्यक्ति को ध्यान के माध्यम से समाधिस्थ करना है | इस अवस्था में व्यक्ति साधारण यथार्थ को भी पार कर लेता है | एकत्व और सार्विकता का द्वंद्वात्मक तर्क ही इस अवस्था का आधार है । __झेन परम्परा ने ध्यान के माध्यम से, लोकोत्तर प्रज्ञा को अत्यन्त साधारण, पर आश्चर्यजनक अनुभवों के माध्यम से सार्थक किया । वहाँ ध्यान के अन्तिम चरण में कोई प्रतीक स्वीकार नहीं है, चाहे वह परमात्मा भी क्यों न हो | शून्य में प्रवेश के लिए परमात्मा का प्रतीक भी त्याज्य माना गया है | जापानी फकीर भोगा जसरेक तो यहाँ तक कहते थे कि शून्य के मार्ग में यदि बुद्ध भी मिल जाये तो उन्हें मार दो क्योंकि ज्ञान के लिए प्रतीकों से परे जाना अनिवार्य है। ___ चाहे महावीर की गाथाएं हों या पंतजलि के ध्यान सूत्र, सभी का लक्ष्य चेतना के रहस्य को उजागर करना है | चेतना के आश्चर्यजनक गुण हैं । इसके बारे में जब चाहे तब चिन्तन नहीं किया जा सकता।
सर्वोदय हो साक्षी-भाव का/८३
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