________________
वह अखंड है, जो साक्षी है, ज्योतिर्मयता अविचल होगी ।
जीवन में उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है | जैसे चाँद में ह्रास और विकास होता है, जीवन के साथ भी ऐसा ही है | परिवेश भी बदलते रहते हैं | अच्छा-बुरा, हर्ष-विषाद, सुख-दुख, सब कुछ घटित होता रहता है । साक्षीत्व अंगीकार करने का अर्थ यही है कि जो हो रहा है, वह नियतिकृत है, स्वयं को उससे न जोड़ें । जैसे ही खुद को जोड़ोगे, तुम उस क्रिया की प्रतिक्रिया बन जाओगे | ध्वनि की प्रतिध्वनियाँ तुम्हें प्रभावित करेंगी । 'दीप जलेंगे, बुझा करेंगे, तारों में भी टिमटिम होगी,' जलना-बुझना, उगना-टिमटिमाना, यह सब तो धरती के पटल पर अनवरत जारी रहते हैं । ज्योति साक्षी है, जो सिर्फ प्रकाशवन्त रहती है। हम अपने स्वभाव को, जग-बुझ सा न बनायें; ज्योतिर्मय बनायें । जो होता है, उसे होने दें, अपने आप को न जोड़ें। -
अगर आप ध्यान करना चाहते हैं, तो एक बात का पूरा-पूरा ध्यान रखना कि ध्यान में हमारे सामने कुछ भी न हो, न अतीत की स्मृतियाँ हों, न ही भविष्य की कल्पनायें । स्मृति और कल्पना दोनों को शून्य होने दें, अतीत भी मिट जाये और भविष्य भी । तब न समय होगा न आकाश होगा । उस क्षण जब कुछ नहीं होगा, उसी का नाम ध्यान है। वहां निर्विचार चेतना होगी । यहाँ से वह राह प्रारंभ होगी जहाँ से शून्य उद्घाटित होगा, मनुष्य को आँखें मिलेंगी, आत्मा को आत्मा मिलेगी। ___ क्रोध, कामना, वासना, तृष्णा, इन सबकी उत्पत्ति होनी स्वाभाविक है । पर सहज साधना, ध्यान, साक्षी-भाव और ध्यान से इन्हें गिराया जा सकता है | आज क्रोध आया है, वासना जगी है, सर्वप्रथम इन्हें समझें, फिर जगें और फिर ध्यान करें। प्रत्येक व्यक्ति ज्ञाता है अपने स्वभाव का, अपनी आदतों का, अपने अतीत का। ध्यान और साक्षी-भाव में जीते हुए, उद्भूत क्रोध को होश पूर्वक विसर्जित करो । अगर दमन के मार्ग से वासना को दबाया गया, तृष्णा को रोका गया या क्रोध के साथ बलात्कार किया गया तो यह बार-बार पैदा होगा । इसको बोध पूर्वक विदा दो । द्वार-दरवाजे पर लाकर विदा दो।
अगर यतना जग गई, होश में जीने लगे तो किसी भी त्याग के लिए कसमें नहीं खानी पड़ेंगी । होश-भरे व्यक्ति को कसमों की
सर्वोदय हो साक्षी-भाव का/८१
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org