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________________ भला एक जैसा हो सकता है ? उसका रंग तो वैसा ही होगा, जहां वह _ऐसा नहीं है कि केवल गिरगिट ही रंग बदलता हो, हर इंसान अपना रंग बदल रहा है। कल तक जो मित्र थे, आज शत्रु हो गये हैं। कुछ दिन पहले तक जो प्रशंसा कर रहे थे, आज निन्दा कर रहे हैं । राग द्वेष में बदल रहा है , मैत्री दुश्मनी में बदल रही है और करुणा घृणा में बदल रही है । ये सब की सब मन की तरकीबें हैं । आज के सत्र में महावीर इन्हीं मन की तरकीबों से छुटकारा दिलाना चाहेंगे और प्रवेश कराना चाहेंगे, ध्यान में | आत्मा की उस दशा में, जहाँ न शरीर रहता है , न मन रहता है और न वचन रहता है | आज का सूत्र है जह चिर संचियमिं धन-मनलो पवण सहिओ दुयं दहइ । तह कम्मेधणमियं, खणेण झाणोनलो डहइ ।। जैसे चिरसिंचित ईंधन को वायु से उद्दीप्त आग तत्काल जला डालती है, वैसे ही ध्यान रूपी अग्नि, अपरिमित कर्म-ईंधन को क्षणभर में भस्म कर डालती है। ' यह सूत्र सम्पूर्ण महावीर-दर्शन का सार है । साधना की वह यात्रा है, जो गंगासागर से गंगोत्री की ओर जाती है | महावीर ने इस सूत्र में ध्यान रूपी अग्नि को प्रज्ज्वलित करने की प्रेरणा दी है । ध्यान समस्त आगमों का सार है चाहे भक्ति हो, सेवा हो, पूजा हो, प्रार्थना हो सब ध्यान के विविध रूप हैं । महावीर ध्यान के सहारे कर्म ईंधन को जलाना चाहते हैं, समाप्त करना चाहते हैं | ध्यान का अर्थ है-द्रष्टाभाव, साक्षीभाव । ध्यान वहां है जहां व्यक्ति अपने आप में लौट आता है। महावीर ध्यान के माध्यम से सन्तुलन की भाषा सिखा रहे हैं । जैसेनृत्यकार रस्सी पर सन्तुलन को खोने नहीं देता; पतली-सी रस्सी पर पांव चलते हैं लेकिन नृत्यकार न इधर गिरता है, न उधर गिरता है | जो ध्यान की रस्सी पर चलता है वह जीवन का नृत्यकार बन जाता है वह न राग की ओर गिरता है न द्वेष की ओर गिरता है, उसकी यात्रा होती है विराग और वीतराग की ओर। . महावीर ने कहा, 'ध्यान रूपी अग्नि से', ध्यान पर मैं कुछ कहना चाहूँगा। भक्ति सहज है, पूजा प्रार्थना भी सरल है लेकिन ध्यान सबसे कठिन साधना है । एक पल भी अगर पाँव डगमगा गया तो शिखर से ७६/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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