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________________ न उड़ना गौण है, यहाँ मुद्दे की बात यह है कि उड़ाते समय हम कितने सजग हैं । साक्षीभाव कैसे आत्मसात् किया जाये ? प्रश्न महत्वपूर्ण है । वास्तव में साक्षित्व ध्यान की आत्मा है । साक्षीभाव खोया यानि ध्यान से चूक गये, मन की गतिविधियाँ हम पर हावी हो गयीं । जैसे, उपवन में कोयल कुहु कुहु कर रही हैं, हम सुन रहे हैं । इनमें दो बातें हैं एक बोल रही है, एक सुन रहा है । ऐसा लगता है इस कृत्य में दो तत्व सक्रिय हैं । लेकिन इन दोनों के बीच एक और तथ्य है, जिसे हम पहचान नहीं पाते, वह है साक्षित्व । हम क्या देख रहे हैं, यह गौण है । हम वृक्ष को भी देख रहे हैं, नदी को भी देख रहे हैं और आकाश को भी देख रहे हैं । इन सबके साथ देखना यह है कि हम किन नजरों से देख रहे हैं । हम साक्षीभाव से फिसल तो नहीं गये हैं । अगर हम नहीं फिसलते हैं, तो परिणाम यह होगा कि धीरे-धीरे दृष्टाभाव सघन हो जाएगा, थिर.. अकंप... धीरे-धीरे रूपान्तरण होगा.... वे सब वस्तुएँ विलीन हो जाएँगी । विकास द्वार उद्घाटित होंगे | चेतना आत्म- लीन हो जाएगी, दृष्टा ही दृश्य और T ज्ञाता ही ज्ञेय हो जाएगा । हम भोजन करते हैं। भोजन को कभी पचाना नहीं होता अपने आप पचता है, जैसे अपने आप, सूर्य सुबह उदित होता है और सांझ ढलते डूब जाता है, ऐसे ही भोजन की प्रक्रिया है, अगर शरीर सही सलामत है, तो सुबह का भोजन शाम को और शाम का भोजन सुबह पच जायेगा। जैसे यह प्रक्रिया अपने आप संचालित होती है, ऐसी ही विचार और ध्यान की प्रक्रिया है । विचारों के प्रति मूर्च्छा न होना, यह ध्यान 1 ICT भोजन है और पचना अपने आप होता है । पचना यानि भोजन का रक्त बनना, ध्यान की गहराई में उतरना, जैसे भोजन करके पाचन-1 -क्रिया शरीर पर छोड़ दी जाती है वैसे ही ध्यान करके समाधि की क्रिया, चैतन्य शक्ति के हाथ छोड़ दी जानी चाहिये । यद्यपि मनुष्य स्वयं भोजन नहीं पचाता, शरीर पचाता है, पर वह उसकी पाचन प्रक्रिया में बाधा अवश्य डाल देता है। ध्यान के सम्बन्ध में भी यही सत्य है आप ध्यान में गहरे नहीं उतर सकते, अगर उतरने की घड़ी भी आ जाये तो बाधा डाल देते हैं । विचारों के प्रति सूक्ष्मतम 1 चुनाव और झुकाव यही ध्यान की बाधा है | Jain Education International सर्वोदय हो साक्षी भाव / ७९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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