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________________ शिष्य मुस्कुराया । कहने लगा, ‘गुरुवर ! आपमें और मुझमें यही फर्क है । मैंने उस युवती को जहां उतारा वहीं भूल गया और आप उसे अभी भी ढोए जा रहे हैं। __पता नहीं, मन कब विचलित हो जाए । ऐसा न समझें कि एक पच्चीस साल के युवक का मन भटक सकता है | हकीकत तो यह है कि एक साठ साल के वृद्ध का मन भी भटक सकता है । एक युवक तो अपने विचलित मन को, अपनी इच्छा-शक्ति और आत्म-शक्ति से शांत कर देगा, लेकिन किसी वृद्ध का पांव फिसल गया तो सम्हलना उसके हाथ में नहीं रहेगा। मैंने कहा, 'राग और द्वेष दोनों विकल्प हैं।' यह सच है और यह भी सच है कि जिससे राग होता है, उसी से द्वेष होता है। बिना राग के, द्वेष कभी पैदा ही नहीं हो सकता। भला जिसके साथ संयोग नहीं वहां वियोग कैसे होगा, जहाँ संबंध नहीं वहाँ विच्छेद कैसे होगा, वियोग और विच्छेद तो संयोग और संबंध का परिणाम है। मृत्यु-जन्म का परिणाम है । जन्म के अभाव में मृत्यु कभी घटित हो ही नहीं सकती । बिना राग के द्वेष कैसा ? इसलिए साधक को वीतरागी होने की प्रेरणा दी गई, वीतद्वेषी नहीं । ___ जो द्वेष-मुक्त है, वह राग-मुक्त हो यह आवश्यक नहीं है लेकिन जो राग-मुक्त है वह तो द्वेष-मुक्त होगा ही । इसलिए मन को शांत करने के लिए और उसके भटकाव को रोकने के लिए, राग-मुक्ति आवश्यक है । मन की गति उस ओर होती है जहां राग है , आसक्ति है, सम्मोहन है । जिसे कभी देखा नहीं, सुना नहीं, जिससे मेल-मिलाप नहीं हुआ, उस ओर मन भला कैसे जाएगा । जिसकी याद में आज आंसू बहा रहे हो, जरा सोचें, सम्बन्ध होने से पहले क्या कभी उसके लिए एक तरंग भी आई थी । चाहे बाटा हो या बासमती या बबंई, जिस किसी के साथ सम्बन्ध है, मन उस ओर ही गति करता है । इसलिए चित्त की चपलता को शांत करने के लिए सम्मोहन से मुक्ति आवश्यक है । दुनिया के जितने भी सम्बन्ध हैं, सब संयोग हैं और संयोग कभी स्वभाव नहीं हो सकता | कल जिसने जान से मारने की कोशिश की थी, आज उसी पर अपना दिल दिया जा रहा है | मन का क्या, आज जिसके साथ गलबांही कर रहा है कल, उसी को धक्का मार देगा । आज जिससे हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ा रहा है कल, उसी को हाथ दिखा देगा । यह मन की उलटबाजी है । गिरगिट का रंग सर्वोदय हो साक्षी-भाव का/७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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