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आवश्यकता नहीं होती । वहाँ कसम नहीं, कोशिश होती है । दुनिया में कोशिशें कामयाब हो जाती हैं और वादे टूट जाते हैं।
होश पर्याप्त है । सब कसमें होश में पूरी हो जाती हैं । अगर फिर कल वासना जगे, तो होश को साधे, आज साधा था, कल फिर साधे। धीरे-धीरे होश को बढ़ायें, वासना अपने आप विसर्जित हो जायेगी । वासना बेहोशी में जगती है, होश में कभी वासना नहीं जगती ।
ध्यान में न केवल प्रवेश करें, अपितु तल-स्पर्श भी करें। ऐसा करने में, साक्षी-भाव साथ निभाएगा |
शुभ या अशुभ में चुनाव न करें, निन्दा या स्तुति दोनों से बचें । जो ध्यान में जीता है, उसके लिये न पाप अच्छा होता है, न पुण्य | उसका ध्येय तो कर्म-मुक्ति का होता है । दुनिया में कोई भी विचार अच्छा या बुरा नहीं होता | विचार सिर्फ विचार है । अगर अच्छे-बुरे का सूक्ष्मतम चुनाव भी प्रारम्भ कर दिया, तो यह चुनाव भी, हमारे लिये ध्यान में बाधक बन सकता है । जैसे तराजू में सही तौल वह माना जाता है, जहाँ दोनों पलड़े समान हों, काँटा स्थिर हो, वैसे ही ध्यान में भी, तराजू के पलड़े-शुभ और अशुभ का सन्तुलन आवश्यक है | ध्यान का काँटा स्थिर होते ही सब तिरोहित हो जायेंगे। शुभ-अशुभ, निंदा-प्रशंसा, अच्छा-बुरा, पुण्य-पाप सब समाप्त हो जायेंगे। ___ अशान्ति का मूल मन है, जो आत्मा का निजी नहीं आरोपित अंग है । जहाँ मन वहाँ अशान्ति है । इसलिए शान्ति की दिशा में मात्र विचार से, अध्ययन, मनन और चिंतन से कुछ भी नहीं होगा क्योंकि ये सब भी मन की ही प्रक्रियायें हैं। यहाँ अशान्ति को थोड़ी देर के लिये विराम जरूर दिया जा सकता है, अशान्ति का विस्मरण किया जा सकता है लेकिन यह सब. कुछ विस्मरण की मादकता है । शान्ति, मन को खोने में है, पाने में नहीं । इसलिये महावीर, विचार एवं सभी क्रियाओं के प्रति साक्षी-भाव पैदा करना चाहते हैं । पल-पल साक्षी होकर जीओ, जो भी करो साक्षी से करो, जैसे कृत्य कोई और कर रहा है हम मात्र गवाह हैं। धीरे-धीरे आप पायेंगे, भोजन न मिलने के कारण मन निर्मल होता जा रहा है | कर्ता भाव मन का भोजन है, अहंकार उसका ईंधन है । जिस दिन ईंधन समाप्त हो जायेगा उसी दिन मन तिरोहित हो जायेगा | मन की सब समस्यायें तिरोहित हो जायेंगी ।
समस्या संसार की नहीं, हमारे मन की है, मन से है । 'माइण्ड इज़
८२/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ
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